ग्वालियर पर मजार में सो रहे ‘पांडेयजी‘

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अकबर ने रामतनु पांडेय को जबरन मियां तानसेन बनाया था।
– रींवा में पैदा हुये, चित्रकूट नरेश राजा रामदेव सुर्की के दरबार से अकबर के दरबार में पहुंचे।
– आगरा में मौत हुई तो ग्वालियर में लाकर गुरू की मजार के पास दफनाया गया।

चित्रकूट , एक ऐेसा व्यक्ति जिसकी आवाज सुनकर पानी बरसने लगता था, दीपक अपने आप जल उठते थे और पशु व पक्षी जिसकी आवाज पर मंत्र मुग्ध होकर सुध-बुध खो देते थे। अगर इतिहास के पन्नों को पलटेंगे तो ऐसे केवल दो ही मिलेगे, जिसमें पहले थे योगेश्वर श्री कृष्ण जिनकी बांसुरी की धुन पर मोर नाचने लगते थे और गाय रंभानेे लगती थी और गोपियां खिंची चली बाती थी। दूसरेे थे मियां तानसेन,,जिनकी आवाज ने एक नही कई चमत्कार दिखाये। कभी बिना तेल के दीपक जले तो कभी बिन बादल बरसात कराई। कहा जाता है कि तानसेन की अलाप पर कुछ भी हो सकता था।

लेकिन यह जानकारी बहुत कम लोगोें को होगी, मियां तानसेन जन्म से मियां नही बल्कि खालिस पंडित थे। उनका नाम रामतनु पांडेय था। उनके गुरू का नाम स्वामी हरिदास महराज था। लेकिन न केवल इतिहास में उन्हें मियां तानसेन के नाम से प्रचारित किया गया, बल्कि गुरू के रूप में भी मुस्लिम फकीर गौैस को बताया गया। इतना ही नहीं उनकेे मरने के बाद आगरा की जगह समाधि का निर्माण ग्वालियर में कराया गया। आज हम आपको मियां तानसेन के जीवन की उन पर्तो को खोलने का काम करेंगे जिनका उल्लेख बहुत कम मिलता है।

महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रमुख प्रो0 कमलेश थापक के अनुसार तानसेन वास्तव में रींवा स्टेट के किसी गांव में जन्में थे। उन्होंने तत्कालीन समय चित्रकूट में तपस्यारत रहे स्वामी हरिदास महराज से संगीत की शिक्षा ली। इसके बाद कुछ रागों को सीखनेे के लिए वे ग्वालियर में सूफी गायक मुहम्मद गौस के पास गये। इसके बाद वह पुनः वृन्दावन में स्वामी हरिदास जी के पास पहुंचे औैर उन्होंने संगीत की कड़ी संगीत साधना की। यहां से लौटकर वह रींवा नरेश रामदेव सुर्की के पास राज गायक के रूप में दरबार में शामिल हो गयें। प्रो0 थापक बताते हैं कि वैसे तो राजा रामदेव सुर्की रींवा के राजा थे, पर वह बहुत बड़े वीर और भक्त थे। उन्होंने चित्रकूट में विशाल महल का निर्माण कराया था। यहां पर रामतनु पांडेय अपनी संगीत की प्रस्तुति दिया करते थे। वैसे रामतनु जी एक कुशल योद्वा भी थे। लगभग 55 साल की उम्र तक उनकी ख्याति दिल्ली के जिल्लेइलाही अकबर के दरबार तक पहुंची तो उन्होंने राजा रामदेव से उन्हें भेजने कके लिए कहा।

कई बार कहने व युद्व की धमकी के बाद फिर रक्तपात को टालने के लिए स्वयं 60 वर्ष की अवस्था में रामतनु दिल्ली चले गये। वह अकबर के साथ लगभग 26 साल रहे। कहा जाता है कि अकबर ने दीन ए इलाही धर्म की स्थापना की। जिस पर फरमान हुआ कि सभी नवरत्नों के साथ सल्तनत में काम करने वाले सभी को यह धर्म स्वीकार करना होगा। लेकिन वास्तव में यह धोखा था। अकबर ने सभी हिंदुओं को इसके जरिए मुसलमान बना दिया। लिहाजा रामतनु पाडेय जी मियां तानसेन बन गये। 86 वर्ष की अवस्था में उनकी मृत्यु आगरा में हुई। आगरा में दाह संस्कार के बाद उनकी कुछ अस्थियों को लाकर ग्वालियर में मुहम्मद गौस की कब्र के पास दफना दिया गया। तब से यहीं पर उनकी कब्र मानी जाती है। वैसे उनकी संगीत परंपरा के शिष्यों को हुसेनी परंपरा कहा जाता है। लेकिन लोग इसे हुसैनी ब्राहमण परंपरा कहते हैं।
  
पिछले कुछ सालों में भारतीय जनता पार्टी ने ऐतिहासिक परिदृष्य को बदलकर रख दिया है। कुछ समय पहले गृह मंत्री अमित शाह ने ऐतिहासिक घटनाक्रमों पर चर्चा करते हुये कहा था कि अब देश में नये सिरेे से इतिहास को शोधित कर छापनेे की जरूरत हैं। कांग्रेस की सरकार में गुलामी की मानसिकता वाले इतिहासकारों ने इतिहास को काल्पनिक आधार पर लिखकर यह बताने का प्रयास किया कि जो मुगलों और अंग्रेजों नेे किया वह सही थां। कांग्रेस का हाल तो दस साल पहले तक यह रहा कि वह देश की आत्मा यानि राम के अस्तित्व को स्वीकार करने को तैयार नही थे। अब आने वाले समय में देश के नवयुवा इतिहासकारों को यह देखना होगा कि कौैन सा तथ्य किस तरह से बदला गया है। उसे सही रूप में ंसामने लाने की जरूरत है।
एनआरसी, सीएए या फिर समान नागरिक संघिता जैसे तमाम कानून भारतीय जनता पार्टी अपने शासन में ला चुकी है।

रिपोर्ट- संदीप रिछारिया

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