खूनी रिश्ते – रिश्तों का खून

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राकेश कुमार अग्रवाल
शुक्रवार को झांसी में दिनदहाडे घटी घटना ने पूरे शहर को झकझोर डाला . घटना घटी थी झांसी के प्रतिष्ठित बुंदेलखंड महाविद्यालय में . जहां एमए के छात्र हुकुमेन्द्र सिंह गुर्जर को उसके सहपाठी दोस्त मंथन सिंह ने कक्षा के अंदर उसके सिर में पिस्टल सटाकर गोली मार दी . कालेज से मंथन मिशन कम्पाउंड में चरणपुरी कालोनी पहुंचा जहां उसने सुजीत त्रिवेदी की बेटी कृतिका जो बीए अंतिम वर्ष की छात्रा थी एवं घर के बाहर अपनी दादी के साथ दरवाजे पर बैठी थी की उसी के दरवाजे के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी . हत्या का कारण कृतिका और मंथन की आपसी दोस्ती के बीच में हुकुमेन्द्र का आ जाना था जिसके चलते कृतिका ने मंथन से दूरी बना ली थी . अपने प्यार की रुसवाई से खफा मंथन ने जो फैसला लिया उसने सभी को हिलाकर रख दिया . क्योंकि कृतिका की मौके पर मौत हो गई जबकि हुकुमेन्द्र को नाजुक अवस्था में दिल्ली रेफर कर दिया गया . कृतिका की हत्या कर मौके से भाग रहे मंथन को लोगों ने दबोच लिया और रस्सियों से जकडने के बाद पुलिस को सौंप दिया .
उत्तर प्रदेश के उन्नाव में घटी कमोवेश ऐसी ही एक घटना ने पूरे प्रदेश को हिला दिया जब उन्नाव जिले के असोहा थाना क्षेत्र के ग्राम बबुरहा में बुधवार की शाम तीन लडकियां अचेतावस्था में पडी मिलीं थीं . जिनमें से दो लडकियों की सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में मौत हो गई जबकि तीसरी का कानपुर में इलाज चल रहा है . पुलिस की छानबीन में खुलासा हुआ है कि कानपुर में हास्पिटल में एडमिट लडकी से पडोसी गांव का एक युवक एकतरफा प्रेम करता था . उसने अपने प्रेम का प्रस्ताव हास्पिटल में एडमिट लडकी के समक्ष रखा था . जिसे उक्त लडकी ने ठुकरा दिया था . प्रेम के प्रस्ताव पर इन्कार की खुन्नस के चलते आरोपी युवक ने एक नाबालिग साथी की मदद से खेत में तीनों लडकियों को धोखे में रखकर जहरीला पदार्थ खिला दिया जिसके चलते दो लडकियों की मौत हो गई . जबकि तीसरी अभी भी मौत से संघर्ष कर रही है .
देश – दुनिया सदियों से प्रेम प्यार के अनूठे किस्सों से भरी पडी है . जिनमें से ज्यादातर किस्से प्यार में त्याग और बलिदान से जुडे हैं . इसलिए ऐसे वाकयात किवदंती बन गए . प्रेम और प्यार तब भी था . भावनाएं तब भी थीं , पाने की चाहत तब भी थी , एक दूसरे के लिए मर मिटने का जज्बा तब भी था लेकिन आज ये जज्बा मर मिटने के बजाए मिटाने पर तुला है . तू मेरी नहीं तो तुझे किसी और की न होने देने की सोच पागलपन ही कही जाएगी . जिसमें प्यार पाने की इंतेहा जान लेने तक पहुंच जाए . बेहतर तो यह होता कि ऐसे प्रेमी अपनी चाहत को पाने के लिए जान लेने या देने के बजाए अपनी ऊर्जा उसके दिल में अपना प्यार जगाने में लगाते . हो सकता है कि लडकी , उस लडके के प्यार को देखकर स्वत : उस तक खिंची चली आती .
पहले के प्रेमी प्रेमिका समझौता वादी थे , या उन्हें घर परिवार या लोक लाज की चिंता थी , या फिर वे बुजदिल थे जैसे तमाम चिंतन दिमाग में कौंधते हैं . या फिर बंदिशों से घिरे समाज में मिलने मिलाने के बहाने कम थे . या कसमे वादे निभाने के मौके मयस्सर नहीं थे . या आज के मोबाइल और इंटरनेट के युग ने यह सब ज्यादा आसान कर दिया है .
केवल एकतरफा प्यार जानलेवा है ऐसा नहीं है . जो प्रेमी युगल प्रेम में डूबे हैं वे अपने प्यार के मुकम्मल न होने के अंदेशे में उतने ही खतरनाक हो जाते हैं और कुछ भी कर गुजरते हैं तभी तो उत्तर प्रदेश के अमरोहा की शबनम और सलीम के प्यार को आप क्या कहेंगे ? जब एमए करने के बाद शिक्षामित्र बनी शबनम ने कक्षा 8 तक पढे अपने प्रेमी सलीम के प्यार में 13 वर्ष पहले जो फैसला लिया और उसे अंजाम दिया उसे आज तक पूरा देश भूला नहीं है . शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर 14 -15 अप्रैल 2008 को अपने ही घर में जो खूनी खेल खेला उसकी गूंज आज भी गुंजायमान है . जब सलीम और शबनम ने आपस में मिलकर अपने पिता शौकत , मां हाशमी , दो भाई अनीस और राशिद , भाभी अंजुम , मौसी की लडकी राबिया , और मासूम भतीजे अर्श को कुल्हाडी से काट डाला था . जिस समय यह नरसंहार हुआ था उस समय मैं बरेली में कार्यरत था एवं अमरोहा रिपोर्टर हमारे ही आफिस से सम्बद्ध था . पहले नरसंहार की घटना ने और इसके बाद नरसंहार के खुलासे ने हम सभी रिपोर्टर को भी सकते में डाल दिया था . तब अनायास ही हम सभी के मुंह से निकला था कि अपनी जान के लिए इतने सारे लोगों की जान ले लेना , क्या यही प्यार है ?
1988 में रवीन्द्र पीपट के निर्देशन में बनी एक फिल्म आई थी वारिस . जिसका एक गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था – फूलों ने बहारों से / बहारों ने नजारों से / नजारों ने सितारों से कहा / लहरों ने किनारों से / किनारों ने ये धारों से / धारों ने हजारों से कहा / कि हुस्न की वादियों में इश्क पलता रहेगा / जब तक रहेगी ये दुनिया प्यार होता रहेगा ……
ये सच है कि प्यार की शै दुनिया से कभी खत्म होने वाली नहीं है . कहते हैं कि प्यार दुनिया का सबसे कोमल और मखमली एहसास है . लेकिन अपने प्यार को मुकम्मल बनाने के लिए हिंसा , खूनखराबा , जान ले लेना और एक गुंडे, मवाली या आतंकवादी द्वारा अपने मकसद के लिए लोगों की जानें ले लेने में कोई फर्क है . क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि प्यार को प्यार ही रहने दिया जाए और उसे रिश्ते का कोई नाम न दिया जाए …

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