क्या सीएम बनकर दूसरी पारी खेल पाएंगे योगी

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राकेश कुमार अग्रवाल

उत्तर प्रदेश में चुनावी चौसर बिछने लगी है . सभी पार्टियों ने चुनावी रणनीति को अंतिम रूप देना शुरु कर दिया है . सपा , बसपा और भाजपा तीनों पार्टियां सत्ता में वापसी के लिए कोई कोर कसर छोडना नहीं चाहती हैं . लेकिन फिजा में सबसे बडा सवाल यही है कि क्या भाजपा सत्ता मेें पुनर्वापसी करेगी ? क्या योगी को मुख्यमंत्री के रूप में दूसरी पारी में खेलने का मौका मिलेगा ?

भारतीय जनता पार्टी को राममंदिर आंदोलन के उफान व मंडल – कमंडल की राजनीति के दौर में 1991 में पहली बार अपना मुख्यमंत्री बनाने का मौका मिला था . 24 जून 1991 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी . लेकिन डेढ साल ही बीता था कि अयोध्या में कारसेवकों ने विवादास्पद ढांचा ढहा दिया था . जिस विवादास्पद ढांचे पर पूरे देश और दुनिया की निगाहें थीं उसके ढहाए जाने के बाद तत्कालीन केन्द्र सरकार ने कल्याण सिंह सरकार को गिराकर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था . इस तरह महज एक वर्ष 165 दिन में भाजपा सरकार अपदस्थ हो गई थी .

1992 के बाद भाजपा को दूसरी बार 1997 में सरकार बनाने का मौका मिला . यह वही दौर था जब भाजपा और बसपा का गठबंधन हुआ था . पहले 184 दिन के लिए मायावती प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थीं . वे 21 मार्च 1997 से 21 सितम्बर 1997 तक प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं . 21 सितम्बर 1997 से 12 नवम्बर 1999 तक कल्याण सिंह ( 2 वर्ष 52 दिन तक ) मुख्यमंत्री रहे . कल्याण सिंह भाजपा के इकलौते राजनीतिक हैं जो दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने .

हालांकि भाजपा की ओर से कल्याण सिंह के अलावा , रामप्रकाश गुप्त और राजनाथ सिंह को भी मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला . कल्याण सिंह के हटने के बाद लगभग 351 दिन के लिए रामप्रकाश गुप्त को उत्तर प्रदेश की कमान मिली थी . लेकिन उनका कार्यकाल प्रभावी न होने के कारण पार्टी ने रामप्रकाश गुप्त को हटाकर तेजतर्रार राजनाथ सिंह को राज्य की कमान सौंपी . राजनाथ सिंह 28 अक्टूबर 2000 से 8 मार्च 2002 तक एक वर्ष 131 दिन तक प्रदेश के सीएम रहे . इसके बाद लगातार 15 साल तक भाजपा सत्ता की देहरी तक नहीं फटक पाई . इन 15 वर्षों में दो बार सपा तो एक बार बसपा को सरकार चलाने का मौका मिला .

भाजपा के लिए सबसे बडी उपलब्धि यही होने जा रही है कि योगी आदित्यनाथ उनकेे पहले मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं जो न केवल अपना कार्यकाल पूरा करेंगे बल्कि भाजपा के भी वे पहले मुख्यमंत्री होंगे जो अपना कार्यकाल पूरा कर रहा है .

योगी के कार्यकाल में भाजपा के खाते में तमाम उपलब्धियां ऐसी हैं जिनको लेकर भाजपा जनता की अदालत में जाएगी . कोरोना से बचाव के लिए किए गए कारगर कोविड प्रबंधन , प्रदेश में माफियाओं पर गरजा बुलडोजर , राम मंदिर निर्माण , अयोध्या को प्रदेश की प्रमुख धार्मिक नगरी के रूप में विकसित करने जैसे तमाम काम भाजपा के खाते में हैं .
भाजपा किसी भी सूरत में यूपी की सत्ता खोना न चाहेगी . क्योंकि यूपी फतेह से ही 2024 में दिल्ली फतह की राह निकलेगी . अगर सत्ता परिवर्तन होता है तो भाजपा के लिए 2024 की संभावनाओं को करारा झटका लगना .

चुनाव के लिए महज 6 माह का वक्त बचा है . इसलिए भाजपा ही नहीं संघ भी अभी से व्यूह रचना को अंतिम रूप देने के लिए डट गया है . यूपी में नेतृत्व परिवर्तन का शिगूफा भी छोडा गया था लेकिन पार्टी नेतृत्व परिवर्तन की संभावना से इंकार कर चुकी है जिसका मतलब साफ है कि चुनाव योगी के नेतृत्व में ही लडा जाएगा . तमाम मोर्चों और प्रकोष्ठों में वरिष्ठ नेताओं को समायोजित किया जा रहा है . केन्द्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में भी बडा हिस्सा यूपी का होगा जो चुनावी समीकरणों के मद्देनजर रखकर ही होगा ताकि इसको चुनावों में भुनाया जा सका . चित्रकूट में संघ प्रमुख की मौजूदगी एक सप्ताह तक चलने वाला चिंतन शुरु हो गया है . जहां पर पूरा फोकस चुनावी रणनीति पर होगा . सपा या बसपा को अगर भाजपा अंडरएस्टीमेट करती है तो आगामी चुनावों में यह उसके लिए भारी भी पड सकता है .

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