अपनी पशुता त्यागिए… पशु-पक्षियों को बचाइए

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राकेश कुमार अग्रवाल

अगर यह मान लें कि ईश्वर ने इस पूरी कायनात को रचा है तो सवाल उठता है क्या सब कुछ एक साथ रचा गया है या फिर यह विकास यात्रा क्रमश: हुई है .
धरा पर हवा , पानी के साथ प्राकृतिक चीजें सबसे पहले अस्तित्व में आईं . इसके बाद धरती पर बारी आई पेड – पौधों की . पानी की उपयोगिता और महत्ता को समझते हुए धरा के तीन चौथाई भूभाग पर पानी का खाका खींचा गया . धरती पर रहने के साथ आक्सीजन और भोजन के इंतजाम के लिए पेड – पौधों की बहुतायत की गई ताकि धरती रहने लायक बनी रहे साथ ही भोजन और जीवनयापन से जुडी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति इसी भूमंडल से होती रहे .

धरा पर रौनक बनी रहे , प्राकृतिक उथल पुथल मची रहे , आपस में उत्तरजीविता बनी रहे इसलिए बैक्टीरिया , वायरस से लेकर कीट- पतंगे , जीव – जंतु , पशु – पक्षी को रचा गया . सूक्ष्म से सूक्ष्म कि आँखों से न दिखाई दें और बडे से बडे ऊँट , हाथी जैसे विशालकाय जानवर रचे गए . धरती पर रेंगकर चलने वाले , उछलकर चलने वाले , दीवारों पर बिना गिरे चढकर चलने वाले , धरती के अंदर बिलों में रहने वाले जीव रचे गए .

विशालकाय सरोवर , तालाब , झीलों , नदियों से सेकर समुद्र अस्तित्व में आए . ईश्वर ने सोचा होगा कि क्यों ना पानी के अंदर भी एक दुनिया बसाई जाए जिसमें खूबसूरत से लेकर बदसूरत , खूंखार से लेकर सामान्य जलीय जीवों हों . इस तरह मछलियों से लेकर घडियाल , मगरमच्छ , कछुआ समेत जलीय जीवों का पूरा संसार रच गया . आसमान खाली खाली सा दिखा तो सोचा क्यों न आसमां में भी थोडी हलचल बनी रहे . और इस तरह पक्षियों की कल्पना को साकार रूप दिया गया . लेकिन ये ध्यान रखा गया कि पक्षी जलीय या थलीय जीवों की तरह विशालकाय न हों . जिन पक्षियों को आकार में बडा गढा गया उनसे उडने की क्षमता छीन ली गई . ताकि आसमां में पक्षी ऐसा कुछ न करें जिसका खामियाजा जल या थल वालों को उठाना पडे .

इस तरह धरा पर हलचल और धमाचौकडी शुरु हो गई . इसके बाद पृथ्वी पर इंट्री होती है इंसान की . मानव के आगमन के बाद तो जैसे उथलपुल ही शुरु हो गई . इंसान ने प्रकृति के बने बनाए और सुचारू चल रहे सिस्टम को अपने मन मुताबिक ढालना शुरु कर दिया . और देखते ही देखते लाखों वर्षों की विकास यात्रा में भूमंडल कराहता हुआ चीख – चिल्लाने लगा . खनन, पेड – पौधों का कटान , जंगलों का नष्ट होना , वन्य जीवों का शिकार कभी आनंद के लिए तो कभी ऐय्याशियों के लिए , बढता औद्योगिकीकरण , प्रदूषण इतने कारक इकट्ठे हो गए जिसके चलते धरती पर रहने वाले जीव जंतु एक एक कर विलुप्त होने लगे .
हालात यह हैं कि केवल हिंदुस्तान ही नहीं पूरी दुनिया में जीव जंतुओं क् विलुप्तीकरण का खतरा बढता जा रहा है . भारत में बंगाल टाइगर , भारतीय हाथी , शेर , गैंडा , गौर , सफेद पंख वाली बतख , काली बतख , तिब्बती हिरन , हिम तेंदुआ , जंगली उल्लू, जंगली भैंस , गंगा नदी डाल्फिन सभी विलुप्ति की कगार पर पहुंच गए हैं . दुनिया में तो हाल और भी विकट है डायनासोर , ध्रुवीय भालू , चीता , अफ्रीकी हाथी , फिलीपींस ईगल , लाल पांडा , पैंगोलिन , दरियाई घोडा , जुगनू , सैगा समेत ढाई दर्जन से अधिक जीवों को विलुप्तप्राय की श्रेणी में रखा गया है .

4 अक्टूबर 1929 से प्रतिवर्ष पशुओं के प्रति समाज में जागरुकता लाने के लिए हर साल विश्व पशु दिवस मनाया जाता है . यही वह तारीख है जिस दिन दुनिया भर में पशुओं एवं उनके अस्तित्व को बचाने के लिए आवाज उठाई गई थी .

पूरी दुनिया में 34 जैव विविधता वाले क्षेत्र हैं जिनमें से तीन पूर्वी हिमालय , भारत – वर्मा और पश्चिमी घाट भारत में हैं . संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार स्तनधारियों का 7.6 प्रतिशत एवं पक्षी प्रजातियों का 12.6 प्रतिशत हिस्सा भारत में है .

जीवों के विलुप्त होते जाने को इन तथ्यों से समझा जा सकता है कि देश में 1951 के बाद से जंगली चीता नहीं देखा गया . जंगली भैंस केवल मध्य प्रदेश और उडीसा में थोडी बची हैं . दक्षिण भारत की वायनाड पहाडियों पर पाए जाने वाला विशालकाय गौर जिससे शेर भी पंगा नहीं लेता है विलुप्तप्राय है . जिस गैंडे का शिकार सिंधु नदी तट पर बाबर ने किया था केवल असम के कांजीरंगा में बचे हैं .

तथाकथित सभ्य और शिक्षित मानव ने जीव जंतुओं के उनके प्राकृतिक रहवास छीन लिए . जंगलों की बेतहाशा कटान , खनन , व शिकार के कारण जानवर गायब होते गए . यौनवर्धक दवाओं के निर्माण ने जीव जंतुओं के अवैध शिकार और उनकी तस्करी में लिप्त लोगों की संख्या में बेतहाशा इजाफा किया .

हालांकि सरकारी स्तर पर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 , नेशनल पार्क , वन्यजीव अभयारण्य जैसी संस्थायें अस्तित्व में आईं . बाघों की गणना की नवीन रिपोर्ट बताती है कि देश में बाघों की संख्या में तीस फीसदी का इजाफा हुआ है . लेकिन यह विभाग खुद अकसर निशाने पर रहता है . इस विभाग में बाहरी दखल न के बराबर है . मीडिया को विभाग द्वारा जो रिपोर्टें उपलब्ध कराई जाती हैं वही परोस दी जाती हैं . इसलिए ये रिपोर्टें कितनी सटीक हैं इनकी विश्वसनीयता को लेकर संशय भी बना रहता है . अकसर कहा भी जाता है कि जब से जंगलात विभाग अस्तित्व में आया तब से जंगल और जीव जंतुओं पर संकट मंडराया है जब तक वनवासी जंगलों में काबिज थे तब तक सब कुछ सलामत था .

इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि जिनके हाथों में जंगल और जंगली जीव जंतुओं को बचाने की कमान है वे उतने संवेदनशील हैं भी या नहीं .

Rakesh Kumar Agrawal

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