केन बेतवा गठजोड़- बड़े खतरे हैं इस राह में

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राकेश कुमार अग्रवाल
15 वर्षों के लम्बे अंतराल के बाद आखिरकार केन बेतवा नदी जोडो को लेकर चल रही उलझनें दूर हो गई हैं एवं पहली नदी जोडो परियोजना को वास्तविकता के धरातल पर उतारने का रास्ता भी साफ हो गया है . लेकिन पर्यावरण विद नदियों को जोडने वाली इस परियोजना के पक्ष में नहीं हैं वे इसे विनाश को न्यौता करार दे रहे हैं . उनके अनुसार इसके दुष्परिणाम लम्बे समय तक भोगने होंगे .
केन-बेतवा गठजोड़ के अंतर्गत 5 बांध , एक केन नदी पर एवं 4 बेतवा नदी पर प्रस्तावित हैं। इस गठजोड़ से 18 गांवों के विस्थापन का आकलन किया गया है। ये पाँचों बाँध संरक्षित एवं आरक्षित वन क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। बेतवा नदी पर बनने वाले 4 बांधों से 800 हेक्टेयर वन क्षेत्र डूब में आ आएगा। छतरपुर जिले के सुकवाहा , शाहपुरा , बसोदा , भावर खुवा , घुगारी , कुपी , डोढन , पलकौहा , खरयानी और मेनारी गाँवों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। राज्यों के पारस्परिक समझौते के अनुसार बेतवा में 50 टीएमसी पानी शेष बचता है। इन 4 बांधों का निर्माण हो जाने के बावजूद 26 टीएमसी जल बेतवा में उपलब्ध रहेगा।
जैव विविधता पर दुष्प्रभाव :- केन व बेतवा गठजोड़ के लिए जिस स्थान पर बांध प्रस्तावित है वह पन्ना टाइगर नेशनल पार्क के अंतर्गत आता है। यह नेशनल पार्क जिसमें होकर केन नदी बहती है। घड़ियाल , मगरमच्छ व अन्य जलीय जीव जंतुओं का आश्रय स्थल है। इस नदी में 10 तरह के जीव जंतु हैं। जो वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 की अनुसूची – एक में नष्ट होने वाली प्रजातियों के अंतर्गत आते हैं। केन-बेतवा गठजोड़ से 10 लाख से अधिक वृक्षों का कटान होगा।
विकास नहीं विनाश को न्यौता :- एक तरफ केंद्र , उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश की सरकारें केन-बेतवा गठजोड़ की बाधाओं को दूर कर अब योजना पर अविलम्ब काम शुरू कराने जा रही हैं। वहीं दूसरी ओर नवधान्य , सैंड्रप , किसान विज्ञान केंद्र जैसे संगठन केन-बेतवा गठजोड़ को विनाशकारी बता रहे हैं।
उनके अनुसार केन-बेतवा को आपस में जोड़ने से पन्ना तथा बांदा जिलों की सिचाई व्यवस्था पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाएगी। डोढन बांध के कारण गंगऊ तथा बरियारपुर जलहीन हो जाएंगे . सिंचाई व्यवस्था बेहतर होने के बजाए पानी की किल्लत और बढ़ जाएगी।

  • छतरपुर , टीकमगढ़ तथा झांसी के बहुत से गांवों की जमीनें नहर में समाहित हो जाएंगी जिससे हजारों किसान भूमिहीन हो जाएंगे।
  • दोनों ही नदियां वर्षाकाल में एक ही समय उफान पर होती हैं। शेष समय जल प्रवाह बहुत कम होता है। नदी गठजोड़ से बेतवा को तो पानी मिलेगा पर केन पूरी तरह बरसाती नदी के रूप में हो जाएगी। तथा अपना वर्तमान प्राकृतिक स्वरूप खो देगी।
  • बेतवा नदी में पारीछा बेराज के पूर्व अत्याधिक वर्षा ऋतु के अलावा भी शेष नदी के चारों ओर भीषण जल भराव तथा निकटवर्ती जालौन एवं हमीरपुर में बाढ़ की स्थिति को जन्म दे सकती है। यमुना नदी में आया अतिरिक्त पानी हमीरपुर तथा बाँदा जिलों के उत्तर पूर्वी संभाग को बाढ़ग्रस्त बनाएगा।
  • इन दोनों नदियों को मिलाकर जलग्रिड बनाने की कल्पना को अतिरेक बताया गया है। क्योंकि नहरें एक ही दिशा में बहती हैं। उनके प्रवाह को उल्टा-पुल्टा नहीं किया जा सकता। जल प्रवाह की तुलना विद्युत प्रवाह से नहीं की जा सकती है।
  • नदियों की प्राकृतिक उपयोगिता तथा अस्मिता नष्ट होगी। सैकड़ों गाँव जो केन नदी पर पेयजल के लिए आश्रित हैं , तबाह हो जाएंगे।
    डॉ वंदना शिवा के अनुसार सरकार यह सब विदेशी कंपनियों के इशारे पर बुन्देलखण्ड की जैवविविधता को नष्ट करने की साजिश कर रही है। उनके अनुसार सरकार पानी पर से जनता के बुनियादी अधिकार को खत्म करना चाहती है। केन और बेतवा पानी के निजीकरण की पहली सीढी है। डॉ वंदना शिवा के अनुसार इस परियोजना पर जितना पैसा लगाया जा रहा है यदि उसे गांव का पानी गांव में रोकने पर खर्च किया जाए तो बुंदेलखंड के हर गांव में खुशहाली छा जाएगी।
    रिसर्च फाउण्डेशन फॉर साइंस टेक्नोलॉजी एंड इकोलॉजी द्वारा केन बेतवा गठजोड़ से होने वाले दुष्परिणामों को भयंकर एवं विनाशकारी बताया गया है।
    1- जमीन, जंगल व जैवव-विविधता पर दुष्प्रभाव।
    2- बांधों व नहर निर्माण के कारण विस्थापन।
    3- पारस्परिक कृषि पर प्रभाव।
    4- बाढ़ एवं सूखे को बढ़ावा ।
    5- मछुवारों एवं तालाबों पर प्रभाव।
    6- पारस्परिक संबंधों में दरार ।
    7- सामाजिक , सांकृतिक व धार्मिक भावनाओं पर कुठाराधात।
    रिसर्च फाउंडेशन के अनुसार भारत सरकार केन में 1020 मिलियन क्यूबिक मीटर जल बेतवा में स्थानांतरित करना चाहती है। मुख्य अभियंता बेतवा उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के अनुसार केन में 342 मिलीयन क्यूबिक मीटर जल उपलब्ध है वहीं दूसरी तरफ बेतवा में 373.13 मिलीयन क्यूबिक मीटर जल उपलब्ध है।
    रिसर्च फाउंडेशन के अनुसार बांदा को सूखा हमीरपुर में बाढ़ को बढ़ावा देने के पश्चात गठजोड़ वाली नहर में गर्मियों के 4 महीने में पानी नहीं होगा ।
    प्रधानमंत्री की मानें तो केन बेतवा गठजोड़ से ही बुंदेलखंड का जल संकट खत्म होगा एवं किसानों की समस्याओं का अंत होगा दोनों पक्षों के अपने-अपने दावे हैं यदि नदी जोड़ो परियोजना अपने मूल मकसद में कामयाब होती है तो सदियों से बाढ़ , सूखा , अकाल जैसी आपदाओं से मुक्ति का रास्ता निकलेगा यदि यह परियोजना विफल होती है तो हमेशा के लिए यह विचार ही दफन हो जाएगा।
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