बुंदेलखंड – मोरो दरद न जाने कोए ..

9587

राकेश कुमार अग्रवाल

बुंदेलखंड की बदहाली के पीछे हो सकता है कि केन्द्र सरकारों को कोसा जाए लेकिन बुंदेलखंड की उपेक्षा उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश दोनों सरकारों ने भी जमकर की है . दोनों सरकारों द्वारा बनाई जाने वाली योजनाओं में भी अपने अपने बुंदेलखंड क्षेत्र के साथ यदि न्याय हुआ होता तो यह क्षेत्र भी बदहाल और विपन्न न होता .

सडक , सिंचाई , उद्योग , शिक्षा , स्वास्थ्य , कृषि , इन्फ्रास्ट्रक्चर सभी पैमानों पर बुंदेलखंड प्रदेश के अन्य क्षेत्रों के मुकाबले फिसड्डी है . अलबत्ता खनन और दोहन के मामले में प्रदेश ही नहीं केन्द्र की सत्ता की निगाहें भी बुंदेलखंड पर लगी होती हैं एवं लखनऊ , दिल्ली से खनन का पट्टा आवंटन तय किया जाता है .

जनप्रतिनिधियों की भूमिका होती है कि वे अपने क्षेत्र के लिए ज्यादा ज्यादा योजनाओं को स्वीकृत व धनावंटित कराकर उनको धरातल पर उतरवायें . अपने अपने क्षेत्र के विकास के लिए धनराशि की खींचतान में पूर्वी व पश्चिमी उत्तर प्रदेश क्षेत्र धनराशि का अधिकांश भाग खींच ले जाते हैं . लखनऊ राजधानी क्षेत्र है जिसका विकास स्वभाविक रूप से होता है . मध्य उत्तर प्रदेश का कानपुर क्षेत्र अपनी विशालता व पुरानी छवि के कारण बजट पा जाता है . बेकदरी है तो दक्षिणी भाग में बसे बुंदेलखंड की . जिसे टोकन के रूप में लाॅलीपाप रूपी झुनझुना थमा दिया जाता है . इसी प्रकार मध्यप्रदेश में मालवा व महाकौशल क्षेत्र के लिए अधिक धनावंटन होता है .
बुंदेलखंड भूभाग असमतल है . पहाडी व पठारी क्षेत्र है . ऊंची – नीची पहाड़ियों – घाटियों व विन्ध्य पर्वत श्रृंखला में फैले इस भूभाग को आधारभूत ढांचे के साथ विकसित करने की सबसे पहली आवश्यकता है . आजादी के सात दशक बाद भी सरकारें बुंदेलखंड में न पेयजल न ही सिंचाई प्रबंधन कर सकीं हैं . यहां का किसान आज भी केवल एक फसल पर निर्भर रहता है जबकि अन्य राज्यों के किसान ही नहीं प्रदेश के दूसरे हिस्सों के किसान सहजता से तीन फसलें पैदा करते हैं . जबकि बुंदेलखंड का किसान काश्तकार से मजदूर बन कर रह गया है . अब जबकि निर्माण कार्य में भी मशीनीकरण का जोर है ऐसे में मजदूरी का भी कोई बेहतर भविष्य नजर नहीं आ रहा है . ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूर के हाथ में प्रतिदिन काम नहीं है .

विडम्बना का एक बडा विषय यह है कि यूपी – एमपी दोनों सरकारों की जो योजनाएं बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए बनती हैं उनमें आपस में कोई तालमेल नहीं होता है . दोनों राज्यों के क्षेत्राधिकार भी योजना में बाधक होते हैं . यातायात के साधनों का आज भी सर्वथा अभाव है . झांसी , ग्वालियर जैसे क्षेत्रों को छोड दिया जाए तो अन्य क्षेत्र आज भी उपेक्षित ही हैं . चित्रकूट का एयरपोर्ट कब शुरु होगा . झांसी कब एयर कनेक्टिविटी से जुडेगा इसकी बातें ज्यादा हैं . खजुराहो को रेल सुविधा मिली लेकिन एक दशक बाद भी इसे पूरे देश से रेल मार्ग से नहीं जोडा जा सका . हवाई सेवा में सुधार और वृद्धि होने के बजाए गिरावट ज्यादा है .
यहां का कच्चा माल अन्य क्षेत्रों में जाता है वो क्षेत्र सरसब्ज हो जाते हैं जबकि यह क्षेत्र विपन्न ही बना हुआ है . उच्च शिक्षा एवं तकनीकी शिक्षा किसी भी इलाके के पिछड़ेपन को दूर करने में सहायक बनती है . बुंदेलखंड में गुणवत्तापरक शिक्षण संस्थान सिरे से नदारद हैं . बेरोजगारी चरम पर है . बुंदेलखंड की दस्यु समस्या के पीछे ऐसे ही कारण हैं . संपूर्ण बुंदेलखंड क्षेत्र में एक ही भाषा बुंदेलखंडी बोली जाती है .

बुंदेलखंड की अपनी अलग संस्कृति है . भाषा और संस्कृति की दृष्टि से भी बुंदेलखंड राज्य अलग बनाया जा सकता है . उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश की सरकारें इस भूभाग के विकास में असफल रही हैं . देश के दो विशाल राज्यों में बुंदेलखंड के दो हिस्से करके दोनों राज्यों में बुंदेलखंड को बांट दिया गया . हाल फिलहाल इसका दर्द दूर करना तो क्या दर्द के कम होने के भी कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं .

9.6K views
Click