Home उत्तर प्रदेश वाराणसी बैंकों की मनमानी से फेल हो रहा है पीएम के संसदीय क्षेत्र में पीएम रोजगार सृजन कार्यक्रम

बैंकों की मनमानी से फेल हो रहा है पीएम के संसदीय क्षेत्र में पीएम रोजगार सृजन कार्यक्रम

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बैंकों की मनमानी से फेल हो रहा है पीएम के संसदीय क्षेत्र में पीएम रोजगार सृजन कार्यक्रम

होर्डिंग्स तक सिमटी प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना, अटपटे बहाने बनाकर किए जा रहे फाम
केवीआईसी से लोन प्रस्ताव स्वीकृत होने के बावजूद लोन नहीं दे रहे बैंकर
वाराणसी/ राजातालाब
बेरोजगारों को रोजगार देने के लिए शुरू किया गया प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम बैंकों की मनमानी के चलते फेल हो गया है। केवीआईसी से मंजूर होने के बावजूद बैंक लोन नहीं दे रहे हैं, जिससे बेरोजगार धक्के खाने को मजबूर हैं।
प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) को इसलिए लागू किया गया था कि नए स्वरोजगार उपक्रम या सूक्ष्म उद्योगों की स्थापना करके ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा किए जाएं। इसके लिए कोई प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए 50 लाख रुपये तक और सेवा क्षेत्र के लिए 20 लाख रुपये तक की आर्थिक मदद 35 प्रतिशत तक सब्सिडी पर दी जाती है। इस योजना के संचालन की जिम्मेदारी जिला उद्योग केंद्र, खादी विलेज इंडस्ट्रीज कमीशन और खादी विलेज इंडस्ट्रीज बोर्ड के पास है। योजना के तहत लोन लेने के लिए आनलाइन आवेदन करना होता है। संबंधित एजेंसी द्वारा 21 दिन के अंदर फाइल मंजूर करके बैंकों के पास भेज देती है। बैंक को 30 दिन के अंदर लोन सैंक्शन या रिजेक्ट करना होता है। जितने प्रोजेक्ट मंजूर हुए होते हैं, जिनमें से बैंकों ने मुश्किल से 10 फ़ीसदी केस में लोन सैंक्शन किया है। जिले में निर्धारित सब्सिडी बांटने का जो टारगेट रखा गया है आधा भी पूरा नहीं हुआ है। जबकि साल का नौवा महीना चल रहा है। आराजीलाईन ब्लाक के कचनार के युवा सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार गुप्ता व कल्लीपुर निवासी श्री प्रकाश का आरोप है कि बैंक बिना किसी सर्वे रिपोर्ट के लोन की फाइलें रिजेक्ट कर रहे हैं। बैंक आवेदकों को कोई संतोषजनक जवाब भी नहीं देते।
दो से चार हजार में बनती है फाइल
पीएमईजीपी के तहत लोन लेने के लिए आवेदन करने वाले बेरोजगार युवाओं का कहना है कि उन्हें आनलाइन आवेदन करने के लिए पूरी फाइल तैयार करने में ही दो से चार हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं। इसके लिए सीए से प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करवानी पड़ती है। आनलाइन फार्म भरने वाले भी 150 से 200 रुपये फीस चार्ज करते हैं। उन्हें यह राशि नकद में देनी पड़ती है, जबकि लोन मिलने की कोई गारंटी नहीं होती।
प्रभारी चैम्पियन डेस्क खादी और ग्रामोद्योग आयोग मुम्बई को लेना चाहिए संज्ञान
प्रोजेक्ट मंजूर होने के बावजूद बैंक लोन न देने के बहाने ढूंढ़ते हैं। इससे बेरोजगार धक्के खाने को मजबूर हैं। बैंक न तो मौका निरीक्षण करते और न सर्वे रिपोर्ट तैयार करते हैं। प्रभारी चैम्पियन डेस्क खादी और ग्रामोद्योग आयोग व केवीआईसी के नोडल अधिकारी को बैंकों से जवाब तलब करना चाहिए। बैंकों की मनमानी के चलते बेरोजगार धक्के खाने के लिए मजबूर हो रहे हैं।
हालाँकि पीड़ित उपरोक्त अभ्यर्थियों ने पीएमओ को डिजिटली शिकायत दर्ज कराई है।
धन्यवाद
द्वारा
राजकुमार गुप्ता
वाराणसी

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