पीएम के संसदीय क्षेत्र में वंचित समुदाय झेल रहा कोविड-19 की विभीषिका, कभी नमक रोटी, तो कभी नमक चावल खाने को मजबूर है,

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– बेरोजगारी के साथ मुसहर समुदाय के सामने खड़ा हुआ भूख का संकट

– भूखे पेट सो रहे मुसहर जाति के ये दर्जनों परिवार

वाराणसी: (सोमवार 28/09/2020) उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश में लॉकडाउन की सबसे ज्यादा मार यदि किसी को पड़ी है, तो वो हैं गरीब और मुसहर जाति के लोग. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के सेवापुरी विकास खंड में हाल ही में नीति आयोग जरुर विकास का खाका खींच रहा है लेकिन चित्रसेनपुर गांव में मुसहर जाति के दर्जनो परिवारों के सैकड़ों लोग भूखे पेट सोने के लिए विवश हैं. मुसहर जाति के ये सभी लोग वर्षों से चित्रसेनपुर गांव में रह रहे हैं. दोना पत्तल बनाकर, मेहनत मजदूरी करके गुजर-बसर करते रहे हैं.

देश भर में तेजी से बढ़ रहे कोरोना वायरस की वजह से मुसहर जाति के इन लोगों को कोई भीख भी देने के लिए तैयार नहीं है. जहां भी ये जाते हैं, वहां तिरस्कार ही झेलना पड़ता है. गांव के लोगों को डर है कि कहीं इनकी वजह से वे कोरोना वायरस की चपेट में न आ जायें.

मजदूरी नहीं मिलने और इनके परम्परागत व्यवसाय चौपट होने के कारण इन मुसहर समुदाय के सामने कोरोना ने भूखमरी का संकट खड़ा कर दिया है। लॉक डाउन के चलते अनलाक में भी इनके गांठ में बचा थोड़ा बहुत पैंसा तो खत्म होगा ही काम धंधे में लगाया रुपया भी बर्बाद हो गया। दोना पत्तल व मजदूरी करने वाले लोगों ने बताया कि लगन में दोना पत्तल बिक जाने शुरू होते थे। लेकिन इस बार शुरूवात ही नहीं हो पा रही है। बचा के रखे हुए रुपये से किसी तरह से परिवार का पेट पाल रहे थे। बनाएं गए दोना पत्तल का बिक्री नहीं हुआ तो वह भी खराब हो गए। ऐसी स्थिति में भूखमरी के साथ-साथ धंधा भी खत्म हो गया है।

मुसहर समाज के लोगों का कहना है कि कई बार राशन कार्ड बनाने और बने हुए राशनकार्ड के यूनिट बढ़ाने को आवेदन के बाद भी राशनकार्ड भी नहीं बना और उनके पास चावल, आटा, सब्जी आदि का कोई स्टॉक नहीं है. हर दिन मांगकर लाते हैं और उसी को बनाकर खाते हैं. लेकिन, अब स्थिति अलग है. जहां भी भीख मांगने जाते हैं, वहां से लोग डांटकर भगा देते हैं. इस बुरे वक्त में भी कुछ दयालु लोग हैं, जो कभी- कभार चावल आदि दे देते हैं. जिस दिन कुछ मिल गया, उस दिन भोजन मिल जाता है, वरना भूखे पेट सो जाते हैं.

इन लोगों ने बताया कि विगत कई दिनों से महज नून-भात, रोटी और मुर्गे के फेके पंखों से मांस निकालकर ही खा पा रहे हैं. बाकी दिन खाली पेट ही सोना पड़ रहा है. मजबूरी है. कुछ कर भी नहीं सकते. रेखा वनवासी, बुधना, हीरामनी, सामा, सुदामा, अनिल, पिंटू मुसहर व अन्य ने बताया कि वर्षों से गांव में रह रहे हैं. आज तक कोई सरकारी सुविधा नहीं मिली. यहां तक कि पीने के पानी के लिए एक हैंडपंप भी नहीं लगा है पानी काफी दूर से लाना पड़ता है। इनका कहना है कि दर्जनो परिवार के करीब सैकड़ों लोग, जिनमें छोटे-छोटे बच्चे भी हैं, पेड़ के नीचे सोने के लिए मजबूर हैं. इस वर्ष लगातार बारिश में हम और हमारे बच्चे भींगते रहे.

खंड विकास अधिकारी से पूछने पर उन्होंने कहा कि प्रत्येक परिवार को तत्काल राशन भिजवा दिया जायेगा. इन्हें सरकारी सुविधाओं का लाभ मिल सके, इसके लिए इनका आधार कार्ड और राशन कार्ड भी बनवाया जायेगा.

वंचित समुदाय के दयनीय हालात की जानकारी होते ही रेड ब्रिगेड ट्रस्ट के प्रमुख अजय पटेल व सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार गुप्ता गांव में पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया और कहा कि “यहां काफी समय से उक्त लोगों को कोविड-19 के कारण बेरोजगारी और गरीबी के चलते काम धंधा बंद होने से यहां के लोग खाना सही से नहीं खा पा रहे है. कभी नमक रोटी, तो कभी नमक चावल खाने को मजबूर है. ये समस्या आजकल की नहीं है, विगत पांच माह से ऐसा ही चल रहा है। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पूरे मामले को सोशल मीडिया पर डालकर इन परिवारों की मदद की अपील की है साथ ही पूरे मामले को आलाधिकारियों सहित राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में एक रिपोर्ट बनाकर इन परिवारों को समुचित सहायता करने की मांग करेंगे।

धन्यवाद

द्वारा

राजकुमार गुप्ता
वाराणसी

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