‘दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय’ विकसित होने को तरस रहा दो प्रदेशों में बंटा अद्भुत तीर्थ चित्रकूट

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दो प्रदेशों में बंटा मंदाकिनी नदी का राम घाट

– पहली बार पूर्व ग्राम्य विकास मंत्री जमुना प्रसाद बोस ने की थी पहल, यूपीटी में हुई थी बैठक

– पवित्र नगर, मिनी स्मार्ट सिटी का दर्जा देने के बाद भी नही बदली तीर्थनगरी की सूरत

– यूपी में नहीं हो रहा है नागरिक सुविधाओं का विकास

रिपोर्ट – संदीप रिछारिया

दो प्रदेशों की समस्या झेलते श्रीकामदगिरि भगवान

धर्मक्षेत्र। सनातन धर्म के शैव, शाक्त व वैष्णव संप्रदायों का संवाहक महातीर्थ चित्रकूटधाम आज उस दोराहे पर आकर खड़ा है, जहां पर आकर उसे इस बात का मलाल होता है कि काश उसे कोई संवारने व संरक्षित करने वाला राजनेता आता। लेकिन दुर्भाग्य इस बात का है कि राजनेता आते हैं, घोषणाएं होती हैं, योजनाएं भी बनती हैं, पर जब उनके धरातल पर उतरने की बात होती है तो विकास के धन का बंदरबांट नेताओं और अधिकारियों की जुगलबंदी कर डालती है।

यह है समस्या

महातीर्थ चित्रकूट धाम दो प्रदेशों में बंटा हुआ है। रामघाट व कामदगिरि परिक्रमा का आधा भाग यूपी के पास है तो परिक्षेत्र के अधिकतर तीर्थस्थल एमपी के पास हैं। श्रीकामदगिरि परिक्रमा के तीन प्रमुख मुखारबिंद भी एमपी की सीमा में ही आते हैं। यूपी के चित्रकूट जिले का मुख्यालय कुल 8 किलोमीटर है तो एमपी के सतना जिले का मुख्यालय 80 किलोमीटर दूर है। हाल यह है कि विकास की योजनाओं को देखने व परखने के लिए चित्रकूट के जिलाधिकारी तो लगभग हर दूसरे दिन तो बांदा से कमिश्नर 80 किलेामीटर चलकर अक्सर आ जाते हैं। लेकिन वहीं सतना से जिलाधिकारी बहुत बड़े आयोजन होने पर ही यहां पर आते हैं। एसडीएम व तहसीलदार स्तर के अधिकारी ही यहां पर अधिकतर काम देखते हैं। ऐसे में जब पूर्व में मप्र सरकार ने चित्रकूट को पवित्र नगर व मिनी स्मार्ट सिटी घोषित कर विभिन्न विकास कार्यों की सौगातें दीं, लेकिन धरातल पर वह कार्य नही उतर सके। दोनों प्रदेशों के अधिकारियों व नेताओं में कोई समन्वय न होने के कारण भी विकास का रंग भी बेरंगा होता है।

अब वृहद स्तर पर बात करें तो चित्रकूट का वास्तविक क्षेत्रफल 84 कोस यानि 244 किलोमीटर का है। 84 कोस क्षेत्रफल में विभिन्न धर्मस्थल वन प्रस्तरों में हैं। आदिकाल के इन अनोखे धर्मस्थलों पर न तो पहुंच मार्ग है और न ही कोई नागरिक सुविधाएं।

कामदगिरि की समस्या: श्रीकामदगिरि परिक्रमा दो प्रदेशों में बंटी है। जहां एक तरफ यूपी की तरफ पूरी तरह से परिक्रमा मार्ग को टीन शेड से कवर कर दिया गया है, अंडरग्रांउंड केबिलिंग का काम अंतिम दौर में चल रहा है। पहले चरण में आधे परिक्रमा मार्ग में स्पीकर्स लगा दिए गए हैं। सफाई का काम भी एमपी की अपेक्षा यूपी में बेहतर है। यूपी में काम की मानीटरिंग कई चरणों पर की जा रही है। अब नगर पालिका विस्तार के बाद स्थिति पहले से बेहतर है। उधर एमपी में आज तक पूरी तरह से परिक्रमा शेड से नही ढक पाई है। हल्की बरसात में जलभराव तो दिन भर परिक्रमा मार्ग में सुअर, बकरियां और गीले कपड़े सुखाते लोग मिल जाते हैं। एमपी की अपेक्षा यूपी में भिखारियों की तादाद भी कम है। एमपी के इलाके में अपराध भी होते रहते हैं, जबकि यूपी के इलाके में अपराध कम होते हैं।

मंदाकिनी के घाटों की समस्या

उत्तर प्रदेश की तरफ रामघाट में अच्छे घाट बनाए गए हैं, जबकि मध्य प्रदेश की तरफ के घाट जीर्णशीर्ण अवस्था में कराह रहे हैं। बडे़ पुल से लेकर भरतघाट व नयागांव में भी आधे अधूरे घाटों को देखकर बाहर से आने वाले लोग दिक्कत महसूस करते हैं तो मप्र में पयस्वनी तो यूपी में सरयू नदी को भूमाफिया गायब कर चुके हैं। जीवनदायिनी नदियों के साथ इस तरह का व्यवहार किसी के गले नही उतर रहा है।

बोसजी ने की थी समस्या की पहचान

चित्रकूट का विकास न होने की वजह यहां के राजनेताओं में इच्छा शक्ति का अभाव है। वैसे तो दो प्रदेशों में बंटे होने के दर्द को सबसे पहले पूर्व ग्राम्य विकास मंत्री जमुना प्रसाद बोस ने समस्या के समाधान का प्रयास 70 के दशक में किया था। यूपीटी में बांदा के डीएम, झांसी के कमिश्नर के साथ रींवा, सतना के अधिकारियों ने आकर समन्वय की बातचीत की थी। यह निर्णय लिया गया था कि हर तीन महीने में अधिकारी बैठेंगे और दोनों प्रदेशों में बंटे चित्रकूट के विकास के लिए एक साथ रणनीति बनाकर काम करेंगे। ये मीटिंग दो या तीन बार हुईं लेकिन उसके बाद फिर मामला फाइलों में दबने की तरह गायब हो गया।

इसके बाद 80 के दशक में चित्रकूट के कामदगिरि प्रमुख द्वार राममोहल्ला के गोलोकवासी संत सिहस्थभूषण महंत प्रेम पुजारीदास जी महराज, निर्मोही अखाड़ा के महंत रामआश्रेदास जी महराज, पूज्य पंजाबी भगवान ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से मिलकर चित्रकूट को मुक्त क्षेत्र घोषित करवा लिया था। लेकिन यह व्यवस्था भी कुछ दिनों तक चली और फिर मामला गायब हो गया।

90 के दशक में नानाजी देशमुख का चित्रकूट आगमन हुआ। उन्होंने इस समस्या को समझकर दोनों प्रदेशों के प्रमुख सचिव स्तर की बैठक एमपीटी में करवाई और वह चित्रकूट को सदा विलक्षण तीर्थ मानकर चित्रकूट को केंद्रशासित प्रदेश बनाए जाने के हिमायती थे। कई बार उन्होंने इस मुद्दे को विभिन्न राजनेताओं के समक्ष उठाया भी था। लेकिन नानाजी के बाद अब इस मुद्दे पर बात करने के लिए कोई तैयार नही है।

संत मदन गोपालदास जी महराज

यह है निदान

श्रीकामदगिरि प्रमुख द्वार के संत मदन गोपालदासजी महराज कहते हैं कि श्रीचित्रकूटधाम तीर्थ विकास परिषद बनाकर मुख्यमंत्री योगीजी ने बड़ी सौगात दी है। इसका चहुंओर स्वागत किया जा रहा है। एमपी की अपेक्षा यूपी में काम भी बहुत अच्छे हुए हैं। एमपी की तो मुख्य सड़क ही लापता हो गई है। अब जब यहां पर संघ के सर संघ संचालक मोहन भागवत के साथ सभी प्रमुख महानुभाव मौजूद हैं तो हम यह आशा करते हैं कि उनके दिमाग में चित्रकूट को पूरे विश्व समुदाय की धरोहर बनाने का कोई प्लान होगा। अगर वह वास्तविकता में चित्रकूट को तीर्थ शिरोमणि बनाने के इच्छुक हैं तो इसे सीमाओं से मुक्त कर केंद्र को सौंप दें, जिससे यहां पर विकास में एकरूपता आ सके।

पूर्व में चित्रकूट आकर कामदगिरि का दर्शन करते संघ प्रमुख मोहन भागवत

तीन साल पहले कामदगिरि का पूजन कर किया था चित्रकूट विकास का वादा

श्रीगायत्री शक्ति पीठ के व्यवस्थापक डा0 रामनारायण त्रिपाठी कहते हैं कि तीन साल पहले जब सर संघ संचालक पधारे थे, तो उनकी जिम्मेदारी श्रीकामदगिरि के पूजन करवाने की थी। तब उन्होंने चित्रकूट की वास्तविक समस्या से उन्हें अवगत कराया था। चित्रकूट का महात्म सुनकर वह अत्यंत गदगद थे। श्री त्रिपाठी ने सरसंघ संचालक को बताया कि चित्रकूट ऐसा स्थान है जो श्रीराम को सर्वाधिक प्रिय है। श्री राम के चित्रकूट आगमन के पूर्व एक बड़ा शक्ति पीठ था, श्रीराम ने यहां पर शक्ति की आराधना की है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने इसे आध्यात्मिक राजधानी माना था, लेकिन दो राज्यों में बंटा होने के कारण विकास नही हो पा रहा है। अगर यह ट्रेन व बस के द्वारा देश के चारो कोनों से जुड़ जाए तो विकास ज्यादा संभव हो सकता है। इस पर श्री भागवत ने कहा कि वह वचन देते हैं कि अब चित्रकूट के विकास में कोई कोर कसर नहीं बाकी रखेंगे। तब से लेकर अब तक लगभग 6 नई ट्रेन चल चुकी हैं। बसें भी काफी दूर दूर तक जाने लगी हैं। रामवन पथ गमन की रूपरेखा भी उनके जाने के बाद ही बनी थी। श्रीत्रिपाठी ने कहा कि अब उनका लक्ष्य चित्रकूट को प्रदेश की सीमाओं से मुक्त कराना है। वह बताते हैं कि उन्होंने खुद की लिखी कालजयी चित्रकूट दर्शन एवं वृहद महात्म सौंपी थी। इसको पढ़कर वह निश्चित तौर पर चित्रकूट के विकास के लिए कार्य करने का काम करेंगे।

डीआरआई के संगठन सचिव अभय महाजन कहते हैं कि यूपी के चित्रकूट में विकास के काफी काम हुए हैं। मुख्यमंत्री योगी जी ने श्रीचित्रकूटधाम तीर्थ विकास परिषद बनाने की प्रक्रिया लगभग पूरी कर ली है। बताया कि उन्होंने पिछले दिनों मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान को इसी प्रकार एमपी के क्षेत्र में विकास परिषद बनाने के लिए पत्र दिया। जिसे उन्होंने सैद्वान्तिक रूप से स्वीकार किया। पर्यटन व आध्यात्म मंत्री उषा ठाकुर आईं और उन्होंने चित्रकूट विकास के लिए एक नई रणनीति बनाकर आम लोगों व अधिकारियों के साथ बैठकर मंथन किया। जल्द ही चित्रकूट धाम में विकास के कई काम होते दिखाई देंगे।

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