सरकार की तमन्ना है कि हीरा उसे मिल जाए

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राकेश कुमार अग्रवाल

मध्यप्रदेश स्थित बुंदेलखंड के बकस्वाहा जंगल से हीरा खनन को लेकर मची रार पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ( एनजीटी ) द्वारा पेडों की कटान पर रोक लगाने के आदेश के बाद कुछ समय के लिए ही सही विराम लग गया है . लेकिन हीरा खनन के नाम पर बकस्वाहा जंगल के सवा दो लाख पेडों को काटे जाने के निर्णय से यह सवाल उठना लाजिमी है कि सरकार को हरियाली की कीमत पर हीरा चाहिए .

प्रकाशपुंज बिखेरने वाला , अँधेरेे में जगमगाने वाला , सौंदर्य में चार चांद लगाने वाला , मन को हर्षाने वाले हीरा की उपलब्धता कम होने के कारण यह मूल्यवान ही नहीं वेशकीमती भी है . हीरों ने कभी राजाओं के मुकुटों की शोभा बढाई तो कभी रानी की उंगलियों में अँगूठी तो गले में हार के रूप में दमक कर उनके रूप सौंदर्य में वृद्धि की . हीरा पाने की जद्दोजहद में राजा – महाराजाओं में युद्ध हुए . तस्करों के लिए हीरा उनको मालामाल करने का साधन रहा तो दो प्रेमियों और दाम्पत्य संबंधों में प्रेम प्यार को बढाने का प्रतीक रहा . हिंदुस्तान और हीरे का संबंध सदियों पुराना है . पुराने जमाने में आभूषण के रूप में प्रयुक्त हुए ज्यादातर हीरे भारत की खानों से निकाले गए थे . वर्तमान में देश में मध्य प्रदेश में पन्ना व आँध्रप्रदेश में कोल्लूर व गोलकुण्डा में हीरा खदानें हैं . जब तक ब्राजील व दक्षिण अफ्रीका में हीरा खदानें नहीं खोज ली गईं तब तक 3000 सालों से भारत पूरी दुनिया में हीरा आपूर्ति का सिरमौर रहा है .

पन्ना मध्यप्रदेश का एक छोटा जिला है जो बुंदेलखंड में आता है . वर्तमान में यहां की मझगवाँ खदान से हीरा प्राप्त होता है . नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कारपोरेशन ( एनडीएमसी ) देश की इकलौती कंपनी है जो हीरा उत्खनन का कार्य करती है . यह हीरा खदान विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल खजुराहो से महज 55 किमी. की दूरी पर है . विन्ध्य पर्वत श्रृंखला के सघन वन क्षेत्र व दण्डकारण्य क्षेत्र जिसे महाराजा छत्रसाल बुंदेला ने अपनी राजधानी बनाया था खनिज सम्पदा से भरपूर है . पन्ना के मझगवां से अब तक 10 लाख कैरट से अधिक का हीरा प्राप्त हो चुका है . यहां से प्रतिवर्ष लगभग 84000 कैरट हीरा खनन से प्राप्त होता है .

मध्यप्रदेश सरकार ने लगभग दो दशक पहले हीरे की खोज के लिए बकस्वाहा जंगल क्षेत्र में सर्वे करवाया था . सर्वे के मुताबिक यहां पर 22 लाख कैरट के हीरे मिल सकते हैं . बकस्वाहा जंगल का रकबा 382.13 हेक्टेयर है जिसके छठे हिस्से में ही हीरा खनन प्रस्तावित है . दो साल पहले हुई नीलामी में बिडला ग्रुप की एक्सल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज ने इसे 50 साल के पट्टे पर लिया है . इस हीरा खनन परियोजना में हर साल 5.3 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी की जरूरत होगी . खनन के लिए 2.15 लाख पेडों को भी काटा जाना है . हरे भरे जंगल को हीरा खनन के वास्ते उजाडे जाने की खबर पर मध्यप्रदेश ही नहीं उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड मे भी उबाल आ गया . ऐसा भी पहली बार देखने को मिला कि एक सामाजिक व प्राकृतिक मुद्दे पर यूपी व एमपी में बंटा समूचा बुंदेलखंड भी एकजुट हो गया . इस एकजुटता में स्वयंसेवी संगठन ,पर्यावरणविद से लेकर जनप्रतिनिधि भी शामिल थे . क्योंकि हीरों की तमन्ना की चाहत में बकस्वाहा जंगल के 2, 15, 875 पेडों को काटा जाना प्रस्तावित है . पेडों के अलावा पौधों , झाडियों का कटना भी स्वभाविक है . मतलब साफ है कि जंगल में पेडों की जगह ठूंठ बचेंगे .

एक ओर देश से हरियाली गायब होती जा रही है . वनों की कटान पर प्रभावी अंकुश नहीं लग सका है . बुंदेलखंड में वैसे भी पुराने समय के जो जंगल बचे हैं उसके अलावा वन क्षेत्र नाममात्र बचा है . केन -बेतवा गठजोड को लेकर पन्ना का नेशनल टाइगर रिजर्व संकट में है . वन्य जीव सम्पदा को लेकर तमाम संगठन पहले से ही अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं . ऐसा अनुमान जताया जा रहा है कि 50 वर्ष के खनन पट्टे से कंपनी को बकस्वाहा जंगल से खनन में 50000 करोड के हीरे मिलने की संभावना है .
बकस्वाहा बचाओ आंदोलन से जुडे पर्यावरणविदों ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के एलएलबी छात्र उज्जवल शर्मा और दिल्ली के सामाजिक कार्यकर्ता पीजी नाज पांडे ने एनजीटी के समक्ष याचिका दायर कर पेडों को काटने से बचाने की गुहार लगाई थी . जिस पर एनजीटी की दो सदस्यीय बेंच ने अपने अंतरिम आदेश में वन विभाग की अनुमति के बिना एक भी पेड न काटने का आदेश दिया . बेंच ने वन संरक्षण कानून 1980 का पालन करने और टीएन गोधा वर्मन कमेटी की गाइडलाइन और भारतीय वन अधिनियम 1927 का पालन करने का आदेश दिया है .

एक तरफ सभी सरकारें हर साल सघन वृक्षारोपण अभियान चलाती हैं . उत्तर प्रदेश में तो हाल ही में वृक्षारोपण महाअभियान के तहत एक दिन में 25 करोड से अधिक पौधे रोपने का रिकार्ड बना है . भीषण गर्मी , मानसून का बिगडा मिजाज , बुंदेलखंड में सूखे के हालात ऐसे में हीरों की खातिर हरियाली पर कुल्हाडे चलाने का कहां तक जायज ठहराया जा सकता है . सरकारों को भी इन विषयों पर जरूर सोचना चाहिए .

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