श्रीचित्रकूटधाम में सदा सर्वदा से विराजे मेरे श्रीराम

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– वैष्णव संप्र्रदाय की स्थापना काल से श्रीचित्रकूटधाम में मौजूद है श्रीअयोध्याधाम के जैसा श्रीरामजी का विग्रह।
– श्रीचित्रकूट धाम में चौदहवीं शताब्दी से मौजूद हैं श्री रामजी का विग्रह।
– मंदाकिनी नदी के तट पर गोस्वामी तुलसीदास जी करते थे पूजन।

नीलांम्बुजश्याममलकोमलांगम , प्रभु श्री रामजी के शरीर विन्यास का वर्णन श्रीरामरक्षा स्त्रोत में आता है। इसी आधार पर श्री अयोध्या धाम में तीन मूर्तिकारोें के द्वारा बनाये गये विग्रहों में श्यामल छवि वाली खड़ी श्रीराजा राम की मूर्ति को मुख्य मंदिर में स्थान मिला। इसका साम्य देखना हो तो आपको श्री चित्रकूटधाम आकर दर्शन करना होगा। हैरान करने वाली बात यह है कि जिस विग्रह को 21 वीं शताब्दी में 496 साल के संघर्ष के बाद श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ न्यास के विद्वानोें और श्रीराम कथा के मूर्धन्यों के विचार विनमय के बाद स्थापित किया गया, वैसी ही छवि वाली उतनी ही बड़ी मूर्ति श्रीचित्रकूटधाम के अति प्राचीन मंदिर में तेरहवीं शताब्दी से मौजूद है। यह विशाल विग्रह मंदाकिनी नदी के तट पर श्री रामकुटी मंदिर में विराजमान है। दोनोें विग्रहों के अंतर की बात करें तो केवल एक ही नजर आता है। श्री अयोध्या धाम की मूर्ति के हाथों में धनुुष व बाण उठे हुये हैं और श्री चित्रकूटधाम के विग्रह में धनुष व बाण का सिर नीचे की ओेर है।

13 वीं शताब्दी का है विग्रह पावन मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित श्रीरामकुटी मंदिर में स्थापित  श्रीराम जी के विग्रह की स्थापना 13 वीं शब्ताब्दी में श्रीरामानदाचार्य संप्रदाय के अन्तर्गत आने वालेे दिगंबर अखाड़े के तत्कालीन श्रीमहंत जी ने की थी। इस बात का प्रमाण देते हुयेे चित्रकूट के दिगंबर अखाड़े के श्रीमहंत दिव्यजीवनदास जी महराज कहते हैं कि लगभग पांच सौ सालों का लिखित इतिहास तो हमारेे पास है। वैष्णव अखाड़ों की स्थापना भगवान श्रीरामानंदाचार्य जी महराज के शिष्य बालानंदाचार्य जी महराज ने की। सर्वप्र्रथम अखाड़ा दिगंबर बना। चित्रकूटधाम की पावन धरा पर इसका श्री गणेश हुआ। श्री महंत बताते हैं कि यहां पर श्री महंत रामाबाबा जी से इसका लिखित प्रमाण उनके पास है। इसके बाद श्रीमंहत भागवतदास जी महराज, श्री महंत रामदासजी महराज, श्री महंत लक्ष्मणदास जी महराज, श्री महंत शत्रुघन दास जी महराज मद्दी में रहे। वर्ष 1999 से वे स्वयं गद्दी में हैं। उन्होंने कहा कि यह मंदिर कितना पुुराना है कि इसका अंदाज तो केवल इतने ही महंतों की परंपरा से लगाया जा सकता है। इनमें से कोई भी महंत 90 से 100 वर्ष की आयु से कम में गोलोक नही गये। अगर 75 वर्ष तक गद्दी में रहने की एक महंत का समय मान लेें तो लगभग 500 वर्षों का इतिहास तो इस मंदिर का सामने दिखाई देता है।

श्री अयोध्याधाम में स्थापित किये गये श्रीराम जी के विग्रह व चित्रकूट की रामकुटी के विग्रह के साम्य के बारे में वह कहते हैं कि जिस राम को आप जानते हैं वह चक्रवर्ती महराज दशरथ के पुत्र हैं। लेकिन सच्चाई इतनी भर नही है क्योेंकि हर कल्प में राम आते हैं और धर्म की स्थापना करते हैं। विचारने वाली बात यह है कि श्रीचित्रकूटधाम की धरती पर तो स्वयं परमपिता ब्रहमाजी ने सृष्टि का आरंभ श्रीरामार्चा करके किया। त्रेतायुग के श्रीराम का नाम बृहमा जी ने सतयुग के प्रारंभ में कैसे लिया। यानि श्री राम की आराधना का मुख्य स्थल श्रीचित्रकूटधाम सिद्व होता है। सदा-सर्वदा चित्रकूटधाम विराजते हैं श्रीराम।

संत तुलसीदास जी करते थेे इस विग्रह का पूजन   
तेरहवीं शताब्दी से श्री चित्रकूटधाम के श्रीरामकुटी में स्थापित श्रीराम जी के विग्रह के महत्व के बारे में महंत श्री दिव्यजीवन दास कहते हैं कि राम सर्वदा से चित्रकूट धाम में हैं। इसका सबसे बड़ा वैदिक प्रमाण तो संत तुलसीदास जी महराज की जीवनी से मिलता है। संत तुलसी का जन्म राजापुर में हुआ। वह माता चुनिया जी के साथ चित्रकूट के निकट हरिहरपुर चले गये। पांच वर्ष की अवस्था में माता चुनिया उन्हें चित्रकूट धाम के बड़े महात्मा नरहरिदास जी महराज के पास लाईं। महराज जी ने उनका उपनयन संस्कार करवाकर काशी भिजवा दिया। काशी से अध्ययन के बाद वह राजापुर आए तो माता से विवाह के पश्चात माता से ज्ञान मिलने के बाद वह पुनः काशी चले गए। वहां पर राम में उनका मन ऐसा रमा कि बस वे श्रीराम के दर्शनों को व्याकुल हो गये। श्रीपरमभक्त हनुमान जी ने उन्हें चित्रकूट धाम में श्रीराम के दर्शनोें की बात कही। चित्रकूट में उन्हें एक बार नही दो बार भगवान श्री राम के दर्शन हुये। महंत जी कहते हैं कि सृष्टि के आरंभ में श्री रामार्चा यज्ञ,त्रेतायुग में स्वयं श्रीराम का चित्रकूट में निवास औैर कलयुग में संत श्री तुलसीदास जी महराज को श्रीराम का दर्शन यही सिद्व करता है श्री चित्रकूट धाम में श्रीराम सदा सर्वदा से विद्यमान हैं। वैसे चित्रकूट में आकर संत तुलसीदास जी महराज मंदाकिनी के किनारे रहकर इन्हीं भगवान श्री राम के विग्रह का पूजन किया करते थे। कैसे मिलेगे श्रीराम विग्रह के दर्शन एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड से रामघाट टैक्सी स्टैंड से आगे जाने के बाद कामदगिरि भवन के सामने श्रीरामा भवन के बगल में स्थित हैं।

रिपोर्ट , वरिष्ठ संपादक संदीप रिछारिया



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