रे क्राॅक – जिसने बदल डाला खानपान का बाजार

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राकेश कुमार अग्रवाल
इंसानी शरीर के तमाम अंगों में सबसे महत्वपूर्ण अंग है मुंह . यूं तो मुंह के ढेर सारे उपयोग हैं . हम लोग जो भी भोजन या खाद्य पदार्थ ग्रहण करते हैं वह मुंह से होकर जाता है . मुंह में हैं स्वादग्रंथियाँ या यूं कहें कि मुंह में स्वाद कलिकायें हैं . पेट भरने के लिए सभी खाते हैं लेकिन यदि खाद्य पदार्थों की ढेर सारी वैरायटी उपलब्ध हो तो लोग वही चीज खाना पसंद करते हैं जो या तो उनको बेहद अजीज हो या फिर बहुत स्वादिष्ट हो .
होटल हों रेस्टोरेंट हों या फिर स्ट्रीट फूड जिसने उपभोक्ता के स्वाद को पकड लिया वह खानपान के व्यापार का राजा होता है . कहा भी जाता है कि चार इंच की जीभ छह फीट के आदमी पर भारी पडती है .
मैकडोनाल्ड के बर्गर की दुनिया दीवानी है . रिचर्ड और माॅरिस मैकडोनाल्ड न्यू हैम्पशायर से 1930 में हालीवुड आ गए थे. जहां पर वे सेट मूवर्स और मोशन पिक्चर स्टूडियो में हैंडीमेन के रूप में काम करते थे . 1937 में उनके पिता पैट्रिक मैकडोनाल्ड ने द एयरड्राम के नाम से फूड स्टैण्ड शुरु किया था जहां वे हाॅट डाॅग बेचा करते थे . 1940 में माॅरिस और रिचर्ड वहां से सेन बरनार्डिनो आ गए . जहां उन्होंने रेस्टोरेंट खोला और उसका नाम रखा मैकडोनाल्ड बार बी क्यू . 1948 में दोनों भाईयों ने महसूस किया कि उनकी कमाई का बडा हिस्सा हैमबर्गर से आता है .
5 अक्टूबर 1902 को अमेरिका के इलिनोइस राज्य के ओक पार्क में जन्में रेमंड अल्बर्ट क्रोक पहले विश्व युद्ध के समय एम्बुलेंस ड्राईवर बने . उन्होंने रेडियो स्टेशन पर पियानो बजाने से लेकर मिल्क शेक की मशीनें भी बेचीं . मैकडोनाल्ड रेस्टोरेंट ने जब उनसे एक साथ आधा दर्जन मशीनें खरीदीं तो रे क्राॅक का माथा ठनका .
जब रे क्राॅक ने रेस्टोरेंट जाकर वहां ग्राहकों की कतार देखी और एक ग्राहक ने उनसे कहा कि सबसे अच्छा बर्गर महज 15 सेंट में तो रे क्राॅक ने मैकडोनाल्ड ब्रदर्स से रेस्टोरेंट की फ्रेंचाइजी देने की मांग की . 10 अप्रैल 1955 में डेस प्लेन्स इलिनोइस में रेमंड क्राॅक ने 52 वर्ष की उम्र में मैकडोनाल्ड की फ्रेंचाइजी लेकर आउटलेट खोला . रे क्राॅक मैकडोनाल्ड की फ्रेंचाइजी का विस्तार करना चाहते थे. इसी उधेडबुन में वह दिन भी आया जब रे क्राॅक ने 1961 में मैकडोनाल्ड कंपनी को ही 2.7 बिलियन डालर और हर साल फायदे की रकम का 1.9 प्रतिशत रायल्टी भुगतान पर खरीद लिया . 1965 में कंपनी पब्लिक स्टाॅक मार्केट में सूचीबद्ध हो गई .
रेमंड क्राॅक आक्रामक रूप से मार्केटिंग करने के लिए जाने जाते थे . उन्हीं की आक्रामक रणनीति के चलते मैकडोनाल्ड ब्रदर्स को फास्ट फूड व्यवसाय समेटना पडा था .
रे क्राॅक का 82 वर्ष की उम्र में जब निधन हुआ उस समय अमेरिका में मैकडोनाल्ड के 7500 आउटलेट खुल चुके थे . दुनिया के 31 देशों में मैकडोनाल्ड पहुंच चुका था . उस समय मैकडोनाल्ड की बिक्री 8 बिलियन डाॅलर थी. रे क्राॅक ने ग्राइंडिंग आउट आउट – द मेकिंग आफ मैकडोनाल्ड नाम से अपनी आत्मकथा भी लिखी . उन पर द फाउंडर नाम से फिल्म भी बनी .
रे क्राॅक पर फास्ट फूड के कारण मोटापे जैसा रोग फैलाने व कारपोरेट नैतिकता को नष्ट करने जैसे तमाम आरोप भी लगे . लेकिन रे क्राॅक ने अपनी दूरदर्शिता से जो बिजनेस माॅडल खडा किया वह मार्केटिंग पाठ्यक्रम का बडा पाठ है . वर्तमान में दुनिया के 119 देशों के 60 मिलियन से अधिक ग्राहक रोज मैकडोनाल्ड के 31000 से अधिक आउटलेट में जाकर अपना पसंदीदा प्रोडक्ट खाते हैं . डेढ मिलियन से अधिक लोगों को कंपनी ने रोजगार दे रखा है . जीरो से हीरो बनने का रे क्राॅक का सफर महज एक आइडिया से शुरु हुआ था . जो बाद में साम्राज्य में बदल गया . कहा भी गया है कि स्वाद बडी चीज है .

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