Anand Mohan Riha: क़त्ल के इल्ज़ाम में जेल काट रहे बिहार के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह 16 साल बाद रिहा

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Anand Mohan Riha: बिहार के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह 16 साल बाद जेल से रिहा हो गए। गुरुवार 27 अप्रैल सुबह 4 बजे ही उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया। 

बताया जा रहा है कि भीड़ जमा होने की आशंका को देखते हुए सुबह उनकी रिहाई कर दी गई। इससे पहले रात में ही सारी कागजी प्रक्रिया पूरी कर दी गई थी। बता दें कि डीएम जी कृष्णैया की हत्या के केस में उन्हें उम्रकैद की सजा हुई थी। 16 साल बाद उनकी रिहाई हुई है।

गौर करें तो बुधवार को आनंद मोहन ने 15 दिन की पैरोल खत्म होने के बाद सहरसा जेल में सरेंडर किया था। पैरोल सरेंडर होते ही जेल में रिहाई की प्रक्रिया शुरू हो गई थी। 

आनंद मोहन सबसे पहले नगरपालिका चौक स्थित अपने कार्यालय जाएंगे। यहां फ्रेंड्स ऑफ आनंद की तरफ से उन्हें सम्मानित किया जाएगा। इसके बाद उनका काफिला पैतृक गांव पंचगछिया की ओर बढ़ेगा। इस दौरान जगह-जगह उनके स्वागत की तैयारी की गई है।

Anand Mohan Riha: बता दें कि जेल में पैरोल सरेंडर करने से पहले आनंद मोहन ने खुद पूरे दिन तैयारियों का जायजा लिया। बुधवार को वे सबसे पहले नगरपालिका चौक स्थित कार्यालय पहुंचे और फ्रेंड्स ऑफ आनंद के समर्थकों के साथ बैठक की।

इस दौरान उन्होंने वहां की तैयारियों को देखा। यहां से निकलने के बाद वे दोपहर 2 बजे अपने गांव पंचगछिया पहुंचे। मां भद्र काली के मंदिर में मत्था टेका और तैयारियों की समीक्षा। इसके बाद वे 4.20 बजे जेल जाने के लिए रवाना हुए। आनंद मोहन अपने बेटे की सगाई के लिए 15 दिन के पैरोल पर थे।

जेल सूत्रों के मुताबिक, आनंद मोहन का जेल में काफी सामान है। फ्रिज, टीवी, वाशिंग मशीन, जिम एक्सेसरीज से लेकर अन्य सामान्य हैं। जिसे बाहर निकाला जाएगा। बताया जा रहा है कि 200 से 300 किताबों की उनकी एक लाइब्रेरी भी है।

किताबों को जेल लाइब्रेरी को ही डोनेट करने की बात की जा रही है। इसके अलावा आनंद मोहन के पेट्स भी जेल के अंदर हैं, जो उनके साथ ही आजाद हो जाएंगे।

आनंद मोहन की पहचान आरक्षण विरोधी के तौर पर होती थी। उन्होंने 1993 में बिहार पिपुल्स पार्टी के नाम से अपनी खुद की पार्टी बनाई। डीएम की हत्या का दोषी पाए जाने पर उम्रकैद की सजा  मिली थी।

Anand Mohan Riha: गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की 4 दिसंबर 1994 को मुजफ्फरपुर में हत्या हुई थी। इस हत्याकांड में आनंद मोहन को अक्टूबर 2007 में उम्रकैद की सजा हुई थी। तब से वे जेल में हैं। 

जेल मैन्युअल के मुताबिक, उन्हें 14 साल की सजा पूरी करने के बाद परिहार मिल सकता था, लेकिन 2007 में जेल मैन्युअल में एक बदलाव की वजह से वे बाहर नहीं आ पा रहे थे।

अब सरकार ने जेल से बाहर निकालने के लिए नियम बदल दिए हैं। इसके बाद आनंद मोहन समेत 27 लोगों को सोमवार को रिहाई के आदेश जारी कर दिए गए। आनंद मोहन पर 3 और केस चल रहे हैं। इनमें उन्हें पहले से बेल मिल चुकी है।

गौर करें तो गोपालगंज के जिलाधिकारी जी कृष्णैया 5 दिसंबर 1994 को हाजीपुर से गोपालगंज लौट रहे थे। इसी दौरान मुजफ्फरपुर में आनंद मोहन के समर्थक DM की गाड़ी को देखते ही उन पर टूट पड़े। पहले उन्हें पीटा गया, फिर गोली मारकर हत्या कर दी थी।

आरोप लगा कि भीड़ को आनंद मोहन ने ही उकसाया था। घटना के 12 साल बाद 2007 में लोअर कोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई। आजाद भारत में यह पहला मामला था, जिसमें एक राजनेता को मौत की सजा दी गई थी।

2008 में हाईकोर्ट ने इस सजा को उम्रकैद में बदल दिया था। साल 2012 में आनंद मोहन ने सुप्रीम कोर्ट में सजा कम करने की अपील की। कोर्ट ने उनकी इस मांग को खारिज कर दिया था।

वहीं बिहार सरकार ने 10 अप्रैल 2023 को बिहार कारा हस्तक, 2012 के नियम-481(i) (क) में संशोधन करके उस वाक्यांश को हटा दिया, जिसमें सरकारी सेवक की हत्या को शामिल किया गया था।

इस संशोधन के बाद अब ड्यूटी पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या अपवाद की श्रेणी में नहीं गिनी जाएगी, बल्कि यह एक साधारण हत्या मानी जाएगी।

इस संशोधन के बाद आनंद मोहन के परिहार की प्रक्रिया आसान हो गई, क्योंकि सरकारी अफसर की हत्या के मामले में ही आनंद मोहन को सजा हुई थी।

गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की हत्या में बाहुबली आनंद मोहन की रिहाई से बिहार की ब्यूरोक्रेसी में खलबली है। IAS एसोसिएशन भी विरोध में उतर आया है। बिहार के पूर्व IPS ने मुहिम छेड़ दी है। वह पटना हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर सरकार के फैसले पर जनहित के लिए रोक लगाने की मांग करेंगे।

वहीं, जी कृष्णैया की पत्नी उमा सदमे में हैं। वह कहती हैं- ऐसा वोट बैंक की राजनीति के लिए किया जा रहा है। वह रिहाई को खुद के साथ अन्याय बताती हैं। 

चर्चा इस बात की भी है कि बिहार की सियासत से जाति है कि जाती नहीं। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इनकी रिहाई पर सवाल होने लगे हैं कि आखिर महागठबंधन सरकार के लिए आनंद मोहन इतने क्यों जरूरी हैं?

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