राम भक्ति के मंच पर राधे राधे

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राष्ट्रीय रामायण मेला तीसरा दिन।
– गिनीज बुक आफ वर्ड रिकार्ड में नाम दर्ज कराने वाली कथक नर्तकियों ने प्रस्तुत किया मधुराष्टक, रामवंदना, शिव स्तुति
– लखनउ की कलाकारों के साथ महोबा के दल ने प्रस्तुत किया भाव गीत
– मानस मर्मग्यों ने राम भक्ति की पराकाष्ठा के कराए दर्शन
– रासलीला व रामलीला में जुट रही है भारी भीड़

चित्रकूट , श्री चित्रकूट धाम केे रामघाट पर चंदन घिसते घिसते प्रभु के दर्शन करने वाले गोस्वामी संत तुलसीदास महराज के लिखे शिवाष्टक को राष्ट्रीय रामायण मेला के मंच से बांदा के नृत्य कला केंद्र की गीनिज बुक आफ वर्ड रिकार्ड में नाम दर्ज कराने वाली श्रद्वा निगम की शिष्याओं नेे मंच से रूद्राष्टकम, राम जन्म व मधुराष्टकम की प्रस्तुति देकर लोगों को दांतों तले उंगलियां दबाने को मजबूर कर दिया। रविवार को मंच का प्रारंभ हनुमान चालीसा से हुआ। कार्यकारी अध्यक्ष प्रशांत करवरिया ने प्रभु श्रीराम, माता जानकी व लक्ष्मण की आरती पूजा कर रामायण मेला के तृतीय दिवस के कार्यक्रमों की श्रंखला का श्रीगणेश किया। वृंदावन से पधारे पं कैलाश शर्मा ने सुमधुर भजनों की प्रस्तुति से दर्शकों की भरपूर तालियां बटोरी।

इसके बाद श्रीब्रज कृष्णलीला रामलीला संस्था के कलाकारों ने रामलीला का मंचन किया। अहिल्या उद्धार का मनोहारी मंचन किया। दोपहर को कवि गोष्ठी का आयोजन हुआ। महामंत्री करुणा शंकर द्विवेदी, कोषाध्यक्ष शिवमंगल शास्त्री, प्रद्युम्न दुबे लालू, घनश्याम अवस्थी, मो यूसुफ, राम प्रकाश श्रीवास्तव, हेमंत मिश्रा, ज्ञानचन्द्र गुप्ता, सूरज तिवारी, कलीमुद्दीन बेग, सत्येन्द्र पांडेय, इम्त्यिाज अली लाला, विकास, नत्थी सोनकर आदि मौजूद रहे।

चित्रकूट की धरा पर आकर राम बने विश्व नायक मप्र खंडवा से पधारे पं. रमेशचन्द्र तिवारी ने कैकेई चरित्र पर व्याख्यान दिए। उन्होंने कहा कि कैकेई के बलिदान, तपस्या, तप अपने ऊपर जो कलंक, अपयश लिया उसके फलस्वरूप मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जन-जन के नायक एवं विश्व नायक बने। अगर कैकेई अपने ऊपर यह अपयश न लेती तो राम जन-जन के नायक नहीं बनते। इसलिए माता कैकेई को धन्य है। मुजफ्फरपुर बिहार से पधारे साहित्यकार डा. संजय पंकज ने राम की विशद व्याख्या करते हुए कहा कि संपूर्ण भारतीयता के उदात चरित्रणाम अपने मानवीय फैलाव में वैश्विक हो जाते हैं।

बिहार के सीतामढ़ी से आए विमल कुमार परिमल ने राम की यात्रा का वर्णन करते हुए कहा कि मिथिला में आने से पहले राम का जीवन एक चक्रवर्ती राजा के राजकुमार के रूप में था। मगर मिथिला में प्रवेश करने के साथ ही उनके शौर्य और पराक्रम की शुरुआत हो जाती है। तपस्या करने वाले ऋषि-मुनियो की सुरक्षा के लिए उन्होंने राक्षसों के वध को धनुष उठाया तो विदेहराज जनक की नगरी में आते ही उनकी तरुणाई प्रेमिल भाव केे साथ जाग उठी। पुष्प वाटिका प्रसंग में सीता के दर्शन होते हैं और प्रेम का अंकुर फूटता है। उसी प्रेरणा से राम धनुर्भंग करते हैं। श्री परिमल ने सीता प्राकट्य की लंबी चर्चा करते हुए कहा कि सब कुछ ईश्वरीय प्रेरणा से संपन्न हो रहा था। जहां सीता साक्षात् धरती थी, वहीं राम ब्रह्मांड नायक थे और आज भी दोनो भारतीय समाज के लिए सबसे बड़े आदर्श हैं। सीतामढ़ी बिहार की शिक्षाविद् डा. आशा कुमारी ने सीता की पीड़ा का उल्लेख करते हुए कहा कि सीता ने राम के जीवन को अपना जीवन मान लिया।

पत्नी का धर्म भी तो यही है, क्योंकि वह अर्द्धांगिनी होती है। राम को वनवास मिला तो सीता ने साथ रहना सहर्ष स्वीकारा, कर लिया। सुल्तानपुर से पधारे साहित्य भूषण डा सुशील कुमार पांडेय साहित्येन्दु ने डा राममनोहर लोहिया के घोषणा पत्र की विस्तार से समीक्षा करते हुए कहा कि रामायण मेला के माध्यम से रसानुभूति, आनन्द, दृष्टिबोध एवं भारतीयता को प्रमुखता दी। रामायण नौ रसों का अक्षय भंडार है। आनंद का अपार स्रोत है। डा साहित्येन्दु ने इसी संदर्भ में दक्षिण भारत तथा दक्षिण पूर्व एशिया में फैले रामकथाओं की सारगर्भित मीमांसा की। उन्होंने कालिदास रचित रघुवंश के अनेक प्रकरणों की तुलना रामचरित मानस के प्रसंगों से की। वृंदावन से पधारे राष्ट्रीय प्रवक्ता आचार्य कृष्णानन्द महाराज ने रामायण संगोष्ठी के अंतर्गत चित्रकूट की महिमा की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि प्रभु श्रीराम ने छोटे से छोटे प्राणियों के प्रति प्रेम दर्शाया।

प्रेम की पराकाष्ठा को श्रीराम ने बढ़ाया। उसी प्रेम की श्रंखला में हम सभी इस रामायण संगोष्ठी में श्रीराम की कृपा को प्राप्त करते हुए इस श्रंखला को आगे बढ़ाने में विशेष जोर दिया गया।मानस मर्मज्ञ लक्ष्मी प्रसाद शर्मा ने चित्रकूट महिमा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भव भुजंग तुलसी नकुल डसत ज्ञान हर लेत, चित्रकूट एक औषधि चितवत होत सचेत। उन्होंने बताया कि चित्रकूट की लीला पवित्र चित वालों की समझ में आती है। कामद भे गिर राम प्रसादा अवलोकत अपहरत विषादा। देखने मात्र से ही सारे विषाद समाप्त हो जाते हैं। गोष्ठी का संचालन डा. चन्द्रिका प्रसाद दीक्षित ललित ने किया।
शाम के सत्र में रामाधीन आर्या मऊरानीपुर, दिनेश सोनी झांसी, लखनलाल यादव महोबा, रघुवीर यादव झांसी ने भजन और भाव नृत्य, राई नृत्य से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। संस्कृति कला संगम यश चैहान नई दिल्ली के नेतृत्व में रामायण नृत्य नाटिका, लाइट एण्ड साउण्ड के माध्यम से संपूर्ण रामायण की प्रस्तुतियों ने लोगों को भावविभोर कर दिया। कार्यक्रम से वातावरण राममय हो गया। दर्शकों ने भी जमकर तालियां बजाई। देर रात तक रासलीला कलाकारों की ने प्रस्तुत कर दर्शकों को बांधे रखा। संचालन महामंत्री करुणा शंकर द्विवेदी ने किया।

रिपोर्ट-  संदीप रिछारिया

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