टाठी घाट : देवरहा बाबा को खुद सोने की थाली में भोजन कराने आईं थीं माता मन्दाकिनी

1887

चित्रकूट : समुद्र को सोखने वाले अगस्त, देवताओं के राजा इंद्र को इंतजार कराने वाले सरभंग,महादेव के अनन्य उपासक सुतीक्षण जैसे ऋषि मुनियों की अत्यंत मनोरम तपस्थली शहर के कोलाहल से दूर अट्भुद शांति की धोतक टाठी घाट की महिमा अपरंपार है। इस आधुनिक युग मे यहाँ पर संत केवल तप करते है। धन, ऐश्वर्य वैभव जैसी किसी भी तरह की बुराई से सर्वथा दूर है। यहाँ पर सबसे बड़ी बात यह है कि राम ने यहाँ पर जो नीलकमल माता सीता के लिए चुने उनकी प्रतिकृति आज भी यहाँ दिखाई देती है। शायद इन सन्तो के तप का ही परिणाम है कि हिसंक पशु हो या फिर शहर के नामधारी संत, इन आश्रमों के आसपास नजर नही आते। संत की माने तो माँ भगवती मन्दाकिनी ने स्वयं देवरहा बाबा को यहाँ सोने की थाली में भोजन दिया था।

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