आओ ढूंढ़ो-ढूंढ़ो का खेलें खेल

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पॉलिटिक्स-कोई आपसे पूछे कि जीवन का लक्ष्य क्या है ? तो शायद इस सवाल पर सभी के जवाब अलग अलग होंगे। फिर भी यदि आप मुझसे पूछें तो मैं तो कहूंगा कि जीवन का लक्ष्य ढूंढना है। जीवन का लक्ष्य खोजना है। जिसे भी देखिए सभी ढूंढने और खोजने में लगे हैं। जिसने खोज लिया वही चीखकर कहने लगता है यूरेका …..यूरेका।
जिसे भी देखिए हर कोई समस्याओं से घिरा हुआ है। समस्याओं से जूझ रहा इंसान उन समस्याओं का समाधान ढूंढ रहा है। भक्त लोग भगवान को ढूंढ रहे हैं तो बेरोजगार नौकरी ढूंढ रहा है। जिसको जाॅब मिल गई वह शादी के लिए अपना जोड़ीदार ढूंढ रहा है। हर कोई कुछ न कुछ ढूंढने में लगा हुआ है। नेता वोटर ढूंढ रहे हैं तो कंपनियां ग्राहक ढूंढ रही हैं। वैज्ञानिक वैक्सीन और नई नई मशीनें ढूंढ रहे हैं। स्टूडेंट्स परीक्षा परिणाम के बाद टाॅपर्स लिस्ट में अपना नाम ढूंढ रहे हैं तो स्वास्थ्य कर्मी कोरोना वायरस ढूंढ रहे हैं।
लगभग 8 साल पहले 31 जनवरी 2014 को ढूंढना राष्ट्रीय समस्या बन गई थी। जब रामपुर के फायरब्रांड नेता व तत्कालीन कैबिनेट मंत्री आजम खां के पसियापुरा स्थित डेयरी फार्म से 7 भैंसे चोरी हो गई थीं। आजम खां की भैंसों की चोरी होने की खबर सभी टीवी चैनलों की बड़ी खबर बन गई थी। आजम खां की भैंसों की चोरी मीडिया की सुर्खियां बनते ही रामपुर पुलिस मंत्री जी की भैंसों की बरामदगी में जुट गई थी। आखिरकार पुलिस ने एक फरवरी को आजम खां की सातों भैंसों को ढूंढ ही निकाला था। भैंसों के बाद पुलिस पर फिर से बड़ी जिम्मेदारी आ गई है। कांग्रेस के किसान प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष हाजी नाजिश खां की घोड़ी 5 नवम्बर से गायब है। खां साहब की घोड़ी तोपखाना स्थित लाला की चक्की के पास बंधी थी। खां साहब ने घोड़ी को 82000 रुपए में खरीदा था। एवं वे उसे अपने परिवार का हिस्सा मानते थे। खां साहब ने ट्विटर के माध्यम से एडीजी जोन बरेली से घोड़ी के गायब होने की शिकायत की तो एडीजी साहब ने घोड़ी के गुमशुदा होने को गंभीरता से लेते हुए रामपुर की काबिल पुलिस को मंत्री जी की भैंस की माफिक घोड़ी को भी ढूंढ निकालने का आदेश दिया है।
जीवन में तलाश कभी खत्म होती है भला ? कोई इतना व्यस्त है कि उसे अपने लिए ही वक्त नहीं है। तभी तो मौका लगते ही वो गुनगुनाने लगता है कि
दिल ढूंढता है
फिर वही फुरसत के रात दिन
बैठे रहें
तसव्वुर ए जाना
किए हुए
दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन
और अगर यदि मामला हीरोईन का होता तो वो भी आपको ढूंढने में यह कहते हुए लगा देती कि
ढूंढो ढूंढो रे साजना
मोरे कान का बाला
हो सकता है आजम खां साहब की भैंसें खो जाने पर या हाजी नाजिश खां साहब की घोड़ी खो जाने पर कुछ लोगों के लिए इसमें भी हंसी ठट्टा सूझ रहा होगा जबकि सही बात तो यही है कि जिसका कुछ खोता है तो उसकी रातों की नींद और दिन का चैन खो जाता है। सामान का खो जाना तो इंसान बर्दाश्त नहीं कर पाता ऐसे में यदि किसी का दिल खो जाए तो सोचा कि क्या हाल होता होगा तभी तो सहसा ही मुंह से निकल पड़ता है कि
मुझे नींद न आए मुझे चैन न आए कोई जाए जरा ढूंढ के लाए कि जाने कहां दिल खो गया।
ढूंढने का काम तो इंसान के बचपन से ही शुरु हो जाता है। जब एक दोस्त चोर बनता था और दूसरा सिपाही। चोर छिप जाता था और सिपाही डंडा फटकारते हुए उसे ढूंढता था। कहते हैं कि डाॅन को तो सात मुल्कों की पुलिस नहीं ढूंढ पाई थी। कमोवेश यही हाल महोबा के पुलिस अधीक्षक रहे मणिलाल पाटीदार का है। जिन्हें 14 माह बाद भी पुलिस की 15 टीमें नहीं ढूंढ सकी हैं। और तो और अब तो सांसद विधायकों को भी बाकायदा पोस्टर लगाकर गुमशुदा की तलाश माफिक ढूंढा जाता है। क्योंकि जीतने के बाद अकसर जनप्रतिनिधि ऐसे गायब होते हैं कि वोटर उन्हें ढूंढते ही रह जाते हैं। और कुछ इस तरह अपनी पीड़ा व्यक्त करते हैं कि
नगरी नगरी द्वारे द्वारे
ढूंढूं रे सांवरिया
नेता जी नेता जी रटते रटते
हो गई मैं बावरिया
जब तक जीवन है तब तक ढूंढना और पाना चलता रहेगा। कुछ ढूंढने में सफल हो जाते हैं। तो कुछ ढूंढ कर भी नहीं ढूंढ पाते हैं।
आइए हम भी तलाश करें , हम भी ढूंढें शायद कभी हम आप को भी अपने सपनों की मंजिल मिल जाए।

राकेश कुमार अग्रवाल रिपोर्ट

Anuj Maurya

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