राकेश कुमार अग्रवाल
प्रदेश में एक ओर जहां सूरज का पारा चढा हुआ है वहीं धीमे धीमे चुनावी पारा भी चढता जा रहा है . लेकिन प्रदेश में चुनावी राजनीति का ऊँट किस करवट बैठेगा इसका भविष्य बहुत हद तक चुनाव पूर्व होने वाले गठबंधन तय करेंगे .
बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने पत्ते खोल दिए हैं . उन्होंने बाकायदा ऐलान भी कर दिया है कि बसपा किसी भी पार्टी से गठबंधन नहीं करेगी बल्कि प्रदेश में अकेले दम पर चुनाव लडेगी . जिस तरह का प्रदेश में राजनीतिक परिदृश्य है उसके मुताबिक प्रदेश में जितनी भी बडी राजनीतिक ताकतें हैं वे आपस में गठबंधन नहीं करने जा रही हैं . ऐसे में छोटी पार्टियों और बडी पार्टियों के बीच ही आपसी तालमेल होने की गुंजायश बनी हुई है .
गौरतलब है कि प्रदेश में भाजपा , सपा , बसपा और कांग्रेस बडी राजनीतिक पार्टियां हैं . इसके अलावा लगभग एक दर्जन अन्य दल भी चुनाव मैदान में पूरी तरह से जोर आजमायश के लिए तैयार हैं . पिछले तीन चुनावों के जनादेश पर नजर डालें तो मतदाताओं ने गठबंधन के बजाए एक पार्टी की सरकार को राज्य की कमान सौंपी . 2007 में मतदाताओं ने बसपा को सरकार बनाने का जनादेश सौंपा तो 2012 में यही जनादेश सपा के पक्ष में रहा . 2017 के चुनावों में भाजपा ने जोरदार प्रदर्शन कर चुनावी पंडितों के आकलन और कयासबाजी को जोरदार झटका दिया था . अप्रत्याशित रूप भाजपा ने बहुमत हासिल कर सरकार बनाई . हालांकि इसके पहले प्रदेश में गठबंधनों की सरकार के चलते राजनीतिक अस्थिरता हावी रही थी . 2022 में कोई पार्टी अकेले दम पर सरकार बनाएगी या फिर गठबंधन की सरकार बनेगी यह एक बडा सवाल है जो सभी के मन में कुलबुला रहा है . बसपा ने जहां सभी 403 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की घोषणा कर रखी है वहीं समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव भी फूंक फूंक कर कदम रख रहे हैं . दरअसल अखिलेश की समाजवादी पार्टी और भाजपा राजनीतिक प्रतिद्वंदी पार्टियां हैं . भाजपा को रोकने के लिए सपा ने पिछले 2017 के चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन किया था जिसका न उसे न गठबंधन को कोई विशेष फायदा मिला .
2019 के लोकसभा चुनावों में सपा ने अपनी चिर प्रतिद्वंदी बहुजन समाज पार्टी से समझौता किया और बुआ भतीजे की जोडी ने तमाम मतभेद भुलाकर साथ साथ चुनाव में उतरने का फैसला किया था . भाजपा का रास्ता रोकने के लिए चुनाव मैदान में ताल ठोकी थी लेकिन सपा और बसपा की यह रणनीति भी विफल रही . बसपा सुप्रीमो तो चुनाव परिणामों से काफी आहत थीं उन्होंने तो इसका ठीकरा भी सपा पर फोड दिया था . प्रियंका गांधी कांग्रेस के तमाम प्रत्याशी तय कर चुकी हैं एवं उनको हरी झंडी देकर चुनाव प्रचार करने के लिए भी कह चुकी हैं .
प्रदेश में इस बार आम आदमी पार्टी भी पूरे दमखम के साथ चुनाव में उतरने जा रही है . अनुप्रिया पटेल का अपना दल , असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम , संजय निषाद की निषाद पार्टी , ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी पूरे दमखम से चुनाव मैदान के लिए तैयार है . आम आदमी पार्टी , एआईएमआईएम , जदयू जैसी पार्टियां प्रदेश में अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रही हैं . जबकि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल बडी ताकत बढाने के लिए जोर लगा रही हैं ताकि वे इस स्थिति में आ जाएं कि जब भी सरकार बनने की बात आए उनकी पार्टी मोलभाव करने की पोजीशन में हो . भाजपा चुनाव पूर्व छोटी पार्टियों से गठबंधन करती रही है ताकि सरकार बनाने के वक्त जरूरत पडे तो चुनाव पूर्व गठबंधन का फार्मूला सरकार बनाने में भी काम आए . छोटे दल ज्यादा सीटें भले न हथिया पायें लेकिन इतना तो तय है कि बडे दलों का ये पार्टियां वोट काटकर खेल जरूर बिगाड देंगी . फिलहाल चतुष्कोणीय मुकाबले के आसार जरूर बनते दिख रहे हैं लेकिन फिर भी कोई एक पार्टी को अभी से मुगालते में रहने की जरूरत है नहीं .