सात समंदर पार दादा की कहानियों के गांव पहुंचे “हेड्रिक कालका”

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कौशाम्बी | सोशल नेटवर्किंग साईट फेसबुक ने एक माटी के लाल को उसकी जड़ो तक पंहुचा दिया है | जी हाँ बात हो रही है यूरोपीय महाद्वीप के छोटे से देश माल्टा में जन्मे भारतीय मूल के हेड्रिक कालका की, जो बृहस्पतिवार को अपने पुरखो के सिराथू तहसील स्थित गांव पहुंच गए | यहाँ उन्होंने गांव के लोगो से मुलाकात की और अपने परिवार के बारे में लोगो से पूंछ-तांछ की | हेड्रिक गांव के लोगो से मिलने के बाद तहसील प्रशासन के पास भी पहुंचे जहाँ उन्होंने अपने परिवार के बारे में सरकारी दस्तावेज खोजने की कवायद शुरू की है | हेड्रिक अब गांव में अपने पुरखो की याद में गांव में रोजगार, शिक्षा में निवेश कर ग्रामीणों की जिंदगी में नया सवेरा लाना चाहते है | 
गौरतलब है कि सिराथू तहसील के कनवार गांव से 1895 में अंग्रेज बड़ी संख्या में गिरमिटिया मजदूरों को अपने साथ सूरीनाम में ले गए, जिसमें सीताराम लोध भी शामिल थे। तमाम यातनाएं झेलते हुए सीताराम ने अपने बच्चों और परिवार का भरण पोषण किया। सीताराम ही हेंड्रिक कालका (74) के दादा थे। हैंड्रिक ने बताया, जब वह 12 वर्ष के थे, तब उनके दादा का निधन हो गया था। वह बचपन में उनसे अपने पैतृक देश भारत और कौशाम्बी के कनवार गांव के बारे में सुनते आए थे। उनके मन में हमेशा अपनी मिट्टी को देखने की लालसा थी। अपने लोगों से मिलने और उनसे जुड़ने की इच्छा थी। यही वजह थी कि माल्टा में एक कंपनी डायरेक्टर के पद से रिटायर होने के बाद वह तीन मार्च को प्रयागराज आ पहुंचे। यहां उनकी मदद पवन तिवारी नाम के एक व्यवसायी ने की, जो उनसे फेसबुक के जरिए काफी पहले से जुड़े थे। 


हेड्रिक कालका ने बताया कि प्रयागराज निवासी पवन तिवारी ने उनकी काफी मदद की है | उन्होंने अपने दादा के मुख से सुनी भारत देश के कौशाम्बी जिले के पैतृक गांव के बारे में जो कुछ सूना उसको अपने आँखों से देखने की प्रबल इक्छा ने ही आज उन्हें अपनी माटी तक पंहुचा दिया है | इसके लिए उन्होंने 25 सालो से प्रयास रत थे | किसी न किसी माध्यम से वह पैतृक गांव से संपर्क करना चाहते थे | 3 माह पहले उनका यह सपना हकीकत में बदला और उनकी मुलाकात फेसबुक के जरिये प्रयागराज के पवन तिवारी से हुयी | उन्होंने मेरी मदद की और आज मै उन्ही के साथ अपनी जड़ो की माटी में पंहुचा हूँ | अपने लोगो से मिलकर काफी खुश हूँ | यहाँ का रहन-सहन, पहनावा, बोली-भाषा उन्हें काफी पसंद है | 

 

हेंड्रिक ने बताया कि वह 3 माह बाद फिर गांव जाएंगे | वह अपने पूर्वजों की मिट्टी के लिए कुछ करना चाहते हैं। गांव में अपने दादा के नाम से स्कूल, सामुदायिक भवन या स्कूलों में भवन और स्कॉलरशिप की योजना बना रहे हैं। कनवार 15 मजरों का बड़ा गांव है। उनके परिवार से संबंधित लोध जाति के कुछ लोग नयापुरवा में मिले हैं, जो खेतीबारी से जुड़े हैं। वह शीघ्र ही पूरी योजना के साथ फिर गांव के विकास के लिए आएंगे | 
फेसबुक फ्रेंड पवन तिवारी ने बताया कि यूपी एग्रीकल्चर ग्रुप पर उन्होंने एक पोस्ट देखी | चूकि वह फिशरीज के बिजनेस में है और कलकत्ता उनका वर्क स्थान है | कौशाम्बी के रिलेटेड पोस्ट देखकर उन्होंने रिप्लाई किया | बृहस्पतिवार को एसडीएम सिराथू और अन्य राजस्व कर्मियों के जरिये अपने पैतृक गांव पहुंचे है | गांव में सभी लोग हेड्रिक साहब को पाकर काफी खुश हुए | ये ख़ुशी की बात है कि लोग आज अपने घरो को छोड़ कर जाना चाहते है और हेड्रिक कालका अपनी जड़ो को खोजते हुए यहाँ तक पहुंचे है | 
 
एसडीएम सिराथू राजेश कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि हेड्रिक कालका नाम के शख्स उनके पास अपने पूर्वजो के सम्बन्ध में जानकारी करने उनके समक्ष आये थे | उनके बताने के अनुसार राजस्व कर्मियों को निर्देशित किया गया है | उनकी पूरी मदद की जाएगी | हेड्रिक के ग्रामीण सेक्टर में निवेश के सवाल पर एसडीएम राजेश कुमार श्रीवास्तव ने इस कदम को सराहनीय तो माना लेकिन इस विषय को उनका खुद का विषय बता कर अपने आप को इस विषय से अलग कर लिया | 
Ajay Kumar

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