मत इतना इतरा रे बंदे

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राकेश कुमार अग्रवाल
देश में कोरोना की मार के चलते बेकाबू होते हालात को देखते हुए दुनिया में लगभग आधा सैकडा देशों ने भारत की ओर मदद का हाथ बढाया है . जिसके चलते अब ऐसी संभावना जताई जा रही है कि बडी जल्दी हालात नियंत्रण में आ सकते हैं .
दरअसल इंसान की एक फितरत है कि वह जब जीवन में लगातार दूसरों से कुछ ज्यादा और बेहतर हासिल करता जाता है तो उसे खुद पर गुमान होने लगता है . उसका यही गुमान अहम में बदलते देर नहीं लगती . उसे यह लगने लगता है कि मैं हूं तो मेरे सामने कोई और नहीं है . जबकि प्रकृति का नियम और कायदा कानून इंसानी समाज के कायदों से अलहदा होता है . प्रकृति ने भले प्राकृतिक संसाधनों का सभी देशों के बीच समान वितरण न किया हो लेकिन दुनिया के हर देश को भले उसकी भौगोलिक परिस्थिति बिल्कुल अलग हो . ऐसे देशों को भी उसने कुछ न कुछ ऐसा जरूर दिया है ताकि उसकी प्रासंगिकता पूरी दुनिया में बनी रहे . जिसका संदेशा बिल्कुल साफ है कि सभी देशों को एक दूसरे के मदद की जरूरत है . भले हमने धरातल पर सीमा रूपी लकीरें खींच दी हों .
दुनिया को वसुधैव कुटुम्बकम और पंचशील के सिद्धान्तों की अवधारणा देने का मकसद भी यही था कि सभी एक दूसरे के अस्तित्व को स्वीकारें और एक दूसरे के सहभागी बनें . क्योंकि सभी को एक दूसरे के मदद की जरूरत कभी भी किसी भी रूप में कभी ङी पड सकती है .
दुनिया के कथित विकसित देश हों या फिर विकासशील देश एक अति सूक्ष्म वायरस ने इन सभी देशों को घुटनों पर ला दिया है . और इनमें से ऐसा कोई भी देश नहीं है जो कराह न रहा हो . कोरोना वायरस से लगातार हो रही मौतों ने इंसानों और सभ्य समाज ही नहीं सरकारों को भी हिलाकर रख दिया है .
गोस्वामी तुलसीदास ने भी लिखा है कि
परहित सरस धर्म नहीं भाई
परपीडा सम नहीं अधमाई !
कमोवेश इसी तरह की बात रहीम ने कही थी कि
वो रहीम सुख होत है उपकारी के संग
बांटने वारे को लगे , ज्यों मेंहदी के रंग !
प्रधानमंत्री मोदी अपने पहले ही कार्यकाल से की जाने वाली धडाधड विदेश यात्राओं के कारण सभी के निशाने पर रहे हैं . लेकिन इन यात्राओं का दूसरा पक्ष यह रहा कि विदेशों से भारत के रिश्ते प्रगाढ हुए . जो एक तरह से एक इन्वेस्टमेंट होता है . दुनिया के तमाम देशों की यात्रा कर मोदी ने उन देशों के साथ आपसी रिश्तों को बेहतर करने का प्रयास किया . इसी प्रयास के तहत भारत ने विषम परिस्थितियों में दूसरे देशों की मदद कर उनके साथ खडे होने की कोशिश की थी . गत वर्ष जब कोरोना से दुनिया त्राहिमाम कर रही थी तब अमेरिका समेत तमाम देशों को भारत ने हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन गोलियां उपलब्ध कराई थीं . हिंदुस्तान की कोरोना वैक्सीन विकसित होते ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वैक्सीन कूटनीति को अंजाम दिया . उन्होंने दुनिया के 80 से अधिक देशों में वैक्सीन पहुंचा कर अपनी नेकनीयती और दरियादिली दिखाई थी .
आज जब कोरोना के चलते हिंदुस्तान अपने को ऐसे विकट हालात से निपटने में असहाय पा रहा है क्योंकि जिस तरह से कोरोना की विकरालता का दायरा शहरों , महानगरों से निकलकर ठेठ ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचा है उसने सरकार के हाथ पांव फुला दिए हैं. क्योंकि देश में महामारी से निपटने के लिए समुचित साधन संसाधन ही नहीं हैं .
देश के प्रख्यात सर्जन डा. देवी शेट्टी के मुताबिक देश में अतिरिक्त 5 लाख आईसीयू बेड , दो लाख नर्स , और डेढ लाख डाॅक्टरों की तत्काल जरूरत है . उन्होंने चेताया है कि अन्यथा देश में हालात और भी बदतर हो सकते हैं .
विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला के अनुसार लगभग आधा सैकडा देश भारत की मदद के लिए आगे आए हैं . जो ऑक्सीजन जनरेटिंग प्लांट्स , ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स और ऑक्सीजन सिलिंडर्स के अलावा रेमेडिसिवर इंजेक्शन एवं वेंटीलेटर आदि उपलब्ध करा रहे हैं . ताकि बेहतर तरीके से कोरोना महामारी से निपटा जा सके .
कोरोना का संदेश तो बिल्कुल साफ है . और यह संदेश केवल देशों के लिए नहीं पूरी मानव सभ्यता और मानव समाज के लिए भी है कि एक दूसरे के करीब आईए . सब बैर भाव और अहम भुलाकर एक दूसरे के मददगार बनिए . क्योंकि एक दूसरे के बिना सभी अधूरे हैं और सबको एक दूसरे की मदद की जरूरत है . इसलिए ज्यादा न इतरा रे बंदे . कहते हैं न कि कभी नाव पानी पर कभी पानी नाव में . आज हालात बिल्कुल वैसे ही हो गए हैं जब नाव में लगातार पानी भरता जा रहा है और चारों ओर चीख पुकार मची है . आइए हम सब मिलकर ऐसे विकट हालात का धैर्य के साथ सामना करें . देर सबेर ही सही हम होंगे कामयाब एक दिन .

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