बुंदेलखंड में महबुलिया अपने आप में प्रचलित प्रथा से बिल्कुल भिन्न है

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मातादीन प्रजापति इचौली
इचौली (हमीरपुर)बुंदेलखंड में महबुलिया अपने आप में प्रचलित प्रथा से बिल्कुल भिन्न है। इस प्रथा में चंद ऐसे बदलाव किये गये हैं कि शोक का यह काम भी हर्षोल्लास से ओत प्रोत हो जाता है।पितृ पक्ष में पितरों के तर्पण का काम पुरुषों द्वारा किया जाता है।लेकिन यहां लड़किया पितरो के तर्पण का काम अनूठे ढंग से करती है।
महबुलिया एक ऐसी अनूठी परंपरा है, जिसे घर के बुजुर्गों के स्थान पर छोटे बच्चे मनाते है। समय में बदलाव के साथ हालांकि अब यह परम्परा गांवों तक ही सिमट चली है। बुंदेलखंड में लोक जीवन के विविध रंगों में पितृपक्ष पर पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और समर्पण का भी अंदाज जुदा है। पुरखों के तर्पण के लिए यहां पूजन अनुष्ठान श्राद्ध आदि के आयोजनों के अतिरिक्त बच्चों (बालिकाओं) की महबुलिया पूजा बेहद खास है। जो नई पीढ़ी को संस्कार सिखाती है।
पूरे पंद्रह दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम में गोधूलि वेला पर हर रोज पितृ आवाहन ओर विसर्जन के साथ इसका आयोजन सम्पन्न होता है। इस दौरान यहाँ के गांवो की गलियां तथा चौबारे बच्चों की मीठी तोतली आवाज में गाये जाने वाले महबुलिया के पारम्परिक लोक गीतों से झंकृत हो उठते है। समूचे ¨वध्य क्षेत्र में लोकपर्व का दर्जा प्राप्त महबुलिया की पूजा का भी अपना अलग ही तरीका है। बच्चे कई समूहों में बंटकर इसका आयोजन करते है। महबुल को एक कांटेदार झाड़ में रंग बिरंगे फूलों और पत्तियों से सजाया जाता है। विधिवत पूजन के उपरांत उक्त सजे हुए झाड़ को बच्चे गाते बजाते हुए गांव के किसी तालाब या पोखर में ले जाते है जहां फूलों को कांटो से अलग कर पानी मे विसर्जित कर दिया जाता है। महबुलिया के विसर्जन के उपरांत वापसी में यह बच्चे राहगीरों को भींगी हुई चने की दाल और लाई का प्रसाद बांटते हैं। यह प्रसाद सभी बच्चे अपने घरों से अलग-अलग लाते हैं। 103 वर्षीय बृद्धा फुलमतिया गुप्ता ने बताया कि महबुलिया को पूरे बुंदेलखंड में बालिकाओं द्वारा उत्सव के रूप में मनाया जाता है। हर रोज जब अलग-अलग घरों में महबुलिया पूजा आयोजित होती है तो उसमें घर की एक वृद्ध महिला साथ बैठकर बच्चों को न सिर्फ पूजा के तौर तरीके सिखाती बल्कि पूर्वजों के विषय मे जानकारी देती है। इसमें पूर्वजो के प्रति सम्मान प्रदर्शन के साथ सृजन का भाव निहित है। झाड़ में फूलों को पूर्वजों के प्रतीक के रूप में सजाया जाता है जिन्हें बाद में जल विसर्जन कराके तर्पण किया जाता है। दूसरे नजरिये से देखा जाए तो महबुलिया बच्चो के जीवन मे रंग भी भरती है। इसके माध्यम से मासूमों में धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार पैदा होते हैं।

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