अर्थव्यवस्था – सुखद संकेत

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राकेश कुमार अग्रवाल

कोरोना महामारी के कारण लगाए गए देशव्यापी लाॅकडाउन के बाद रसातल में पहुंची अर्थव्यवस्था आखिरकार पटरी पर लौटने लगी है . देश में आर्थिक गतिविधियों ने जोर पकड लिया है . त्योहारी सीजन व शादी विवाह की सहालक शुरु होने के बाद सुनहरे दिनों की आहट आने लगी है . अक्टूबर 2007 के 13 साल बाद कंपनियों के उत्पादन में सबसे तेज वृद्धि दर्ज की गई है . बीते आठ महीनों में पहली बार जीएसटी संग्रह एक लाख करोड को पार कर गया है . पेट्रोल , डीजल की खपत कोरोना काल के पूर्व स्तर पर पहुंच गई है . जबकि बिजली की खपत में 13 फीसदी से अधिक की रिकार्ड वृद्धि हुई है .

सेंटर फार माॅनिटरिंग इंडियन इकोनाॅमी के आँकडों के अनुसार सख्त लाॅकडाउन के बाद देश में दो करोड लोगों को नौकरी से हाथ धोना पडा था . शैक्षणिक गतिविधियाँ ठप होने , शादी विवाह जैसे पारिवारिक समारोहों में अंकुश लग जाने , आटोमोबाइल की मांग ठप होने से बाजार सन्निपात में था . मांग न होने के
कारण कंपनियों का उत्पादन रुका तो हालात ऐसे हो गए थे जैसे अर्थव्यवस्था को लकवा मार गया हो . एकाएक लागू किए गए लाॅकडाउन के हालात ठीक वैसे ही थे जैसे अचानक नोटबंदी का फैसला .

लाॅकडाउन के बाद अर्थव्यवस्था को लेकर आए तिमाही नतीजों ने जब हाहाकारी हालात की तस्वीर पेश की तब सरकार से लेकर , रिजर्व बैंक व अर्थव्यवस्था से जुडे जानकारों को समझ में आया कि लाॅकडाउन का निर्णय गले की हड्डी बन सकता है . क्योंकि संकटकाल के बिना भी रोजगार के मोर्चे पर सरकारें हमेशा से आलोचना के केन्द्र में रहती रही हैं . क्योंकि वास्तविकता में उतना रोजगार सृजन हो नहीं पाता है दूसरी ओर बेरोजगारों की नई फौज रोजगार की तलाश में आकर खडी हो जाती है . ऐसे हालात में एक फैसले से झटके में दो करोड लोगों की नौकरी छिन जाना कोढ में खाज से भी विकट स्थिति बन गई . लाॅकडाउन के पहले से ही जीडीपी पस्तहाल थी और कोरोना से पहले की लगातार तीन तिमाहियों से जीडीपी गोता लगा रही थी . रही सही कसर कोरोना ने पूरी कर दी थी . जब पूरा देश घरों में सिमटा हुआ था . लाॅकडाउन में महज तीन तीन घंटे के लिए कर्फ्यू जैसे हालात की तरह खुले बाजार से लोग रोजमर्रा के सामान खरीदने की लगे थे . भला ऐसे में बाजार मांग कहां से पैदा कर पाता . शादी विवाह जैसे आयोजन जो बाजार को रौनक ही नहीं लिक्वडिटी भी देता है लोगों को मुल्तवी करने पडे . बाजार में मांग का फ्लो बनाने में बच्चों एवं महिलाओं का बहुत बडा योगदान होता है जिसकी अकसर अनदेखी की जाती है . आठ माह से शिक्षा व्यवस्था ही नहीं बच्चे भी घरों मेंं कैद होकर रह गए थे . महिलायें और बच्चे बाजार के सबसे बडे बाॅयर होते हैं एवं दोनों घरों में थे. यही कारण है कि इसका सबसे बडा असर सर्विस सेक्टर पर पडा . सेवा क्षेत्र में गिरावट उत्पादन क्षेत्र में गिरावट से कहीं ज्यादा थी . कोरोना के कारण शहरों में तो निर्माण क्षेत्र में लगभग बंदी ही रही . केवल कस्बाई क्षेत्रों में निर्माण से जुडी गतिविधियां जारी रहीं . ग्रामीण क्षेत्रों में चल रही सरकारी आवास योजनाओं का काम जरूर बेहतर गति से होता रहा . क्योंकि अब मजदूर शहरों से अपने गांव लौट चुका था इसलिए उसने इस वक्त का इस्तेमाल अपने आवास को तैयार करने में लगाया .

आटोमोबाइल सेक्टर भारतीय अर्थव्यवस्था का एक बडा वाहक है जो अर्थव्यवस्था रूपी गाडी को रफ्तार देता रहा है लेकिन लाॅकडाउन के बाद लोगों की दिलचस्पी वाहन खरीदने के बजाए दाल , सब्जी और दवा तक सिमट गई थी . सबसे ज्यादा भट्टा इस कोरोना काल में अगर बैठा है तो वह है पर्यटन उद्योग और सेवा क्षेत्र का . अलबत्ता जिन सेक्टर में कोरोना काल में भी ग्रोथ रही है उनमें हास्पिटल और फार्मा सेक्टर अव्वल नंबर पर रहा . दवा उद्योग में बेतहाशा वृद्धि हुई . जो सेनेटाइजर और माॅस्क दवा की दुकानों में उपेक्षित पडा रहता था उसके तो दिन बहुर गए . आनलाइन शापिंग ई काॅमर्स क्षेत्र ने भी लाॅकडाउन का फायदा उठाया और लोगों को घर बैठे उनकी जरूरतों का सामान मुहैया कराया . इसलिए इन कंपनियों ने लाॅकडाउन में भी शानदार प्रदर्शन किया .

लगभग सात माह से बाजार कच्छप गति से चलता रहा . अनलाॅक के बाद जीवन सामान्य रूप में आ रहा है . लगाई गई ढेर सारी बंदिशों को सरकारों ने धीरे धीरे खोल दिया है . सात माह से मुट्ठी को बंद रखने वाले भारतीयों ने इस लाॅकडाउन की बंदिशों में न्यूनतम खर्चों पर गृहस्थी की गाडी को चलाया है . इस लाॅकडाउन में बच्चों पर होने वाला खर्च न के बराबर रहा . शिक्षा पर होने वाला बडा खर्च पेरेन्टस का काफी हद तक बच गया है क्योंकि स्कूली शिक्षण व्यवस्था ठप होने के कारण केवल बडे शहरों में जरूर पेरेन्टस ने कुछ फीस जमा की . छोटे नगरों , कस्बों और गांवों में पेरेन्टस का शिक्षा व्यय नाममात्र रहा है . लाॅकडाउन के कारण पूरी गर्मी और बरसात जिनमें बीमारियों का सबसे ज्यादा अंदेशा होता है . घरों पर रहने के कारण सामान्य बीमारियों से लोगों को इस बार कम जूझना पडा है . लाॅकडाउन की बंदिशों के दौरान हुई शादियों में भी दोनों पक्षों के बेतहाशा होने वाले खर्चों में भारी कमी रही . ज्यादातर घरों में गाडियाँ इस्तेमाल नहीं हुईं . बच्चों और परिवार के साथ गर्मियों में लगने वाला सालाना ट्रिप भी इस साल नहीं हुआ . ऐसे में जब अनलाॅक के बाद लोगों को घरों की कैद से मुक्ति मिली तो अर्थव्यवस्था की गाडी भी पटरी पर लौटने लगी .

अब जरूरत इस बात की है कि सरकारें देश के हालात यहां की जरूरतों के आधार पर निर्णय लें न कि पश्चिमी देशों के फैसलों को हूबहू यहां भी लागू किया जाए .

Rakesh Kumar Agrawal

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