कोचिंग के बाजारीकरण पर कैसे लगे लगाम

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राकेश कुमार अग्रवाल

केवल डाक्टर , इंजीनियर ही नहीं अन्य सभी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने का देश में चोखा बाजार खडा हो गया है . स्कूल , कालेज महज एडमीशन , एक्जाम और डिगरी – सर्टिफिकेट वितरण केन्द्र बनते जा रहे हैं . आपको किसी बेहतर , प्रतिष्ठित संस्थान की प्रवेश परीक्षा पास करना हो या फिर सरकारी नौकरी पाने के लिए उससे संबंधित प्रतियोगी परीक्षा को पास करना कोचिंग संस्थाओं की शरण में जाना ट्रेंड या मजबूरी सा बन गया है . जहां भारी भरकम धनराशि एवं सालों की तैयारी के बावजूद ये जरूरी नहीं है कि प्रतिभागी का चयन हो ही जाएगा .कोचिंग संस्थाओं के प्रति बढती दीवानगी कहें या मजबूरी लेकिन इसके पीछे मूल कारणों पर जाएं तो कहीं न कहीं पूर्ववर्ती संस्थाओं का ढह जाना है . और इसके लिए सरकारें व शिक्षा बोर्ड पूर्ण रूपेण जिम्मेदार हैं . जिनके रहते स्कूल , कालेजों की भूमिका गौण होती जा रही है . स्कूल – कालेजों का वास्ता एडमीशन – एक्जाम तक व शिक्षण – अध्यापन की भूमिका कोचिंग संस्थाओं के पास पहुंच गई है .स्कूल – कालेजों में छात्र कम से कम 5-6 घंटे रहते हैं . वहां वे पढाई , प्रक्टिकल के अलावा सह शैक्षणिक गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं जिनसे उनका व्यक्तित्व भी निखरता है . अन्य छात्रों से घनिष्ठता बढती है . शारीरिक सक्रियता रहती है क्योंकि वे वहां खेलों में भी हिस्सा लेते हैं . लेकिन कैरियर बनाने या परसेंटेज बढाने की होड में पूरी शिक्षा व्यवस्था कोचिंग संस्थानों के इक्का दुक्का हाॅल में कुछ घंटे की पढाई के बाद रटने व याद करने तक सिमट कर रह गई है . बेहतर तो यह हो कि नंबर पर आधारित इन प्रोफेशनल कोर्स में एडमीशन देने के बजाए यह परखा जाए कि बच्चे का उस कोर्स के लायक वांछित माइंडसेट ( मनोदशा ) है भी या नहीं . सबसे बडी जरूरत है कि -सरकारें , शिक्षा विभाग और शिक्षा बोर्ड देश के सभी स्कूल , कालेजों में गुणवत्तापूर्ण नियमित पठन – पाठन का माहौल सृजित करें . कडाई से निरीक्षण व नियमन हो . स्कूल – कालेजों में आए दिन होने वाली ढेर सारी छुट्टियों की संख्या में कमी की जाए .


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स्कूल – कालेजों में छात्रों की न्यूनतम 75 फीसदी उपस्थिति को कडाई से सुनिश्चित किया जाए . अन्यथा ऐसे छात्रों को परीक्षा में बैठने से वंचित किया जाए . छात्रों एवं शिक्षकों की उपस्थिति का औचक पर्यवेक्षण किया जाए .

स्कूल – कालेजों के मेधावी छात्रों को इन परीक्षाओं की तैयारी के लिए पृथक से स्पेशल क्लासेज चलाकर प्रशिक्षित किया जाए .

जो छात्र स्कूल के शिक्षकों के प्रयासों से चयनित हों उन्हें सम्मानित किया जाए . छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर शिक्षकों की पदोन्नति व वेतनमान में वृद्धि की जाए .

कोचिंग संस्थानों के शिक्षकों की न्यूनतम योग्यता निर्धारित की जाए . कोचिंग संस्थानों के शिक्षकों की भी शिक्षक पात्रता परीक्षा होना चाहिए .कोचिंग संस्थानों में नामांकित छात्रों ( चाहे वह क्लासरूम स्टडी के हों या फिर डिस्टेंस मोड के ) , सफल छात्रों व असफल छात्रों के रिकार्ड को कोचिंग के प्रवेश द्वार पर डिस्प्ले करने के साथ पूरे ब्यौरे को आनलाइन किया जाए .

कोचिंग संस्थानों में कोचिंग पाने वाले कमजोर छात्रों को बेहतर बनाने के क्या उपाय किए गए एवं उस कमजोर छात्र में कितना गुणात्मक बदलाव आया इसका मूल्यांकन जरूर होना चाहिए . यह भी छानबीन हो कि तथाकथित उत्कृष्ट कोचिंग संस्थान केवल मेधावी छात्रों की पालिशिंग करके अपना टैंपो हाई किए रहते हैं . या कमजोर छात्रों को भी बेहतर बनाते हैं .

सबसे महत्वपूर्ण यह भी है कि इस बात की गोपनीय छानबीन कराई जाए कि परीक्षा संपादित कराने वाली एजेंसी के शीर्ष अधिकारियों और और कोचिंग संस्थानों में कोई सांठगांठ तो नहीं है जिसके कारण कुछ कोचिंग संस्थान हमेशा अपने परिणाम को बेस्ट बताकर कोचिंग बाजार हथियाने का खेल खेल रहे हैं .सुपर थर्टी के आनंद कुमार और कथित उत्कृष्ट निजी कोचिंग संस्थानों की फैकल्टी की मदद से प्रत्येक राज्य में ऐसे शिक्षकों को क्यों न प्रशिक्षित कर तैयार किया जाए जो कोचिंग के बाजारीकरण पर लगाम लगाकर इसे सर्वसुलभ बनाए .

सबसे बेहतर तो यही होगा कि विषय में रुचि रखने वाले छात्र को ही प्रोफेशनल कोर्स में दाखिला दिया जाए न कि अंकों के आधार पर परीक्षा पास करने वाले छात्र को . क्योंकि ऐसे छात्र कुछ अरसे बाद स्विच करके दूसरे कोर्स या प्रोफेशन में चले जाते हैं .

Rakesh Kumar Agrawal

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