भूख कलंक भी है और प्रतिकार का मारक हथियार भी

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सैकडों वर्षों पहले इंसान की सबसे बडी जरूरत थी भोजन का जुगाड करना . भोजन आज भी देश दुनिया का बडा विषय है . करोडों लोगों को आज भी दो वक्त का भोजन नसीब नहीं है . तभी तो खाद्य सुरक्षा जैसा कानून अस्तित्व में आया ताकि कोई भूख से दम न तोड दे .

लेकिन भूखा रहना व्यवस्था के खिलाफ विरोध का बहुत बडा अहिंसक हथियार भी है . सात हजार वर्ष पूर्व कैकेयी ने कोप भवन में रहकर राजा दशरथ से इसी हथियार का इस्तेमाल किया था . आज से ठीक 91 वर्ष पूर्व अंग्रेजों के दमन के खिलाफ कर रहे आमरण अनशन के चलते उनका 63 दिन बाद लाहौर सेंट्रल जेल में निधन हो गया था . जतिन दास के नाम से मशहूर यतीन्द्रनाथ दास 13 जुलाई 1929 से आमरण अनशन पर बैठ गए थे . इसके पहले एक बार मेमन सिंह जेल में भी वह 20 दिन भूख हडताल पर रहे थे . जेल अधीक्षक के माफी मांगने के बाद उन्होंने भूख हडताल समाप्त की थी .

हमारे देश में एक राज्य आँध्र प्रदेश का निर्माण भी इसी भूख हडताल की देन है . आँध्र प्रदेश के जनक पोट्टी श्रीरामुलु 19 अक्टूबर 1952 को मद्रास में बुलुसु संबामूर्ति में अपने घर पर आँध्रप्रदेश राज्य निर्माण को लेकर आमरण अनशन पर बैठ गए थे . 56 वें दिन वे कोमा में चले गए थे . 15 दिसम्बर 1952 को अपनी भूख हडताल के 58 वें दिन श्रीरामुलु ने आखिरी सांस ली . पूरे मद्रास प्रांत में लोगों का आक्रोश भडक उठा . आखिरकार 19 दिसम्बर 1953 को नेहरू को आँध्रप्रदेश को अलग राज्य का दर्जा देना पडा . और 1नवम्बर 1956 को आँध्रप्रदेश अलग राज्य बना . हालांकि श्रीरामुलु 1946 – 1948 के मध्य तीन बार आमरण अनशन कर चुके थे .

हाल ही में जाने माने पर्यावरणविद , शिक्षाविद व इंजीनियर स्वामी सानंद अर्थात् प्रो. जी डी अग्रवाल का अनशन सुर्खियों में रहा था . जब गंगा की अविरलता की मांग को लेकर अनशन कर रहे स्वामी सानंद ने 111 दिनों के लम्बे अनशन के बाद अपने प्राण त्याग दिए थे . स्वामी सानंद 22 जून 2018 से गंगा एक्ट को लेकर अनशनरत थे . प्रो. अग्रवाल महात्मा गाँधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के मानद प्रोफेसर रहे हैं. मेरा भी उनसे पानी व पर्यावरण पर खबर को लेकर दो बार मिलना हुआ था .

भूख अगर सभ्य नागरिक समाज के लिए अभिशाप है , कलंक है तो भूखा रहकर व्रत रखना आध्यात्मिक चेतना का विकास भी वहीं दूसरी ओर भूख हडताल प्रतिकार का एक बडा हथियार भी है जो अकसर गूंगी – बहरी व्यवस्था को जागृत करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है .

यतीन्द्रनाथ दास महज 25 वर्ष की अल्पायु में वो पा गए जो लोग लंबा जीवन जीने के बाद भी हासिल नहीं कर पाते हैं .

दूसरी ओर समाज में एक वर्ग ऐसा भी है जो भरे पेट होने के बाद भी भूखा है . किसी शायर ने कहा है कि –
अब तो भरे पेट भी भूख का एहसास होता है
न जाने कितने तरह की भूख लगने लगी जमाने में !

Rakesh Kumar Agrawal

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