आँकड़ों में बदलते जा रहे हैं हम

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राकेश कुमार अग्रवाल

शिक्षा के प्रसार का मूल उद्देश्य यही है कि लोग विनम्र बनें एक दूसरे के प्रति दयालु एवं संवेदनशील बनें लेकिन नए दौर ने इंसानों को महज आँकडों और संख्याओं में तब्दील कर डाला है . रिश्ते ही नहीं सरकारें और प्रशासन भी इन्हीं आँकडों पर माथापच्ची करता रहता है .

खेल , व्यापार , कारोबार , शिक्षा समेत जीवन का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां संख्या की बात न होती हो . कोरोना काल तो पूरा आँकडों का खेल बन गया है . आँकडे डराते भी हैं , आँकडे भरमाते भी हैं , आँकडे बहकाते भी हैं . आँकडों के बाजीगर भी होते हैं जो संख्याओं की ऐसी जादूगरी करते हैं कि इंसान भी घनचक्कर बन जाता है . कोरोना से हुई मौतों के आँकडों ने पहली बार सरकारों को भी डरा दिया . यही कारण है कि देश के प्राय : सभी बडे शहरों के श्मशान घाटों एवं कब्रिस्तानों में दर्ज होने वाले मृतकों के ब्यौरे वाले रजिस्टर भी दूसरी विनाशकारी लहर के समय हटा दिए गए थे . और तो और बडे अस्पतालों ने भी मृतकों के आँकडे परोसने बंद कर दिए थे .

सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को कोरोना से हुई मौतों पर मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने का आदेश दिया है . सरकारी आँकडों के मुताबिक ही मौतों का आँकडा चार लाख की संख्या को पार कर गया है . गैर सरकारी तौर पर मौतौं की बात न ही की जाए तो ज्यादा मुनासिब होगा . कोरोना ने तमाम परिवारों को तबाह कर डाला है . बडी संख्या में ऐसे लोग भी हैं जिनके परिवार कोरोना के चलते सडक पर आ गए हैं . ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने संवेदनशीलता दिखाते हुए मानवीयता के आधार पर मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने का आदेश दिया . यह मुआवजा चार लाख रुपए या उससे कम ज्यादा भी हो सकता है . हालांकि केन्द्र सरकार ने आँकडों का हवाला देते हुए कहा कि सरकार कोविड 19 से निपटने पर पहले से ही भारी भरकम धनराशि खर्च कर चुकी है . एवं वह इस हाल में नहीं है कि इतनी बडी संख्या में परिवारों को मुआवजा बांट सके . आपदा प्रबंधन के तहत भूकम्प , बाढ , सुनामी , चक्रवात समेत 12 आपदाओं से पीडितों को सरकार मुआवजा देती है . लेकिन आपदाओं की इस सूची में कोरोना का नाम दर्ज नहीं है . ज्यादातर प्राकृतिक आपदाओं में जनहानि का जहां तक सवाल है मृतकों की संख्या सामान्यतौर पर सैकडों में होती है . इक्का – दुक्का त्रासदियों में ही मौतों का आँकडा हजारों तक पहुंच पाता है . लेकिन पहली बार ऐसा हुआ है कि यह संख्या चार लाख को पार कर चुकी है वह भी तब जब तथाकथित तीसरी लहर का साया सर पर मंडरा रहा है . अगर तथाकथित तीसरी लहर आती है तो मौतों का यह आँकडा कहां जाकर ठहरेगा कुछ कहा नहीं जा सकता है . रोजाना आने वाली विरोधाभासी रिपोर्टें जरूर डर का माहौल पैदा कर रही हैं .

एक तरफ तो प्रत्येक भारतवासी के खाते में 15 लाख रुपए आने की बात हो रही थी दूसरी तरफ 4 लाख परिवारों को चार – चार लाख की रकम देना सरकार के लिए गले की हड्डी बन गया है . जबकि सरकार ने केवल पेट्रोलियम प्रोडक्टस की कीमतों में की जा रही दिन प्रतिदिन की बढोत्तरी से ही साढे चार लाख करोड से अधिक का राजस्व अपने खजाने में जमा कर लिया है . जीएसटी समेत अन्य टैक्सों के माध्यम से जो टैक्स वसूली होती है वह अलग है .

सरकार रूपी समुद्र से चार लाख लोटा पानी निकल भी जाए तो सरकार को क्या फर्क पडेगा . लेकिन इससे पीडित परिवारों के जख्मों पर जरूर मरहम लग सकता है . ये भी हो सकता है कि मुआवजा मिलने के बाद ये परिवार पार्टी और सरकार के वोटर सपोर्टर भी बन जाएं .

सरकारों का उद्देश्य ही कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना होता है . बशर्ते यह तभी हो सकता है कि जब सरकारें और संस्थायें इंसानों को महज एक आँकडा न मानें एक संख्या न मानें तभी लोगों का कल्याण होगा व कल्याणकारी राज्य का सपना सच होगा .

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