इन्दिरा गांधी – एक आक्रामक राजनीतिज्ञ

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राकेश कुमार अग्रवाल
इंदिरा गाँधी को आप भारतीय राजनीति का सबसे तेजतर्रार , अप्रत्याशित फैसले लेने वाला व विवादास्पद नेता भी कह सकते हैं . यही कारण है कि आज उनकी 36 वीं पुण्यतिथि पर भी उन्हें उतनी ही शिद्दत से याद किया जा रहा है .
इंदिरा की परवरिश ऐसे घर में हुई जहां से स्वतंत्रतता आंदोलन की अगवाई की गई , जिस घर ने देश को पहला प्रधानमंत्री दिया . इस तरह देखा जाए तो पिता के साए में रहते हुए उन्हें राजनीतिक संस्कार मिल गए थे . लेकिन चार बार देश के प्रधानमंत्री बनने को आप इसे नेहरू आभामंडल से जोडकर नहीं देख सकते. आजादी के बाद नेहरू ने अगर देश को अभिभावक बन कर चलाया तो लालबहादुर शास्त्री ने देशवासियों का हमदर्द बनकर . मसीहा बनकर देश चलाने वाली इंदिरा ने इसी भूमिका में 19 जुलाई 1969 को एक झटके में बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर अपने बोल्ड फैसले लेने की बानगी पेश कर दी थी . उन्होंने उन 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था जिनके पास लगभग 70 फीसदी धनराशि जमा थी . उनका दूसरा बोल्ड फैसला तब चर्चा का विषय बना जब उन्होंने रियासतों को नेहरू काल से मिल रहे राजभत्ता ( प्रिवीपर्स ) को एक झटके में समाप्त कर खजाने से जा रही भारी भरकम धनराशि की निकासी को रोक लिया था . उनके तीसरे महत्वपूर्ण फैसले की गूंज तो देश ही नहीं दुनिया में सुनाई दी जब इंदिरा गाँधी के साहसी फैसले ने पाकिस्तान का बटवारा कर उसे दो राष्ट्रों में विभाजित कर दिया . बांग्लादेश के रूप में नया राष्ट्र अस्तित्व में आया . 1971 की यह घटना दरअसल पाकिस्तानी सैन्य शासन की ज्यादिती का परिणाम थी जिसके चलते पूर्वी पाकिस्तान से लाखों लाख शरणार्थी भागकर भारत आ गए थे . भारत – पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ . युद्ध में पाक की शर्मनाक हार हुई . अटलबिहारी वाजपेयी ने तब इंदिरा को दुर्गा की संज्ञा दे डाली थी . इंदिरा के बोल्ड फैसलों का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा . इसकी अगली गूंज परमाणु परीक्षण के रूप में दुनिया को सुनाई दी . जब 18 मई 1974 को दुनिया को पता चला कि राजस्थान के पोखरण में बुद्ध मुस्कराए . अपनी इसी तीसरी पारी में इंदिरा अब मसीहा से पूरी तरह शासक बन रही थीं . अब वे राजनीति राजनीति खेलने लगी थीं . अपने विरुद्ध सुनना उन्हें कतई गवारा नहीं था . यही कारण है कि अपने विरुद्ध आए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को न केवल उन्होंने सिरे से खारिज कर दिया बल्कि 25 जून 1975 को देश में आपातकाल भी घोषित कर दिया . 19 महीने तक चले देश में आपातकाल का ही परिणाम था कि आजादी के बाद देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार के गठन का रास्ता साफ हुआ . और इंदिरा को सत्ता से हाथ धोना पडा .
हम कहते हैं गरीबी हटाओ और विपक्षी कहते हैं इंदिरा हटाओ जैसे जुमले गढकर सत्ता की पुनर्वापसी में इंदिरा गांधी और भी ताकतवर बन कर उभरीं .
1984 में उन्होंने मिली खुफिया सूचना पर आपरेशन मेघदूत चलाकर पाकिस्तान के मंसूबेे को धता बताते हुए उससे पहले सियाचिन पर कब्जा कर लिया था .
हर इंसान अपने जीवन में तमाम फैसले लेता है . इन फैसलों के परिणामों का भी वह स्वयं जिम्मेदार होता है . फैसले न लेना भी एक तरह का फैसला ही होता है . हर फैसलों के परिणाम आपके पक्ष में हो ऐसा हमेशा संभव नहीं होता है .
आपरेशन ब्लू स्टार ऐसा ही एक फैसला था जो इंदिरा गाँधी के लिए काल बन गया . जनरैल सिंह भिंडरवाले के नेतृत्व में खालिस्तान बनाए जाने की मांग पंजाब में जोर पकड चुकी थी . एक दौर में इसी भिंडरवाले को इंदिरा गांधी ने बैकडोर से बढावा दिया था . अमृतसर स्वर्ण मंदिर में खालिस्तान समर्थकों ने कब्जा कर लिया था जिसे मुक्त कराने के लिए इंदिरा गाँधी को सेना भेजनी पडी . जिसने आपरेशन ब्लू स्टार चलाकर स्वर्ण मंदिर को काफी खूनखराबे के बाद खाली तो करा दिया था लेकिन इसकी टीस कहीं न कहीं सिख समुदाय में थी . जिसके चलते उनके ही अंगरक्षकों सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने 31 अक्टूबर 1984 को उन्हें सरकारी आवास में छलनी कर दिया था .
इंदिरा गाँधी के आक्रामक तेवर व उनके बोल्ड फैसलों ने उन्हें देश ही नहीं दुनिया में पहचान दिलाई . उन्हें आयरन लेडी कहा गया . आज भारतीय शीर्ष नेतृत्व में यदि आपको कहीं या कभी कभार आक्रामकता की झलक दिखे तो आप इसे इंदिरा गाँधी से प्रेरित मान कर चलिए . इंदिरा गाँधी के जाने के बाद राजनीति में पैदा हुआ तीखे तेवर वाला शून्य आज तक नहीं भर पाया है . कांग्रेस पार्टी तो 36 वर्षों बाद भी उनका विकल्प नहीं दे सकी है . यही कारण है कि इंदिरा को अपनी तरह का अकेला राजनेता माना जाता था .

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