राकेश कुमार अग्रवाल
सोमवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद सदस्यों के नवनिर्मित बहुमंजिला फ्लैट का उद्घाटन करते हुए कहा कि दशकों से चली आ रही समस्यायें टालने से नहीं बल्कि उनका समाधान खोजने से समाप्त होती हैं . प्रधानमंत्री ने कहा कि आज हमारे पास साधन भी हैं और दृढ संकल्प भी है . हम अपने संकल्पों के लिए जितना अधिक परिश्रम करेंगे , सिद्धि उतनी ही जल्दी और बडी होगी .
देखा जाए तो इस दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जो समस्याओं से दो चार न हो रहा हो . समस्यायें व्यक्तिगत हो सकती हैं . समस्यायें पारिवारिक हो सकती हैं . कोई व्यवसाय को लेकर परेशान है तो कोई जाॅब को लेकर परेशान है . विधायक मंत्री बनने के लिए परेशान है तो मंत्री मुख्यमंत्री बनने को परेशान है . हालांकि ये समस्यायें नहीं हैं फिर भी लोगों ने इन्हे समस्याओं में शुमार कर रखा है . इंसानों की ही नहीं देशों की भी अपनी समस्यायें हैं . कोई देश बेरोजगारी से परेशान है तो कोई भ्रष्टाचार से .
समस्यायें दरअसल उन मसालों की तरह हैं जो जिंदगी का स्वाद बढा देती हैं . व्यक्ति में आत्मविश्वास का संचार करती हैं . उनको समस्याओं से निपटने का हौसला प्रदान करती हैं .
जाॅन बेज कहते हैं कि ” जब तक आप ढूंढते रहेंगे समस्याओं के समाधान मिलते रहेंगे .” जाॅन बेज के सैकडों वर्ष पूर्व कबीर इसी बात को कुछ इस अंदाज में कह चुके थे कि ” जिन खोजा तिन पाईयां , गहरे पानी पैठ . ” समस्या यह है कि लोग समाधान खोजने के बजाए समस्या से ही बौखला जाते हैं . समस्याओं को लेकर पूर्वाग्रह पालना , उसे न सुलझने वाली समस्या मानना या दुनिया की सबसे बडी समस्या मानना अपने आप में सबसे बडी समस्या है .
अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने कहा था कि ” मुझे एक पेड काटने के लिए यदि आप छह घंटे देते हैं तो मैं पहले चार घंटे अपनी कुल्हाडी की धार बनाने में लगाऊँगा .” मतलब साफ है कि समस्या जैसी है उसके समाधान के लिए उसी स्तर की तैयारी होना भी जरूरी है . हाथ में कुल्हाडी होना जितना जरूरी है उससे ज्यादा उसमें धार होना उतना ही जरूरी है . अन्यथा आप भोथरी कुल्हाडी पेड पर चलाते रहिए पेड कटने वाला नहीं है .
मशहूर मुक्केबाज मोहम्मद अली ने कहा था कि ” भागो मत , अभी तो भुगत लो , और फिर पूरी जिंदगी चैंपियन की तरह जियो. ” दरअसल अनुकूल परिस्थितियों में तो सभी अच्छा प्रदर्शन करते हैं . इसमें बहादुरी जैसा कुछ नहीं है . प्रतिकूल परिस्थिति में ही इंसान की जीवटता व उसके कौशल की परीक्षा होती है .
समस्याओं के प्रति आपका नजरिया समस्या से कहीं ज्यादा मायने रखता है . एक बार की बात है . एक सर्द रात में थाॅमस अल्वा एडीसन न्यूजर्सी के एक कस्बे वेस्ट ऑरेंज की फैक्ट्री में काम कर रहे थे . अचानक फैक्ट्री में आग लग गई . आग की भीषण लपटों को देख उनका बेटा चार्ल्स भागकर पिता को ढूंढते हुए पहुंचा . चार्ल्स ने देखा कि पिता एडीसन जलती हुई फैक्ट्री को उत्सुकता से देख रहे थे . एडीसन ने जैसे ही बेटे चार्ल्स को देखा तो चिल्लाकर उससे बोले कि” चार्ल्स ! जल्दी से मां को ढूंढकर यहाँ ले आओ , ऐसा दृश्य फिर उसे कभी देखने को नहीं मिलेगा . ” आग बुझने के बाद अगले दिन एडीसन मातम मनाने के बजाए बेटे चार्ल्स से बोले कि हर त्रासदी में कोई न कोई भलाई निहित होती है . इस अग्निकांड में हमारी सारी गल्तियाँ भी आग की भेंट चढ गई हैं . भगवान का शुक्र है कि अब हम नए सिरे से सब कुछ शुरु कर सकते हैं . यही वह जीवटता है . वह दृष्टिकोण है जो इंसान को आगे लेकर जाता है . समस्याओं के उलझे रहने का एक बडा कारण इंसान का अहम है . क्योंकि समस्या पैदा करने वाला या समस्या से पीडित पक्ष कोई भी झुकना नहीं चाहता .
प्रसिद्ध वैज्ञानिक थाॅमस अल्वा एडीसन ने एक लाख टके की बात कही थी कि ” जीवन में अनेक विफलतायें केवल इसलिए होती हैं क्योंकि लोगों को यह आभास नहीं होता है कि जब उन्होंने प्रयास बंद कर दिए तो उस समय वह सफलता के कितने करीब थे . ” यह वैसी ही बात है कि समस्या को अगर हम ताला मानें तो कह सकते हैं कि अगर समस्या रूपी ताला है तो उस ताले को खोलने वाली चाभी भी होगी .
जीवन कितना लम्बा है यह कोई नहीं जानता ऐसे में कल क्या होगा किसने जाना . इसलिए न समस्यायें पैदा करिए . न उन्हें पालिए . न समस्याओं का बोझा पीठ और दिमाग पर लादिए . जिंदगी का सफर आसान ही नहीं सुहाना भी होगा .