मेजर ध्यानचंद की गौरवगाथा

983

जन्म जयंती पर विशेष

हिटलर की मौजूदगी में जब पढा गया जर्मनी में मर्सिया

बात १९३६ की है. बर्लिन ओलंपिक खेलों में भाग लेने वाली भारतीय हाॅकी टीम से ध्यानचंद का नाम गायब था . पंजाब के खिलाडी सैयद मोहम्मद जफर को टीम का कप्तान बनाया गया था . ध्यानचंद अपनी बटालियन के साथ फ्रंटियर पर तैनात थे . हालांकि कोलकाता में आयोजित कैंप में उनका नाम था लेकिन प्लाटून इंचार्ज ने उनको रिलीव करने से मना कर दिया था . प्लाटून को बर्मा बाॅर्डर पर भेजे जाने की तैयारी चल रही थी . दूसरे विश्व युद्ध की आहट हो चुकी थी .
प्लाटून के रवाना होने के पूर्व सभी फौजी वर्दी में रिहर्सल कर रहे थे . तभी प्लाटून कमांडर की नजर ध्यानचंद पर पडी . उन्होंने प्लाटून इंचार्ज से पूछा कि ” यहां क्या कर रहा है ध्यान ? ” He is Olympian . Two times gold medal winner . इसको कैम्प ज्वाइन करने के लिए तत्काल रिलीव करिए . ” इसे नियति का खेल कहिए या रब की इच्छा . बर्मा बाॅर्डर के बजाए ध्यानचंद कोलकाता कैम्प पहुंच गए . ध्यानचंद के कैम्प ज्वाइन करते ही कप्तान जफर ने यह कहकर कप्तानी छोड दी कि असली कप्तान आ गया है . इधर बर्मा बाॅर्डर पर भेजी गई पूरी बटालियन के सभी सैनिक मारे गए . केवल ध्यानचंद जिंदा बच गए .क्योंकि शायद नियति को यही मंजूर था . मौत के मुंह से निकलकर आए ध्यानचंद ने १५ अगस्त को बर्लिन में हिटलर की मौजूदगी में जो मर्सिया पढा तो हिटलर आधे मैच से ही दर्शक दीर्घा छोड भाग खडा हुआ था .

ऐसा था मेजर ध्यानचंद का हाॅकी , खेल और देश से रिश्ता .

जब सीमा पर डटने की बात आई तब भी उफ नहीं की . जब देश का नेतृत्व करने की बारी आई तो एक फौजी बनकर अग्रिम पंक्ति में डट गए . क्या मेजर ध्यानचंद भारत के असली रतन नहीं हैं? यदि हैं तो भारत रत्न से नवाजा जाना मतलब सम्मान का सम्मान करना होगा .

# भारत रत्न फाॅर मेजर ध्यानचंद

983 views
Click