राकेश कुमार अग्रवाल
आज जब समाज के सभी वर्गों के लोगों की नजर शिक्षकों पर है . आए दिन उन्हें लोगों के व्यंग्य वाणों का सामना करना पडता है . कारण बिल्कुल सामान्य सा है कि बीते दो दशकों में शिक्षकों के वेतन में इतना इजाफा हुआ है कि उनका वेतन भी अब आकर्षक लगने लगा है . कार्यावधि की दृष्टि से देखा जाए तो सरकारी सेवाओं में सबसे कम ड्यूटी ऑवर शिक्षकों का है . लेकिन सबसे ज्यादा कोसा भी शिक्षकों को जाता है . विशेषतौर पर शिक्षा में गुणवत्ता को लेकर . लोगों की शिक्षकों से अपेक्षाओं में बेतहाशा वृद्धि हुई है यही कारण है कि वे ही सबसे ज्यादा निशाने पर हैं . लेकिन यदि शिक्षक चाहे तो वह अपने गौरवशाली दिनों को वापस हकीकत में साकार कर सकता है .
हाल ही में उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के सरीला विकास खंड के धरऊपुर मजरा के नवीन प्राथमिक विद्यालय में तैनात प्रधानाध्यापक भीष्मनारायण सोनी के स्थानांतरण पर जब उनकी विदाई हुई तो स्कूल के छात्र ही नहीं वरन गांववासी भी फूट फूटकर रो पडे . उनकी विदाई में गांव की बुजुर्ग महिलाओं ने तिलक लगाकर उनको विदाई दी तो बहू बेटियों ने अश्रुपूरित सजल नेत्रों से उन्हें विदा किया . बारह वर्षों तक धरऊपुर मजरे में तैनात रहे भीष्मनारायण सोनी गांव के लोगों से मिले प्यार को शायद ही कभी भुला पायेंगे .
दरअसल पटरी से उतरी शिक्षा व्यवस्था को अगर पटरी पर लाना है तो त्रिस्तरीय मोर्चे पर काम करना होगा तभी यह संभव होगा . पहला मोर्चा है शासन स्तर पर . प्राथमिक विद्यालय और प्राथमिक शिक्षा पूरी शिक्षा की इमारत की नींव होती है . इन कक्षाओं में जो पढाया , सिखाया जाता है इसी के आधार पर बच्चे का विकास होता है . प्राइमरी कक्षाओं की पढाई एक रिले रेस की तरह होती है . एक कक्षा में जो पढा दिया जाता है अगली कक्षा में उसके आगे से पढाई जारी रखी जाती है . इसलिए प्राथमिक शिक्षा में की गई जल्दबाजी या उस पर गंभीरता के बजाए उसकी अनदेखी हमेशा के लिए बच्चे पर भारी पड सकती है . शासन को चाहिए कि प्रत्येक प्राइमरी स्कूल में कम से कम पांच सहायक अध्यापकों के अलावा प्रधानाध्यापक की अलग से तैनाती सुनिश्चित की जाए . प्रधानाध्यापक की यह जवाबदेही हो कि वह पाठ्यक्रम को सुचारू रूप से पूरा करवाए . समय समय पर बच्चों को दी जा रही शिक्षा की गुणवत्ता का परीक्षण हो . विद्यालय में खेलकूद , योग व्यायाम , सांस्कृतिक गतिविधियाँ , पीटीएम , मिड डे मील , परीक्षायें व सरकारी पत्राचार की जिम्मेदारी का निर्वहन प्रधानाध्यापक का हो . प्रधानाध्यापक की मदद के लिए छात्र संख्या के आधार पर एक या दो शिक्षा मित्रों की तैनाती की जा सकती है . जो सहायक अध्यापक की अनुपस्थिति में शिक्षण कार्य भी करेगा ताकि पठन पाठन किसी भी सूरत में बाधित न हो .
दुनिया के तमाम विकसित देश शिक्षा पर अपनी जीडीपी का 5 से 6 फीसदी तक खर्च कर रहे हैं दूसरी ओर भारत अभी भी 3 फीसदी के करीब खर्च कर रहा है . ऐसे स्कूलों की संख्या हजारों में है जहां महज एक शिक्षक तैनात है . ऐसे में सहज ही कल्पना की जा सकती है कि शिक्षा का वहां पर क्या हाल होगा ?
दूसरी महत्वपूर्ण भूमिका शिक्षकों की है . मेरा मानना है कि एक गुरु को जो सम्मान मिलता है वह सम्मान किसी भी प्रोफेशन से जुडे व्यक्ति को नहीं मिलता . बशर्ते गुरु को अपने पेशे को गम्भीरता से लेना पडेगा . एक स्टूडेंट अपने गुरु से जब सीखता है तो हमेशा के लिए वह उस छात्र के दिल में अपने लिए सम्मान पाने की जगह बना लेता है . ऐसा स्टूडेंट जब भी अपने गुरु को सामने पाता है श्रद्धा से उनके चरणों में शीश नवा देता है . जब छात्र बस स्टेंड , रेलवे स्टेशन या बाजार में कहीं अचानक टकराने पर पैर छूकर अपने गुरु से पूछता है कि सर आपने मुझे पहचाना ? मैं आपका स्टूडेंट रहा हूं . फलाने स्कूल में फलानी कक्षा में आपने मुझे पढाया था . तब गुरु जी का सीना गर्व से चौडा हो जाता है . और यही वह पल होता है जब गुरु को लगता है कि उसकी गुरु दक्षिणा उसे मिल गई है . नियमित रूप से विद्यालय जाना , अध्यापन में नए नए प्रयोग करते हुए अपना बेस्ट देना , रटाने के बजाए सिखाने पर जोर देकर बहुत कुछ बदला जा सकता है .
तीसरा मोर्चा अभिभावक का है . यदि पेरेन्टस नियमित रूप से बच्चे को स्कूल भेजें . समय समय पर होने वाली पीटीएम में जाकर उसके शिक्षकों से बच्चे का फीडबैक लेकर उस पर काम करें . बच्चे को पढाने , होमवर्क कराने , पाठ को याद कराने व समझाने में यदि रोजाना कुछ समय दें तो ऐसा कोई कारण नहीं है कि शिक्षा का परिदृश्य नहीं बदला जा सकता . एक अच्छा शिक्षक केवल बच्चे को ही नहीं बदलता बल्कि उसके परिवेश को भी बदलता है . तभी तो जब प्रधानाध्यापक भीष्मनारायण सोनी के स्थानांतरण पर उनकी विदाई के लिए पूरा गांव उमड पडता है और फूट फूट कर रोकर अश्रुपूरित विदाई देता है . जबकि भीष्मनारायण न कोई नेता , मंत्री या सांसद , विधायक हैं न ही कोई आला अधिकारी . इसके बावजूद छोटे से मजरे में रहकर पढाने वाला साधारण शिक्षक भी वो कर सकता है जिसको पीढियां याद रख सकती हैं . याद रखिए ये सब भावनाएं दिल से आती हैं न कि किसी प्रलोभन से .
आप भी बदल सकते हैं सूरत
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