29 सितम्बर – विश्व ह्रदय दिवस पर विशेष

12

दिल दा मामला है ………..

राकेश कुमार अग्रवाल

भारतीय दर्शन कहता है कि ” बडे जतन मानस तन पावा ” . मानव का यह शरीर विभिन्न अंगों और अवयवों का समुच्चय है . सभी अंगों की अपनी महत्ता और उपयोगिता है . लेकिन एक अवयव ऐसा भी है जिस पर सबसे ज्यादा चरचा होती है वह है ह्रदय . मेडीकल साईंस ही नहीं कवि , साहित्यकार , शायर , सिने इंडस्ट्री या फिर सामाजिक जीवन जब भी प्रेम ,प्यार , इश्क की बात होती है सभी बातें दिल पर आकर अटक जाती हैं .

आप सामान्य भाषा में दिल को मानव शरीर का इंजन मान सकते हैं . जो शरीर रूपी गाडी को चलाता है . मेडीकल साईंस का वास्ता दिल के धडकने से है . इंजन को अनवरत चलाए रखने से है . साहित्यकारों व फिल्मकारों का वास्ता दिल के उद्गगारों और उन मनोभावों से है जो फैसले लेता है और अपने को अभिव्यक्ति देता है .

आज 29 सितम्बर है और वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन वर्ष 2000 से इस तिथि को हर वर्ष विश्व ह्रदय दिवस के रूप में मनाता आ रहा है . एक आँकडे के मुताबिक ह्रदय एवं इससे जुडे रोगों के कारण प्रतिवर्ष पूरी दुनिया में लगभग पौने दो करोड लोग जान से हाथ धो बैठते हैं . इसलिए यह दिन मवोभावों का नहीं इंजन को सुचारू रूप से चलाए रखने का दिन है .
विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं चिकित्सा जगत के आँकडों के मुताबिक दुनिया में बीमारियों से मौतों के जो दस प्रमुख कारण हैं उनमें सबसे ज्यादा मौतें ह्रदय रोगों से होती हैं . भारत में ह्रदय एवं उससे जुडे रोगों से मौतों का हिस्सा सबसे ज्यादा लगभग 23 प्रतिशत तक है . इसके बाद सांस से जुडी बीमारियाँ , कैंसर और डायरिया से जुडी मौतों का नंबर आता है .

ह्रदय रोग ने मेडीकल साईंस में एक बडा कारोबार खडा कर दिया है . वीआईपी लोगों , अभिजात्य वर्ग से जुडे लोगों व धन्नासेठों में ह्रदय रोग को सबसे सामान्य बीमारी में शुमार किया जाता है .

असल में ह्रदय रोग खानपान और जीवन शैली से जुडा रोग है . ह्रदय का सीधा वास्ता मेहनत से है . जो व्यक्ति शारीरिक मेहनत ज्यादा करते हैं . शारीरिक रूप से एक्टिव रहते हैं . उनकी अपेक्षा ऐसे लोग जो दिमाग से ज्यादा काम करते हैं इस रोग की चपेट में ज्यादा आते हैं . और तो और अब तो युवा वर्ग भी ह्रदय रोगों की गिरफ्त में है . जबकि पहले इस बीमारी को अधेड या बुजुर्गों का रोग माना जाता था .

कर्डियोवैस्कुलर रोगों या स्ट्रोक से जुडे मामलों में एक पहलू को लम्बे अरसे से अनदेखा किया जा रहा है . वह पहलू यह है कि बच्चों की परवरिश . युवावस्था तक या आप कहिए कि कैरियर बनाने और विवाह होने तक बेटे – बेटी के साथ माता – पिता और उनके परिजन साए की तरह लगे रहते हैं . उनकी हर समस्या में आगे आकर ढाल बनकर खडे हो जाते हैं . उनको समस्याओं से जूझने के लिए तैयार नहीं करते . उनको फैसले लेने और उन फैसलों के नतीजों को फेस करने के लिए तैयार नहीं करते . ऐसे में यही युवा जब कैरियर में या व्यक्तिगत जीवन में आकस्मिक रूप से जब फैसले लेते हैं तब उन फैसलों से उपजे दबाब और तनाव को बरदाश्त नहीं कर पाते . और कहीं न कहीं इसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष असर शरीर और मन पर पडता है . ह्रदय अति सक्रिय हो जाता है . और यही ह्रदय रोग का वायस बन जाता है .

बढते ह्रदय रोग का एक बडा कारण शारीरिक श्रम न करना है . शरीर से पसीना न बहाना है . हर काम के लिए मशीनें आ गईं हैं . विलासिता के सामानों , उपकरणों और मशीनों से इंसान चौतरफा घिरा हुआ है . पैदल अब केवल वो लोग चल रहे हैं जिन्हें चिकित्सकों ने सलाह दी है या फिर वो लोग मार्निंग वाक या भागदौड कर रहे हैं जिनका पुलिस या सेना में नौकरी करने का लक्ष्य है .

हम अपने खुद के कामों के लिए भी नौकरों पर आश्रित हो गए हैं . खान पान ज्यादा गरिष्ठ हो गया है . जागने के बाद से लेकर सोने के पहले तक लोग कई कई बार खाते हैं और तो और भरे पेट भी खाने से गुरेज नहीं है .

येन केन प्रकारेण कमाई या गैर कानूनी कामों को करने लिए इंसानी दिमाग दिन भर तीन तिकडम में उलझा रहता है . लेकिन जब मामला हाथ से निकल जाता है और बनी बनाई छवि बर्बाद होने की नौबत आती है तो इसका सबसे ज्यादा बोझ ह्रदय को ही उठाना पडता है .

यदि आप दिल की सलामती चाहते हों और अस्पतालों के चक्कर काटने से बचना है तो दिल ही नहीं पहले खुद को अनुशासित करना पडेगा . दिल आपकी जरूर सुनेगा आप भी तो थोडा अपने दिल की सुन लीजिए .

Rakesh Kumar Agrawal

Click