मोदी-शाह अब तक की सबसे निर्मम गैर पारंपरिक राजनीतिक जोड़ी

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डॉ अतुल मोहन सिंह गहरवार

महाराष्ट्र में जल्द ही कुछ बड़ा होने वाला है। संभव है अगले महीने तक कोई तहलका मचा देने वाली खबर आ जाए। सारी कायनात इनके लिए मौके बना रही है। इस बार का झगड़ा ठाकरे परिवार के लिए सामान्य झगड़ा नहीं है। महाराष्ट्र के लिए राजनीतिक गोटियां बिछ चुकी हैं। राजनीतिक और कूटनीतिक चालें दोनों पक्षों से चलनी शुरू हो चुकी हैं। जो लोग इन दोनों को जानते हैं वह यह भी जानते होंगे कि वह बहुत दिनों बाद भी बहुत छोटे-छोटे घावों तक के बदले लेते हैं। महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ न जाकर उद्धव ठाकरे ने बीजेपी और मोदी-शाह की जो बेइज्जती की थी मोदी-शाह उसके गहरे घाव लिए बैठे हैं।

वह झुक सकते थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच-बचाव करने से सरकार बन भी सकती थी, पर इस बार मोदी-शाह ने शिवसेना से ख़ुद को दूर करना ही ज़रूरी समझा। आने वाले दिनों में ठाकरे परिवार की कमर टूटने वाली है। यह तय है, लिखकर रख लीजिए। उद्धव जानते हैं कि उन्होंने आग में हाथ दे दिया है। इसलिए अब वह विकल्प की तरफ़ तेज़ी से ख़ुद को फ्रेम्ड कर रहे हैं। इस देश के पिछले 30-40 सालों की राजनीति का ट्रैक रिकॉर्ड उठाकर देख लें, मोदी-शाह से भिड़ने वालों के करियर ख़त्म हो गए हैं। यह दोनों अज़ीब तरह से राजनीति करते हैं, एकदम ग़ैरपारंपरिक। निर्मम, क्रूर।

आप विपक्ष की बात कर रहे हैं। गुजरात में केशुभाई पटेल की तूती बोलती थी। बीजेपी में आडवाणी सर्वेसर्वा थे। संजय जोशी बड़े नाम थे। सुषमा दिल्ली लॉबी की मज़बूत नेत्री थीं। गड़करी संघ में मज़बूत थे। राजनाथ अटल के बाद महत्त्वपूर्ण नेता माने जाते थे। सोचिए, इतने बड़े-बड़े धुरंधरों को साइड करना! मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। आम राजनेता ऐसा नहीं कर पायेगा। यह सब ईश्वरीय कारनामें हैं। ईश्वरीय सत्ता चाहती है कि 21 वीं सदी भारत की हो। भारत विश्व गुरु बन सनातन संस्कृति का लोहा मनवाए। इसलिए यह सब दिव्य कारनामे होते चले जा रहे हैं। यही कारण है कि प्रभुश्रीराम के शुभाशीर्वाद से विश्व के सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक व्यक्तित्व मोदी-शाह की इस दिव्य जोड़ी ने सबको ठिकाने लगा दिया।

अटल बिहारी वाजपेयी दिल्ली से गुजरात चलकर नरेंद्र मोदी को सजा देने गए थे। ख़ुद अलग-थलग पड़ गए। चुनाव भी हार गए।
6 साल के पीएम 120 सांसदों पर सिमट गए। अटल जी की हार, यह बेहद आश्चर्यचकित करने वाला था। पूरे भारत में भाजपा का साइनिंग इंडिया चला, पर परिणाम हार के रूप में मिला। शायद ईश्वरीय सत्ता भी अटल जी को इज्जत देकर आगे बढ़ गई, क्योंकि राष्ट्रहित के लिए कुछ कार्य सिद्धांत और नीतियों से अलग हटकर किये जाते हैं। वह अटलजी जैसा सरल और सीधा व्यक्तित्व नहीं कर सकता था। उसके लिए कुटिल चालें आवश्यक थीं। मोदी और शाह की यह जोड़ी इन चालों में कुशल है। सनातन संस्कृति और हिंदुत्व इन दोनों की नस नस में कूट-कूटकर भरा है। इसलिए ईश्वरीय सत्ता ने इन दोनों महारथियों पर अपनी अनुकम्पा व दिव्य आशीष देकर भारतवर्ष की राजनीति में इन्हें विधर्मियों व सेक्युलर गैंग के सामने उतार दिया है।

न जाने कैसी राजनीतिक समझ है इनकी। न जाने कैसी वैचारिक तैयारी है इनकी। इनका रोडमैप और घेरने के सारे शस्त्र सदैव इनके पास रहते हैं। सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा, मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, लालू प्रसाद यादव, ममता बैनर्जी, अरविंद केजरीवाल, मायावती, एचडी देवेगौड़ा, एमके स्टालिन, शरद यादव, शरद पवार और नीतीश कुमार जैसे राजनीति के कुशल खिलाड़ी भी इन दोनों की चालों से न बच सके। आज के समय में उपर्युक्त नेताओं में कई अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं। कई राजनीतिक दल समाप्ति की ओर हैं। राजनीतिक वजूद खत्म होता चला जा रहा है। इन जातिवादियों और परिवारवादियों पर अस्तित्व का संकट मंडराने लगा है। सबसे आश्चर्यजनक यह था कि सपा-बसपा के मजबूत गठबंधन के किले को यूपी से बुरी तरह ध्वस्त कर रौंद दिया था।

आप देखिए जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 खत्म, तीन तलाक़ से मुस्लिम महिलाओं को आजादी, एनआरसी-एनपीआर, अयोध्या में राममंदिर, एकसमान शिक्षा नीति और अगला समान नागरिक संहिता आप ठीक से सोचिए सारे के सारे असंभव मुद्दे थे। इन लोगों ने सारे मनचाहे तरीक़े से हल कर लिए। राममंदिर की पूरी जमीन हिंदुओं को दिलवा दी। सुई की नोंक के बराबर भी भूमि मुस्लिम न ले पाए। अनुच्छेद-370 और 35 ए जड़ से ही उखाड़ फेंका। चीन पिटे मुंह बताने लायक नहीं है कि हुआ क्या!

तमाम राजनीतिक घृणाओं के बावज़ूद आपको इन दोनों से सीखना तो चाहिए कि देखते ही देखते आख़िर कैसे पूरे सिस्टम को अपनी तरफ़ झुका लिया है। इसलिए मैं कहता हूं मोदी जी साम दाम दंड भेद सब नीतियों में निपुण हैं। और वर्तमान में इसके बगैर हिंदू राष्ट्र निर्माण कि कल्पना भी नहीं की जा सकती है। कोई माने या न माने यह मोदी व शाह की जोड़ी दिव्य है। इन पर ईश्वरीय अनुकम्पा है। प्रभुश्रीराम ने इनको भारत वर्ष में विलुप्त होती जा रही सनातन संस्कृति को पुनर्स्थापन हेतु अवतरित किया है। दोनों में कुछ बात तो है। क्या आप नहीं मानते? सोचिये और तब तक के लिए भव्य रामजन्मभूमि मंदिर की शुरुआत पर जय बोलिये। जिस ढंग से मंदिर फटाफट बनवाया जा रहा है। समझ लीजिए कि इससे भी कुछ तो बड़ा 2021 में होने वाला है। जयश्रीराम के बाद अब जयश्रीकृष्ण और जयश्रीकाशीनाथ।

Mahendra

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