महोबा पनवाड़ी– जासु नाम सुमिरत एक बारा। उतरहि नर भवसिंधु अपारा। सोई कृपालु केवटहिं निहोरा। जहीं जगु किय तिहु पगहु ते थोरा।
अर्थात, जिनके स्मरण मात्र से मनुष्य अपार भवसागर के पार उतर जाते हैं। जिन्होंने (बामन अवतार) तीन कदम में जगत को छोटा कर दिया। वहीं कृपालु राम चंद्र साधारण नाविक केवट से निहोरा कर रहे हैं।

बड़ी माता मंदिर में चल रही राम कथा के पांचवें दिन मंगलवार को श्रोताओं को केवट संवाद सुनाते हुए कथा वाचिका साध्वी विश्वेश्वरी देवी भावुक हो गईं।
बताया कि कैसे मंथरा के कुचक्र में फंस कर रानी कैकई ने राजा दशरथ से अपने पुत्र भरत के लिए अवध का सिंहासन और प्रभु राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास मांग लिया। पिता के वचन जा सम्मान करते हुए भगवान सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या पुरी से जाने को सहर्ष तैयार होते हैं। अयोध्यावासियों को भगवान से इतना अधिक स्नेह था, कि नगर भर के नरनारी उनके पीछे पीछे वन जाने लगे। इस स्थिति में भगवान ने लीला की और सभी को सोता छोड़ वन की ओर प्रस्थान किया। आगे जाने पर भगवान को गंगा नदी पर करनी थी। जिसके लिए केवट नाम के मल्लहे ने उन्हें नाव कर बैठाने से इनकार कर दिया। कहा कि आपके पैरों में जादू है। उसके स्पर्श मात्र से पत्थर स्त्री रूप में परिवर्तित हो जाता है। भगवान द्वारा बारम्बार निवेदन पर केवट इस शर्त पर तैयार होता है कि पहले वह काठ के बर्तन में भगवान के पैर धोएगा। और संतुष्ट होने पर ही उन्हें गंगा पार कराएगा।
केवट द्वारा बारम्बार संदेह किए जाने पर भगवान कहते हैं कि हे प्रिय, तू वही कर जिससे तेरी नाव न जाए। जल्दी पानी ला और मेरे पैर धो ले। देर हो रही है, पार उतार दे।