बेटी-दिवस तभी सार्थक होगा जब हर नारी में देवी का स्वरूप दिखेगा

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मायके के लिए बेटी ससुराल जाते प्रशासक न बने

सर्वेश कुमार त्रिपाठी

रायबरेली – अनेकानेक दिवस संकल्प और पुनर्विचार दिवस के रूप में होते हैं। दशहरा इसलिए है कि दसों दिशाओं और दसों इंद्रियों पर जब रावण का आक्रमण हो तो मजबूत संकल्पों से उसे हराने का कार्य किया जाए। दीपावली का आशय अज्ञान, स्वार्थ, मोह जब आंखों की दृष्टि पर पट्टी बांध दे तब अपने मजबूत इरादों का दीप जलाने का निश्चय किया जाए।

बेटी-दिवस तभी सार्थक होगा जब चिंतन विधिक रहेगा

सबकी बेटियां अपनी बेटी समान लगे तभी बेटी दिवस की सार्थकता होगी । यह तभी संभव हो सकता है जब हर पल सबकी बहनें अपनी बहन, सबकी मां अपनी मां, मित्रों की पत्नी भाभी मां सी लगे। मन में नारी के प्रति विकार का एक भी तरंग होगा तब शायद बेटी-दिवस भी स्लोगन और भाषण का दिवस हो जाएगा ।

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम ने कहा

अनुज बधू भगिनी सूत नारी, सुनु सठ कन्या सम ये चारि। इन्हहि कुदृष्टि बिलोकत जोई ताहि बधे कछु पाप न होई। (किष्किंधाकांड, /9-7)
इस चौपाई के अर्थ की जरूरत नहीं है। सभी समझते हैं। यह श्रीराम का संविधान था और भारतीय संविधान की अनेक धाराएं इसी पर आधारित हैं। संविधान तोड़ा तो धरती पर IPC की धाराएं दण्ड देंगी और किन्हीं प्रभावों से बच निकले तो बालि की तरह वध तो होना ही है जीवन के किसी न किसी मोड़ पर।

बेटियां भी संविधान से बंधी होती हैं

बेटियों (नारी) को भी श्रीराम के संविधान से बंधा रहना पड़ेगा। शूर्णपखा न बनें। नारी होने के नाते कोई लाभ या प्रलोभन मिले तो तत्काल ठुकराएं । माता-पिता (मायका-पक्ष) के लिए बेटी हैं तो सास और श्वसुर (ससुराल) के लिए भी बेटी ही बनी रहें। यहां आते प्रशासक न बन जाएं ।

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