राकेश कुमार अग्रवाल
क्रिकेट को सर्दियों का खेल माना जाता है . गर्मियों में चिलचिलाती धूप में पूरे दिन पसीना बहाते हुए फील्डर के लिए मैदान में खडे रहना और गेंद के पीछे भागना या बल्लेबाज को रनों के लिए 22 गज की दूरी नापना भी असहज करने वाला होता है . बरसात में आउटडोर क्रिकेट खेलना संभव ही नहीं है . ऐसे में गर्मियों में क्रिकेट को संभव करने का छोटा प्रयोग टी 20 के रूप में साकार हुआ जब तीन घंटे के झटपट क्रिकेट ने गर्मियों में भी खिलाडियों और दर्शकों को क्रिकेट के साथ मनोरंजन की खुराक मिलने लगी .
कहते हैं कि बदलाव दुनिया का सबसे बडा अटल सत्य है . लम्बे समय से चली आ रही यथास्थिति को बदलकर नई धारा बहाने की एक छोटी सी कोशिश भी बदलाव का हिस्सा होती है . आउट ऑफ द बाॅक्स आइडिया बदलाव का वाहक बनता है . जीवन के किसी भी क्षेत्र में आप देखें हर दस बीस साल में पूरा नहीं तो बहुत कुछ जरूर बदल जाता है . ऐसे में भला खेलों की दुनिया में बदलाव न हो ऐसा कैसे संभव है . खेलों की दुनिया में रात के अंधेरे में कृत्रिम रोशनी में मैच खिलाने की परिकल्पना इंग्लैण्ड के हरबर्ट चैपमेन की थी . आर्सेनल के मैनेजर रहे हरबर्ट के दिमाग में 1930 में यह विचार कौंधा था कि क्यों न मैचों को रात के अँधेरे में कराया जाए . उनकी यह परिकल्पना 1951 में तब साकार हुई जब उत्तरी लंदन के हाइबरी स्टेडियम में गर्मियों में पहली बार फ्लड लाईट स्थापित की गईं . और आर्सेनल एवं रेंजर्स के बीच अक्टूबर में प्रदर्शनी मैच खेला गया . दूधिया रोशनी में पहला क्रिकेट मैच मिडिलसेक्स और इंग्लैण्ड के बायें हाथ के स्पिनर जैक यंग के सहायतार्थ 11 अगस्त 1952 को खेला गया . जिसे 7000 दर्शकों ने देखा था . एवं बीबीसी ने इस मैच का प्रसारण भी किया था .
ज्यादातर अनीर्णीत हो रहे टेस्ट मैचों के कारण टेस्ट मैचों से दर्शकों का नाता कम होता जा रहा था . एवं यह सवाल बार बार उठाया जाने लगा था कि क्रिक्रेट को लोकप्रिय कैसे बनाया जाए . इस नीरसता को तोडने का श्रेय जाता है आस्ट्रेलिया के दिग्गज कैरी पैकर को . जिन्होंने 70 के दशक में आस्ट्रेलिया में वर्ल्ड सीरीज इंट्रोड्यूस की . रंगीन गेंद , रंगीन कपडे व दिन रात्रि के मैचों ने क्रिक्रेट से विमुख हो रहे दर्शकों को वापस स्टेडियम में आने को मजबूर कर दिया . इसके ठीक एक साल बाद 27 नवम्बर 1978 को ऑस्ट्रेलिया के सिडनी क्रिकेट ग्राउंड पर वेस्टइंडीज और आस्ट्रेलिया के बीच पहला डे नाइट वन डे इंटरनेशनल मैच खेला गया . इस मैच के पांच साल बाद भारत में 1983 में पहला डे नाइट वन डे इंटरनेशनल मैच दिल्ली में भारत और पाकिस्तान के मध्य खेला गया . एक विकेट से भारत ने इस मैच में जीत हासिल की थी . इस डे नाइट मैच को देखने के लिए 60000 दर्शक मैदान में डटे हुए थे .
वक्त ने बदलाव का फिर नया दौर 2015 में तब देखा जब आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड की टीमों के बीच डे नाइट टेस्ट मैच को गुलाबी गेंद से खेले जाने को आईसीसी ने हरी झंडी दे दी . 27 नवम्बर 2015 को इस तरह दुनिया के पहले पिंक बाॅल टेस्ट का आस्ट्रेलिया के एडीलेड में आगाज हुआ . भारत जिसे क्रिक्रेट प्रेमियों का गढ माना जाता है एवं बीसीसीआई का वर्ल्ड क्रिकेट में अपना सिक्का चलता है . ऐसे में भारत भी डे नाइट टेस्ट मैच के आयोजन के लिए कमर कस के तैयार था . कोलकाता में भारत और बांग्लादेश के बीच खेले गए पहले डे नाइट टेस्ट मैच में तीसरे दिन में भोजनावकाश के पूर्व ही भारतीय टीम ने बांग्लादेश की टीम का एक पारी और 46 रन से पराजित कर सूपडा साफ कर दिया था .
टी 20 मैचों , वन डे मैचों ने डे नाइट मैचों को लेकर दर्शकों की दीवानगी पहले ही बढा दी है . कोरोना काल में एक साल तक खेल गतिविधियां ठप रही हैं ऐसे में दुनिया के सबसे बडे एवं खूबसूरत अहमदाबाद के मोटेरा स्थित सरदार पटेल स्टेडियम में भारत और इंग्लैण्ड के बीच खेली जा रही सीरीज का तीसरा टेस्ट मैच एक एक की बराबरी से चल रही सीरीज में रोमांच पैदा करने का काम करेगा . हालांकि क्रिकेट प्रेमी इस शहर के महज पचास फीसदी ही मैच का लुत्फ उठा पायेंगे . लेकिन अहमदाबादवासियों के लिए संतोष की बात यह है कि यहां पर लगातार दो टेस्ट मैच और पांच टी 20 मैच होने वाले हैं .
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अगवानी मोदी ने अहमदाबाद के इसी स्टेडियम में नमस्ते ट्रंप से की थी . एक साल बाद स्टेडियम नई सज धज के साथ खेल , खिलाडियों , और खेल प्रेमियों के लिए तैयार है . मौसम भी खुशगवार है ऐसे में तैयार हो जाइए डे नाइट क्रिकेट के तकनीकी और रोमांच के अनूठे मुकाबले के लिए ..
गुलाबी गेंद.. रंगीन कपड़े और रात का समां
Click