पसंद का साथी चुनना क्या गुनाह है?

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राकेश कुमार अग्रवाल
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने ताजा फैसले में व्यवस्था दी है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाला हो , रहने का अधिकार है . यह उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का मूल तत्व है . कोर्ट ने कहा कि हम यह समझने में नाकाम हैं कि जब कानून दो व्यक्तियों को चाहे वह समान लिंग के साथ ही क्यों न हो , शांतिपूर्वक साथ रहने की अनुमति देता है तो किसी को भी चाहे वह कोई व्यक्ति , परिवार , अथवा राज्य ही क्यों न हो , उनके रिश्ते पर आपत्ति करने का अधिकार नहीं है .
माननीय न्यायालय ने याचिकाकर्ता सलामत अंसारी और प्रियंका खरवार के प्रकरण में यह व्यवस्था दी है . सलामत और प्रियंका ने गत 19 अक्टूबर 2019 को मुस्लिम रीति से निकाह किया था . प्रियंका ने इसके बाद इस्लाम को स्वीकार कर लिया और एक साल से दोनों पति- पत्नि की तरह रह रहे हैं . प्रियंका के पिता ने इस रिश्ते का विरोध करते हुए एफआईआर दर्ज कराई थी . याचिका का विरोध करते हुए प्रदेश सरकार की ओर से कहा गया था कि सिर्फ शादी के लिए धर्म परिवर्तन करना प्रतिबंधित है और ऐसे विवाह को कानून में मान्यता नहीं है . न्यायालय ने अपने फैसले में साफ कहा है कि हम प्रकरण को हिंदू मुस्लिम के नजरिए से नहीं देखते . यह दो बालिग लोग हैं . और व्यक्तिगत रिश्तों में हस्तक्षेप करना व्यक्ति की निजता के अधिकार में गंभीर अतिक्रमण है .
धर्म , जाति , गोत्र के खांचों में जकडे हुए समाज में विवाह एक महत्वपूर्ण रस्म होती है . इसकी महत्ता को इससे समझा जा सकता है कि जीवन की तमाम रस्मों और संस्कारों में विवाह सबसे तामझाम और धूमधाम से आयोजित होता है . जिसकी सालों से तैयारियाँ चलती हैं . देश में सभी धर्मों और समाजों में बेटा या बेटी के विवाह का दायित्व माता पिता का रहा है . सदियों से संतानें माता – पिता द्वारा लिए गए फैसले को अंगीकार करते आए हैं . दरअसल चार दशक पहले तक लडके लडकियों में शादी क्या है ? शादी क्यों की जाती है ? इसकी समझ विकसित होने के पहले ही उनकी शादी कर दी जाती थी . लेकिन समाज में ज्यों ज्यों शिक्षा का प्रसार हुआ एवं बच्चों में शादी के पहले अपने पैरों पर खडे होने का भाव विकसित हुआ शादी की उम्र बढती गई . आज चाहे कोई नौकरी या जाॅब हो या फिर खुद का कारोबार खडा करना उम्र सहज रूप से 28-30 वर्ष पहुंच जाती है . केवल लडके ही नहीं अब बेटियाँ भी खूब पढ रही हैं व नौकरियों में आगे आ रही हैं . ऐसे में दोनों की उम्र कब वयस्कता पर पहुंच जाती है पता नहीं चलता है .
उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए भी लिए लडके – लडकियों को अपना गांव , कस्बा , शहर छोडकर बडे नगरों – महानगरों में जाना पडता है . पढाई के दौरान तो कभी जाॅब के दौरान अकसर ऐसा होता है जब अकेले अपने घर से बाहर रह रहे लडका या लडकी को कभी एक दूसरे की मदद की जरूरत पडती है . या यूं ही कोई व्यक्ति एक दूसरे के करीब आता है कभी मददगार के रूप में कभी दोस्त के रूप में . यही करीबियाँ एक दूसरे को इतना नजदीक ले आती हैं कि दोनों एक दूसरे के गुणों , खूबियों , खामियों और उनकी जीवन शैली से वाकिफ हो जाते हैं . सालों के सिलसिले के बाद दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगते हैं बिना यह सोचे कि उनके रिश्ते का अंजाम क्या होगा ?
दरअसल परिवार और पेरेन्टस के माध्यम से जो शादियाँ होती हैं वे दोनों परिवारों की पूरी तरह से कैलकुलेशन होती है . जिसमें लडका- लडकी की उम्र , कद , काठी , रंग , रूप , गोत्र , गुणों का मिलान , दोनों किस पेशे से जुडे हैं . दोनों की कमाई कितनी है . जाॅब करते हैं तो पैकेज कितने का है ? दोनों के प्रोफेशन क्या हैं ? जमीन – जायदाद सम्पत्ति कितनी है . कितने भाई बहन हैं ? परिवारों का स्टेटस और स्टैंडर्ड मन माफिक है या नहीं ? ससुराल दकियानूसी तो नहीं है . लडकी को घूंघट तो नहीं रखना पडेगा . खानपान , रहन सहन कैसा है ? जैसे तमाम पैरामीटर पर लडका लडकी और घर परिवार को तौला जाता है . इसके बाद बात आती है लेनदेन की तब कहीं जाकर रिश्ते की बात बनती है . यह रिश्ते पूरी तरह से कैलकुलेशन पर आधारित होते हैं इसमें लडका लडकी के बीच में प्रेम का तत्व दूर दूर तक नहीं होता . लडकी देखने के नाम पर आधा घंटे की जो मुलाकात होती है उसमें चेहरा , फेसकट , रंग , रूप , चाल तो देखी जा सकती है . वह भी बनावटी ज्यादा होता है . जबकि प्रेम विवाह में यह सभी पैरामीटर गौण हो जाते हैं . क्योंकि यहां केवल एक दूसरे के प्रति केयरिंग व एक दूसरे की भावनाओं की कद्र करने का भाव कहीं ज्यादा होता है . यही वो तत्व होता है जिसके कारण दोनों एक दूसरे को चाहने लगते हैं. लेकिन दोनों परिवारों में चाहे लडके का परिवार हो या लडकी के घर के मुखिया का अहम आडे आ जाता है . यदि धमकाने के बाद भी दोनों शादी के लिए अड जाते हैं तो शुरुआत होती है उन्हें प्रताडित करने की . धमकाने की . यहां तक कि एक दूसरे के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की . इसके बाद भी बात नहीं बनती है तो जाति और धर्म की आड लेकर दोनों बालिगों की मरजी को नया रंग दे दिया जाता है .इस तरह से एक सीधा सच्चा रिश्ता जाति , धर्म , समाज और परिवार की नाक का सवाल बन जाता है .
बेहतर तो यह होगा कि दोनों बालिगों पर अपनी पसंद थोपने के बजाए उनको अपने अंदाज में जीवन जीने का मौका मिले एवं वे स्वंय साबित करें यह वास्तविक प्रेम था न कि कोई समझौता न ही गुड्डे – गुडियों का खेल . राजनीति के बहुत से मौके मिलेंगे . प्रेम की बलिवेदी पर युवा जोडे को राजनीति का शिकार कतई न बनाया जाए .

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