केन – बेतवा गठजोड़ की फिर जगी उम्मीदें

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राष्ट्रीय डेस्क-पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की महत्वाकांक्षी नदी जोडो परियोजना के धरातल पर उतरने की संभावनायें बलवती हो गई हैं . 19 सालों के लम्बे इंतजार के बाद आगामी अक्टूबर माह में उक्त परियोजना का शिलान्यास होने जा रहा है . शिलान्यास के बाद परियोजना पर काम शुरु हो जाएगा . परियोजना का मूल मकसद बार बार पडने वाले सूखे व बाढ से मुक्ति दिलाना है .
15 अगस्त 2002 को स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति ने राष्ट्र के नाम दिए अपने संदेश में पहली बार रिवर नेटवर्किंग का मुद्दा उठाया था उन्होंने अपने संदेश में कहा था कि अब हमें दीर्घकालीन समस्या की ओर ध्यान देना होगा यह एक विरोधाभासी स्थिति है कि देश के कुछ इलाकों में बाढ़ आती है तो कुछ इलाके सूखे का सामना करते हैं . सूखा और बाढ की यह घटनायें हर साल होती हैं . जरूरत इस बात की है कि एक जल मिशन तैयार किया जाए जिसके माध्यम से खेतों , गांव – शहरों और उद्योगों को साल भर पानी मिलना तथा पर्यावरण की शुद्धता बनी रहना सुनिश्चित किया जाए . हमारे तकनीकी विशेषज्ञों और परियोजना प्रबंधकों को इस अवसर पर अपनी विशेषता का लाभ जनता तक पहुंचाते हुए नदियों की नेटवर्किंग की अपनी योजना बनाने और उचित निवेश के माध्यम से हकीकत में बदलना होगा।
देश के कुछ हिस्सों उत्तर पूर्व के क्षेत्र , उत्तरी क्षेत्र और गंगा के मैदानी भागों में हर साल बाढ़ आती है तथा उससे जनता को भारी परेशानी होती है बाढ़ के कारण हर साल राज्यों को घर , व्यवसाय , पशु , जन – धन बचाने में काफी धनराशि व्यय करनी पड़ती है।
1980 में राष्ट्रीय बाढ आयोग द्वारा प्रकाशित किए गए आकलन के अनुसार 1976 से 1978 के बीच 3 सालों में बाहर से 3180 करोड़ का नुकसान हुआ अर्थात प्रतिवर्ष 1000 करोड़ से अधिक की क्षति हुई।
दूसरी तरफ देश के एक बड़े भूभाग में हर साल सूखा पड़ता है . भारत कृषि प्रधान देश के रूप में जाना जाता है . लेकिन खेती पानी के बिना संभव नहीं है . देश के मध्य भारत , पश्चिमी भारत , पूर्वी भारत , पूर्वी तटीय क्षेत्र के अनेक राज्य हर साल सूखे से जूझते हैं . सूखाग्रस्त राज्यों में उड़ीसा , मध्य प्रदेश , राजस्थान और आंध्र प्रदेश के कुछ इलाके शामिल हैं।

रिवर नेटवर्किंग के संभावित लाभ –
ऐसा माना जा रहा है कि रिवर नेटवर्किंग से सिंचाई सुविधाएं बढ़ेंगी जिससे कृषि क्षेत्र को लाभ पहुंचेगा . पानी की उपलब्धता बढ़ने से कृषि क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा और उन इलाकों में ज्यादा लाभ होगा जहां पानी की कमी से खेती तबाह होती है . पानी की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी कृषि अर्थव्यवस्था मजबूत होने से किसानों व मजदूरों की आय बढ़ेगी।
रिवर नेटवर्किंग होने से अंतर राज्यीय पानी विवादों पर विराम लगेगा क्योंकि इससे पानी की कोई कमी नहीं होगी।
भूगर्भ जल स्तर में सुधार होगा
जल परिवहन व माल ढुलाई की व्यवस्था सुदृढ़ होगी सड़कों पर यातायात का बोझ कम होगा।
मिट्टी का क्षरण रोकना संभव हो सकेगा क्योंकि बाढ के कारण बड़ी मात्रा में भू क्षरण होता है रिवर नेटवर्किंग से बाढ़ की त्रासदी पर अंकुश लगेगा।
रिवर नेटवर्किंग से उन में पानी का बहाव लगातार बना रहेगा जिससे पानी की गुणवत्ता में सुधार होगा।
रिवर नेटवर्किंग से मानसून पर निर्भरता कम हो जाएगी।
पर्यटन क्षेत्र का विकास होगा विदेशी मुद्रा अर्जित करने में सहायता मिलेगी।
बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन होगा।
संभाव्यता रिपोर्टों की मानें तो प्रायद्वीप की नदियां 2035 तक तथा हिमालयी नदियों को जोड़ने की प्रक्रिया 2043 तक पूरी हो पाएगी। जहां तक राष्ट्रीय जल नीति का सवाल है पानी को प्राकृतिक संसाधन के साथ-साथ मनुष्य की एक बुनियादी आवश्यकता और एक बेशकीमती राष्ट्रीय संपत्ति माना गया है . देश में हिमपात सहित कुल वर्षा के लगभग 4000 बिलियन क्यूबिक मीटर में से भूतल पानी की कुल उपलब्धता 1869 बिलियन क्यूबिक मीटर है . साल में केवल 3 महीने में ही वर्षा होती है . बारिश की असमानता का आलम यह है कि पश्चिमी राजस्थान में 100 मिमी वर्षा होती है तो वहीं मेघालय के चेरापूंजी में 10000 मिलीमीटर से भी अधिक वर्षा होती है।
देश का छठवां भूभाग सूखा प्रभावित है जबकि बाढ़ से प्रतिवर्ष 7.5 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित होता है। आजादी के समय देश की कुल सिंचाई क्षमता 19. 5 मिलियन हेक्टेयर थी जो 1999 से 2000 तक लगभग 95 मिलियन हेक्टेयर हो गई . देश में उत्पादन क्षमता के सापेक्ष में आबादी भी तेजी से बढ़ी है।
देश में खाद्यान्नों का उत्पादन पांचवें दशक में लगभग 50 मिलियन टन था जो वर्ष 1999 से 2000 के अंत तक बढ़कर 208 मिलियन टन हो गया इसे वर्ष 2025 तक लगभग 350 मिलियन टन तक बढ़ाना होगा। जो पानी और सिंचाई सुविधा के बिना संभव नहीं है . ऐसे में यदि नदी जोडो परियोजना का आगाज होता है तो एक नई संभावना का उदय होगा . योजना कितनी कारगर रहेगी यह तो वक्त बताएगा लेकिन दो दशकों से लंबित परियोजना के अब धरातल पर उतरने के आसार जरूर बन गए हैं .

राकेश कुमार अग्रवाल रिपोर्ट

Anuj Maurya

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