छोटे राज्य की मांग पृथकतावाद नहीं

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By – राकेश कुमार अग्रवाल

उत्तर प्रदेश के सात व मध्य प्रदेश के 16 जिलों को मिलाकर 23 जिलों वाले बुंदेलखंड राज्य की मांग कई वर्षों से की जा रही है . बुंदेलखंड राज्य की मांग का प्रमुख कारण है यहां के बाशिंदों के साथ किया जा रहा भेदभाव . विकास की कसौटी पर आज भी बुंदेलखंड सबसे निचली पायदान पर है वह भी तब जब बुंदेलखंड बालू , पत्थर , खनिज पदार्थों का सिरमौर है .

पृथक बुंदेलखंड राज्य की इस लड़ाई में भाषा को कसौटी बनाया गया था . जब भाषाओं के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन और सृजन हुआ तो बुंदेलखंड को दो अलग अलग राज्यों में क्यों विभाजित कर दिया गया यह एक ऐसा सवाल है जिस पर आज तक जबाब नहीं दिया गया .

1956 में राज्यों को जिस तर्कसंगत वैज्ञानिक आधार पर मिलाया या अलग किया गया उनमें विकास की गति और राज्यों की अपेक्षा अधिक नहीं रही है .
भाषाई आधार पर बने राज्य तमिलनाडु , केरल , कर्नाटक , आँध्र प्रदेश ने हर क्षेत्र में उल्लेखनीय उन्नति की है।

जनसंख्या व क्षेत्रफल दोनों दृष्टि से बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की ओर देखा जाए तो वह हर क्षेत्र में पिछड़े हैं . हालांकि उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड एवं मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ अलग राज्य बन चुके हैं . और बिहार से अलग होकर झारखंड अलग राज्य बन चुका है . उत्तर प्रदेश में जहां पहले 52 जिले थे अब बढ़कर 75 हो गए हैं . बिहार में पहले 17 जिले थे अब अकेले बिहार में 38 व झारखंड में 24 जिले है।

उत्तर प्रदेश को एक राज्य के रूप में बनाए रखने से सूबे के मुख्यमंत्री को ये सत्ता सुख तो मिल सकता है कि वह देश के सबसे बडे राज्य का मुख्यमंत्री है लेकिन हम सभी जानते हैं कि राज्य छोटा होने से लोगों की व प्रशासन की एक दूसरे तक पहुंच सुविधाजनक ढंग से होती है सरकार द्वारा समय-समय पर जारी की जाने वाले नियमों व कानूनों को आसान व कारगर तरीके से लागू किया जा सकता है .

सन 1947 में न्यायाधीश एसके धर की अध्यक्षता में गठित आयोग ने भाषाई आधार पर राज्य के पुनर्गठन का समर्थन किया था . इसी बीच मद्रास राज्य के तेलुगु भाषियों ने आंदोलन आरंभ कर दिया था और पोट्टी श्रीरामुलू द्वारा किए गए आमरण अनशन के दौरान मृत्यु हो गई थी परिणाम स्वरूप 19 अक्टूबर 1952 को तेलुगु भाषियों के लिए पृथक आंध्र प्रदेश राज्य की घोषणा कर दी गई थी . इस प्रकार से भाषाई आधार पर बंटने वाला मद्रास पहला राज्य था जिसे तमिल , तेलुगू और मलयालम भाषा के आधार पर तमिलनाडु , आंध्र प्रदेश और केरल में विभाजित कर दिया गया था . इसके बाद असम में अरुणाचल प्रदेश , मेघालय , नागालैंड जैसे राज्य बनाए गए . पूर्वोत्तर राज्य की जनजातियों द्वारा भी अलग राज्यों की मांग की जाती रही है .

बुंदेलखंड की विपन्नता का कारण सरकारी व प्रशासनिक है . जिसने बुंदेलखंड का जमकर दोहन करवाया , यहां से राजस्व अर्जित किया लेकिन उसके अनुपात में यहां पैसा खर्च नहीं किया . पूरे देश का साठ फीसदी तेंदू पत्ता का उत्पादन बुंदेलखंड में होता है . जो बीडी बनाने का मुख्य घटक है . लेकिन तेंदु पत्ता की तुडान और तेंदुपत्ता से घर घर बनने वाली बीडी की कमाई किसके पास गई यह किसी से छिपा नहीं है . बुंदेलखंड के ग्रेनाइट की राजस्थान के संगमरमर की तरह पूरे देश में पहचान है . लेकिन यहां से पूरा ग्रेनाइट बाहर चला जाता है क्योंकि मल्टीनेशनल कंपनियों ने निवेश कर रखा है .

झांसी , उरई , बांदा को छोड दिया जाए तो पूरा बुंदेलखंड ग्रामीण आबादी वाला है . यहां की पूरी अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है लेकिन सिंचाई सुविधा महज एक तिहाई खेतों तक पहुंच पाई है .

अलग राज्यों की मांग वाले आंदोलनों का ध्यान भटकाने को लिए कभी कभार दिए जाने वाले प्रलोभन रूपी पैकेजों के झुनझुने से आंदोलनों का शोर भले थम जाए लेकिन इससे उस राज्य की विषमतायें दूर होने वाली नहीं हैं . न ही ऐसे आंदोलनों को पृथकतावाद के चश्मे से देखा जाना चाहिए .

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