कोचिंग संस्थाओं में बच्चों को भेजने से पहले ….

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राकेश कुमार अग्रवाल

बच्चों की मार्कसीट को देखकर कोचिंग संस्थानों में भेजने का निर्णय लेने के पहले अभिभावकों को कुछ बिंदुओं पर विचार करने की जरूरत है . सबसे पहले यह है कि आपके बेटे या बेटी को कौन सा विषय भाता है . किस विषय में उसकी रुचि है . वह कौन सा सब्जेक्ट है जिसमें उसे बोरियत महसूस नहीं होती . बेहतर तो यह है कि अभिभावक अपने सपने या अपनी चाहत को थोपने के बजाए बच्चे की रुचि को उसका कैरियर बनाने में मदद करें . यह भी दिमाग में रखें कि डाक्टर या इंजीनियर बनने से बच्चे का जीवन धन्य हो जाएगा एवं अन्य किसी दूसरे विषय जिसमें उसकी रुचि है उसको अगर वह कैरियर के रूप में अपनाएगा तो बर्बाद हो जाएगा , इस तरह की मानसिकता से बाहर निकलने की जरूरत है . जब सचिन बल्ले से गेंद को साधकर , लता मंगेशकर गले को साधकर , बिसमिल्ला खां शहनाई को बजाकर भारत रत्न पा सकते हैं तो फिर किसी भी पसंदीदा क्षेत्र में आपका बच्चा अपना सर्वश्रेष्ठ देकर नाम और दाम आसानी से कमा सकता है .

थोपकर बनाया गया डाक्टर या इंजीनियर जरूरी नहीं है कि उस फील्ड में अपना शत प्रतिशत दे सके .
दूसरा हाईस्कूल के अंकपत्र में कई बार देखने को मिलता है कि स्टूडेट के हिंदी , अंग्रेजी और सामाजिक विज्ञान मेंं मैथ्स और साइंस से कहीं ज्यादा अच्छे अंक होते हैं लेकिन पेरेन्टस उन विषयों में बच्चे को आगे बढने को प्रेरित नहीं करते . जबकि हो सकता है बच्चे इन विषयों में अपने को ज्यादा बेहतर अभिव्यक्त कर सकते हों .

तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि आजकल तोते की तरह रटकर चीजों को कंठस्थ कर नंबर पाने की होड लगी है . लेकिन मैथ्स और साइंस रटने वाले विषय नहीं हैं . यह माथापच्ची वाले विषय है. सवाल खडे करने वाले विषय हैं . परम्परागत थ्योरी को चुनौती देने वाले विषय हैं. तर्क वितर्क करने वाले विषय हैं . नए तरीके से सोचने वाले विषय हैं . दूर की सोच रखने वाले विषय हैं . आप आगामी बीस – तीस साल बाद किस तरह का बदलाव दुनिया में देखना चाहते हैं उस बदलाव को साकार करने वाले विषय हैं . आप अगर दूरंदेशी नहीं हैं . कोई नया आइडिया आपके दिमाग का दही नहीं बनाता तो साइंस लेने की जरूरत क्या है ? आपकी कल पुर्जों , उपकरणों , यंत्रों से लगाव नहीं है , कैलकुलेशन से आपको डर लगता है. घर की बिजली , नल की समस्या हो या फ्यूज उड गया हो या मिक्सी गडबड कर रही हो और आपका बच्चा उसको अनदेखा कर मिस्त्री मैकेनिक के पास ले जा रहा हो या घर पर आए मैकेनिक की कार्यप्रणाली को वह गौर से न देख रहा हो तो तो फिर विज्ञान जैसा विषय आपके बच्चे के लिए तो कतई नहीं है .

आपका बच्चा किसी को घायल अवस्था में नहीं देख सकता . रक्त या पस देखकर उसका जी चकराता है . डैड बाडी में उसको भूत नजर आता है तो फिर मेडीकल साइंस उसके लिए नहीं है . यह तो बडी काॅमन बाते हैं . जिन्हें माता पिता दिन प्रतिदिन की दिनचर्या में बच्चों में नोटिस कर सकते हैं . कई बार बच्चे इतने आज्ञाकारी होते हैं कि अपने मन की बात भी वे अपने पेरेन्टस के सम्मुख नहीं रख पाते . बाद में उन्हें इस बात का मलाल पूरी जिंदगी रहता है .
चौथी महत्वपूर्ण बात यह है कि आप अपने बच्चे की पीटीएम में भाग लेने स्कूल जाते हैं या नहीं . आप स्कूल पीटीएम में जरूर जाएं . और आपके बच्चे को पढाने वाले सभी विषयों के शिक्षकों से मिलकर सब्जेक्ट वाइस अपने बच्चे का फीडबैक जरूर सब्जेक्ट टीचर से लें. घर आने के बाद शिक्षकों से मिले फीडबैक के आधार पर आप खुद एनालिसिस कर सकते हैं कि मेरा बच्चा किस विषय में सबसे बेहतर है. इसके बाद आप बच्चे से अलग से बात करें आप पायेंगे कि आपका कनफ्यूजन सहजता से दूर हो गया है . और कुहासा भी छट गया है .

एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या टीचर की मदद के बिना आपका बेटा- बेटी दो चार सवाल लगा पाते हैं या नहीं . बच्चे को अगर आप कनफ्यूज करना चाहें तो क्या वह कनफ्यूज होता है या नहीं . या आपके कनफ्यूज करने के बाद भी अपने जबाब पर डटा रहता है . स्कूलों या ट्यूशन में अकसर देखा जाता है कि बच्चे सवाल पढे बिना ही सर से सवाल साॅल्व करने की मांग करने लगते हैं . याद रखिए आईआईटी के सवाल किताबी नहीं होते . बिना माथापच्ची करके आप सवालों का जबाब नहीं पा सकते . हर सवाल के जबाब के लिए स्टूडेंट को जूझना पडता है . कमोवेश यही स्थिति फिजिक्स और केमिस्ट्री जैसे विषयों से जुडे सवालों की है . जबकि बोर्ड परीक्षाओं में सवालों को इतना ट्विस्ट देकर नहीं पूछा जाता है . यदि आप अच्छे अभिभावक हैं तो ऊपर दिए गए बिंदुओं पर जरूर गौर करिए . आपके दिमाग की उलझन की गुत्थी स्वत: सुलझ जाएगी .

Rakesh Kumar Agrawal

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