RAEBARELI CHILD LABOUR
EDITED BY ANUJ MAURYA
इंसान के लिए बचपन उसकी जिंदगी का सबसे नायाब पल होता है। लेकिन कई मासूम ऐसे हैं, जो खेलने-कूदने की उम्र में होटल, ढाबा व गैराजों में मजदूरी करने को मजबूर हैं।जिले का शायद ही कोई ऐसा थाना क्षेत्र होगा, जहां होटलों में या ठेले पर काम करते मासूम न दिखे। गरीब बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लौटाने के लिए प्रशासन की ओर से ऑपरेशन मुस्कान भी चलाया जाता रहा है। बावजूद बच्चों के चेहरे पर मुस्कॉन नहीं लौटा पाई है। शहर हो गांव में बाल मजदूरी खुलेआम चल रही है़।जिले में ढाबे और गैराजों में बचपन सिसक रहा है और मासूमों के सपने टूट रहे हैं। यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि जिन नन्हे हाथों में कलम होनी चाहिए वहां झूठे बरतन और छेनी तथा हथौड़ी चलाने को मजबूर होना पड़ रहा है।
कुछ दिनों केअधिकारियो को दिखाने के लिए चलाई जाती है मुहिम
पूरे वर्ष में मात्र कुछ दिनों के लिए बाल मजदूरी को रोकने के लिए मुहिम चलाई जाती है। हर साल 12 जून को दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है। इस दिवस की शुरुआत ओर से बाल मजदूरी के खिलाफ जागरूकता फैलाने और 14 साल से कम उम्र के बच्चों को बाल मजदूरी से निकालकर उन्हें शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से की गई। 12 जून से कुछ दिन पहले ही विभाग की ओर से यह मुहिम चलाई जाती है। यदि हर माह ही इसे चलाया जाए तो बाल मजदूरी पर रोक लगाई जा सकती है।
दावे तो बहुत हैं, पर कार्रवाई केवल कागजो पर
सरकार द्वारा चाहे बाल मजदूरी के विरुद्व कानून पास करके इसे रोकने के लिए बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि यह सभी दावे मात्र कागजी कार्रवाई तक ही सीमित होकर रह गए है। क्योंकि आज भी ढाबों, रेस्टोरेंट, सब्जी मंडी चाय की दुकानों आदि में काम करने के लिए मजबूर हैं और इन बाल मजदूरों का सरेआम शोषण किया जा रहा है। खुद मजदूरी करने वाले बच्चों के अभिभावक भी मानते हैं कि वह गरीबी के चलते घर के बच्चों से बाल मजदूरी करवाने के लिए मजबूर है। बाल मजदूरी रोकने के लिए जिले के जिम्मेदारों द्वारा साल भर में एक दो सभाएं आयोजित की जाती है। उन सवालों में बाल संरक्षण रोकने के लिए बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं और सभा के बाद जिम्मेदार बढ़िया बढ़िया पकवानों का मजा लेकर साल भर बाल श्रम पर आंख मूंद कर बैठे रहते हैं। जिसके चलते इन दिनों क्षेत्र में बाल श्रम बढ़ता जा रहा है।