पयस्वनी को जागृत करने के लिए धर्मयुद्ध आवश्यकः साध्वी कात्यायनी गिरि

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चित्रकूट। धर्म की आड़ लेकर अधर्म किया जाए तो उसका विनाश किया जाना आवश्यक है। नदियों को पुर्नजीवित करने में कोई मठ, मंदिर या आवास आदि रास्ते में आ रहा है तो उसे गिरा देना चाहिए। क्योंकि उन्होंने धर्म की आड़ लेकर अधर्म किया है। नदियों के रास्ते में भवन, मठ व मंदिर बनाना अधर्म है। यह बातें साध्वी कात्यायनी गिरि ने कथा के आठवेें दिन श्री कामदगिरि परिक्रमा मार्ग स्थित ब्रहमकुंड के शनि मंदिर में व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि अब नदियों को सदानीरा व अक्षुण्य बनाने के लिए धर्मयुद्ध की जरूरत है। चित्रकूट में कथा के माध्यम से शुरू हुआ पयस्वनी को जागृत करने का धर्मयुद्ध तब तक चलेगा जब तक वह हमें फिर से अपने पूरे वैभव के साथ दर्शन नहीं देंती। उन्होने इस पुनीत कार्य के लिए सभी को जुटने व जुड़ने का आवाहन करते हुए कहा कि विश्व की पहली नदी जिसे स्वयं प्रजापिता ब्रहमा ने यहां से उदघाटित किया। इसे जिंदा करना हमारी जिम्मेदारी है।

उन्होंने कहा कि व्यक्ति का स्वयं का कोई बल नही होता। भगवान का ही दिया बल होता है। हनुमान जी ने राम- राम करते लंका जला दी। कुछ भी अच्छा-बुरा काम करते हैं, तो उसमें अवरोध आते ही हैं। पयस्वनी, सरयू को पुनर्जीवित करने में, मंदाकिनी को सदानीरा स्वच्छ बनाने में अवरोध उत्पन्न हो सकते हैं। मंदाकिनी व पयस्वनी को सदानीरा बनाने के लिए तमाम लोगों ने धर्म के नाम पर अधर्म किया है।

उन्होने कहा कि हम छोटा सा मंदिर बना देते हैं तो गर्व आ जाता है। छोटा कार्य करने पर गर्व आ जाता है। हनुमान जी कहते हैं कि जो यह काम हुआ उसे भगवान राम ने किया। हमें भी नदी का काम करने पर उसे भगवान का कराया माना जाना चाहिए। इस दौरान कथा के लिए व्यवस्था करने का काम सत्ता बाबा, अखिलेश अवस्थी, गंगा सागर महराज, संत धर्मदास, राम रूप पटेल आदि कर रहे हैं। आज की कथा में चित्रकूट के तमाम धर्माचार्य व साधू संत पहुंचे।

संदीप रिछारिया

Sandeep Richhariya

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