हिमालयी क्षेत्र में जलविद्युत संयंत्रों पर लगे रोक

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राकेश कुमार अग्रवाल
उत्तराखण्ड के चमोली जिले की ऋषिगंगा घाटी में ग्लेशियर टूट जाने के कारण ऋषिगंगा समेत धौलीगंगा और अलकनंदा नदियों में आई भीषण तबाही के कारण सैकडों लोग हताहत हो गए . लापता लोगों की संख्या इससे भी कहीं ज्यादा है . एकाएक आए प्रलयंकारी जल उफान से रेणी गांव के पास ऋषिगंगा पनबिजली परियोजना एवं तपोवन के पास धौलीगंगा नदी पर एनटीपीसी की निर्माणाधीन तपोवन – विष्णुगाड – जलविद्युत परियोजना को भारी क्षति पहुंची है . जन , धन हानि का सटीक आकलन सामने आने में वक्त लगेगा .
देवभूमि उत्तराखण्ड के पावन तीर्थ क्षेत्र केदारनाथ में 16 जून 2013 को आई भीषण आपदा में सरकारी आँकडों के मुताबिक 4700 से ज्यादा लोगों ने जानें गंवाईं . 3200 से ज्यादा लोग लापता हो गए . लगभग 700 लोगों के ही अभी तक कंकाल बरामद किए जा सके हैं . बरामद किए गए सभी कंकाल केदारनाथ आपदा में मारे गए लोगों के है इस पर भी संशय बना हुआ है . साढे सात पहले आई आपदा के जख्म भरे भी न थे कि चमोली की त्रासदी ने फिर से पर्यावरण , जलवायु परिवर्तन , हिमालयीन क्षेत्र में निर्माण और पर्यटन के नाम पर प्रकृति के साथ की जा रही छेडछाड , जल विद्युत परियोजनाओं एवं बाँधों के निर्माण को लेकर फिर से नई बहस छेड दी है .
आँकडों के मुताबिक पूरी दुनिया में दो लाख से अधिक ग्लेशियर हैं . प्राचीनकाल से ही पृथ्वी पर बर्फ के विशाल भंडार रहे हैं . भारत में ज्यादातर हिमनद जम्मू कश्मीर , हिमाचल प्रदेश और उत्तराखण्ड में पाए जाते हैं . हिमालय क्षेत्र के ये ग्लेशियर आसपास घाटियों में रहने वाले 25 करोड लोगों को एवं इनसे जुडी नदियों को पानी देते हैं . माना जाता है कि इन ग्लेशियर से एक अरब से अधिक लोगों की ऊर्जा , भोजन और आजीविका का सीधा संबंध है . ग्लेशियरों को लेकर पूरी दुनिया में जो अध्ययन हुए वह बताते हैं कि पूरी दुनिया के ग्लेशियर सिमट रहे हैं सिकुड रहे हैं . हिंदुस्तान ही नहीं ग्रीनलैण्ड और अंटार्कटिक में बर्फ की चादर हर साल करीब 400 अरब टन कम हुई है . बर्फ के पिघलने से महासागरों का तल 1.2 मिलीमीटर तक बढ गया है . पहाडों के ग्लेशियरों में हर साल 280 अरब टन बर्फ कम हुई है . इससे यहां भी समुद्र तल में 0.77 मिलीमीटर की वृद्धि हुई है . भारत के लिए तो वैज्ञानिकों ने यहां तक चेतावनी दे रखी है कि मध्य तथा पूर्वी हिमालय के ग्लेशियर आगामी 15 सालों में गायब हो सकते हैं . ऐसे में सवाल उठता है कि इन ग्लेशियरों को कैसे बचाया जाए . इसके साथ ही विकास बनाम विनाश की बहस भी साथ साथ चलेगी .
हिमालयीन क्षेत्र उत्तराखंड , हिमाचल प्रदेश व जम्मू कश्मीर की भौगोलिक परिस्थितियां एक हद तक समान हैं . हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड सबसे ज्यादा जलविद्युत परियोजनाओं के लिए जाने जाते हैं . विद्युत उत्पादन के प्रमुख स्रोतों में थर्मल पावर , हाइड्रो पावर , न्यूक्लियर पावर व आरईएस ( ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत ) को माना जाता है . अब जब

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