कोविड सेंटर बाँदा से घर वापसी पड़ी भारी, जेबें हो गईं ढीली

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एम्बुलेंस पर लादकर ले गए , वापसी पर घर छोडना तो दूर रात में मेडीकल कालेज के बाहर का दिखा दिया रास्ता

विशेष रिपोर्ट

कोरोना को लेकर सरकारी फरमानों व अलग अलग विभागों की अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग ने आम आदमी का चैन , सुकून , रोजी रोजगार ही नहीं छीना बल्कि उनको ऐसे जख्म भी दे दिए जिन्हें पीडित भुक्तभोगी सालों तक नहीं भूल पाएगा।

कोरोना पाजिटिव रिपोर्ट आते ही जिले का स्वास्थ्य महकमा और प्रशासनिक अधिकारियों की सक्रियता देखते ही बनती है। आनन फानन में सीएमओ आफिस से एक फोन आता है कि आप कोरोना पाजिटिव पाए गए हैं अपना बैग लगा लीजिए कपडे , दवाएँ और जरूरत का सामान रख लीजिए आपको एम्बुलेंस लेने आ रही है। रात में अँधेरे में एम्बुलेंस उस कथित पाजिटिव व्यक्ति को बैठाकर बांदा ले जाती है। जहां पीडित को रात में दो बजे मंडलीय कोविड सेंटर के बाहर बिठा दिया जाता है। घंटे भर बाद पीपीई किट धारी कुछ कर्मचारी आते हैं तमाम सवालों के बाद उन्हें एक कमरे में भेज दिया जाता है। खैर किसी तरह १४ दिन का क्वारंटीन रूपी वनवास काटने के बाद शाम को सात बजे कोरोना पाजिटिव व्यक्ति को सूचना मिलती है कि आपकी अभी छुट्टी होने वाली है अपना बैग लगा लीजिए। साथ ही कोविड सेंटर से एक फोन उस कथित पाजिटिव से निगेटिव हुए पेशेंट के घर भी पहुंचता है कि एक घंटे बाद आपके व्यक्ति को अस्पताल से छुट्टी की जा रही है उसे आकर ले जाइए।
जिन व्यक्तियों के पास खुद की कारें हैं उनके परिजनों ने बांदा ड्राईवर भेजकर जैसे तैसे उनको वापस बुलवा लिया लेकिन सबसे विकट समस्या उनके समक्ष उठ खडी हुई जिनके पास कोई साधन नहीं था। हरीशंकर यादव को अपनी पत्नि को लेने बांदा जाना था। कुलपहाड का कोई भी व्यक्ति कोरोना पेशेंट को लेकर आने को राजी नहीं हुआ तब उन्होंने निकटवर्ती ग्राम सुगिरा से दो हजार रुपए में किराए से कार कर के बांदा गए तब जाकर पत्नी को वापस लेकर आए।

इसी प्रकार अवधेश अग्रवाल व अन्य कोरोना पेशेंट को किराए से कार करके बांदा से लाना पडा। विडम्बना का एक और बडा विषय यह है कि पाजिटिव से निगेटव हुए सभी पेशेंट को रात में अँधेरे में आठ बजे छोड़ा जाता है, चाहे वह महिला हो पुरुष। मंडलीय कोविड सेंटर होने के कारण महोबा, हमीरपुर, चित्रकूट और बांदा के कोरोना पेशेंट को बांदा भेजा जाता है। ऐसे में जब परिवहन सुविधा लगभग ठप पडी है रात में कोरोना पेशेंट के परिजन अगर कार लेकर न आएँ तो वे जाएं तो कहां जाएँ। ऐसे में अगर किसी महिला के साथ कोई हादसा हो जाए तो कौन जिम्मेदार होगा जैसे तमाम सवाल स्वत: खडे हो जाते हैं। सवाल यह भी है कि जब आप पाजिटिव पेशेंट को सायरन और हूटर बजाती नीली फ्लैशगन चमकाती बत्ती की रोशनी में पूरे मोहल्ले के सामने जबरन बिठाकर ले जाते हो तो पेशेंट के निगेटिव होते ही उसे गैरों की तरह रात के सुनसान में क्यों अकेला उसे उसके हाल पर छोड़ दिया जाता है… ? कोरोना के कारण लोगों की जेबें पहले ही फट चुकी हैं अब उनकी बची खुची कमाई को टैक्सी और गाडी पर फूंकने के लिए क्यों लोगों को मजबूर किया जा रहा है। सरकार कुछ इस तरफ भी दिशा निर्देश जारी कर सकती है।

Rakesh Kumar Agrawal

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