सदाचार से ही जीवन में प्रकट होता है धर्म – दिनेशाचार्यजी

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अयोध्या। भागवत का आरंभ जन्म शब्द से और समाप्ति परम् शब्द से। जिसका तात्पर्य है कि मनुष्य जन्म का परम लक्ष्य है उस परमतत्व ईश्वर की प्राप्ति अर्थात उसकी अनुभूति।

बीकापुर क्षेत्र के खौंपुर-कोदैला में चल रही श्रीमद्भागवत कथा का द्वितीय पुष्प विसर्जित करते हुए कथाव्यास महंत दिनेशाचार्य जी महाराज ने उक्त बातें कही।

दिनेशाचार्य जी महाराज ने कहाकि धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों सत्य के खोजी हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि विज्ञान उस सत्य को जानकर मानता है और धर्म उसे मानकर जानता है। धर्म शब्द पर प्रवचन करते हुए बताया धर्म हमारी आपकी बुद्धि का विषय नहीं है कि हम जिसको धर्म मानें वह धर्म, जिसको अधर्म मान लें वह अधर्म।

धर्म अधर्म में एकमात्र वेद, शास्त्र ही प्रमाण हैं। वेद प्रणिहितो धर्मो.. वेद,शास्त्र जिन कार्यों को करने की अनुमति देता है, विधान करता है, उसे धर्म कहते हैं और जिसका निषेध करता है, उसे अधर्म। सदाचरण से ही जीवन में धर्म प्रकट होता है। सदाचार हीन व्यक्ति धार्मिक हो ही नहीं सकता।

देश में बढ़ रहे धर्मांतरण के घटनाक्रम पर कटाक्ष करते हुए युवाओं से अपने धर्म के प्रति सजग रहने का आह्वान किया। धर्म वह है,जो कन्वेंस करें, जो कन्वर्जन कराए वह धर्म नहीं, वह सिर्फ एजेंडा।

इस अवसर पर मुख्य यजमान उमाशंकर तिवारी,कृष्णानंद दुबे प्रधान, विजय शंकर, कृष्ण कुमार,राम नारायण तिवारी एडवोकेट,बृजभूषण,चंद्र भूषण ,संदीप तिवारी पूर्व प्रधानआदि गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

रिपोर्ट- मनोज कुमार तिवारी

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