1861 पुलिस एक्ट शहीदों का अपमान : विनीत मिश्रा

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दिवाकर त्रिपाठी 

            खीरों,रायबरेली। युवा विकाश समिति के संयोजक एवं समाजसेवी विनीत मिश्रा ने कहा कि 1861 में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए पुलिस विभाग के नियम और कार्य शैली से पुलिस के मायने ही बदल गए हैं। हमारे समाज में पुलिस का एक महत्वपूर्ण योगदान है। जहां एक तरफ पुलिस हमें सुरक्षा का बोध कराती है वहीं पुलिस से आम जनता का डर भी जगजाहिर है। सही मायने में पुलिस का कार्य है,जनता के साथ मित्रवत सम्बंध बनाकर आम जनमानस की सेवा करना ,सज्जनों की रक्षा और दुर्जनो पर लगाम लगाना पुलिस की प्राथमिकता होनी चाहिए। किन्तु ज्यादातर इसका उलटा ही होता है।विनीत मिश्रा ने कहा की कई देशों में कितना भी बड़ा अधिकारी क्यों न हो उसको शुरुआत कांस्टेबल से ही करनी पड़ती है। उसके बाद अपनी योग्यता, अपराध से लड़ने की शैली और ईमानदारी के आधार पर ऊंची पोस्ट मिलती है। जिसकी वजह से पुलिसकर्मी ऊंची पोस्ट पाने की ललक में ईमानदारी से अपनी ड्यूटी करते हैं । हमारे देश में एक कांस्टेबल ज्यादा से ज्यादा एएसआई ही बन पाता है। पुलिस अधिकारियों द्वारा निचले तबके के पुलिस कर्मियों का शोषण आम बात है। हमारे देश में पुलिस विभाग की स्थापना फिरंगियों द्वारा 1861 में की गई थी जिसका कार्य मुख्यतः भारतीयों के विद्रोह को कुचलना था। उसी आधार पर पुलिस के कानून अंग्रेजो द्वारा बनाए गए थे। जो फौजी कानून की ही तरह थे। आजादी के बाद भी आज तक पुलिस के लिए वही नियम कायम है। देखने वाली बात ये है, कि जिस देश ने हमारी पुलिस के नियम कानून बनाए उस देश की पुलिस के नियम- कानून भारत से बिल्कुल विपरीत हैं। आज हमें विभाग के तौर तरीको में बदलाव की जरूरत है तभी हमारी पुलिस सही मायने में मित्र पुलिस बन पाएगी। कभी किसी बड़े अधिकारी ने इसमें बदलाव लाने का प्रयास नहीं किया ,क्योंकि बदलाव से पुलिस विभाग में तानाशाही का अंत हो जाएगा। आज भी आप देखो इंडियन पुलिस( indian police) एक्ट के आधार पर राजनितिक दबाव में पुलिस देश वासियों पर कितना जुल्म करती है। कभी अंदोलन करने वाले किसनों को डंडे मारती है, तो कभी औरत को डंडे मारती है। सरकार के खिलाफ़ किसी भी तरह का अंदोलन किया जाता है तो पुलिस आकर निर्दोश लोगो को डंडे मारना शुरु कर देती है। अंग्रेजों ने पुलिस और इंडियन पुलिस (indian police) एक्ट क्रंतिकारियो को लाठियों से पीटने और अपना बचाव करने के लिए बनाया था।

आजादी के 64 साल बाद भी ये पुलिस सरकार में बैठे कुछ तानाशाहों की रक्षा करती है ।और सरकार के खिलाफ़ अंदोलन करने वालों को वैसे ही पीटती है । जैसे अंग्रेजी पुलिस पीटा करती थी ।आज हर साल 23 मार्च को हम भगत सिंह का शहीद दिवस मानाते हैं । लाला लाजपत राय का शहीद दिवस मानाते हैं । किस मुँह से हम उनको श्रधांजलि अर्पित करें।  लाला लाजपत राय जी जिस कानून के आधार पर आपको लाठिया मारी गई और आपकी मौत हुई उस कानून को हम आजादी के 72 साल बाद भी खत्म नहीं करवा पाये । किस मुँह से हम भगत सिंह को श्रधंजलि दें, कि भगत सिंह जी जिस अंग्रेजी कानून के आधार पर आपको फांदकर षछरिसी की सज़ा हुई । आजादी के इतने साल बाद भी हम उसको सिर पर ढो रहे हैं।

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