क्रिकेट : खेल पर नहीं पिच पर चिकचिक

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राकेश कुमार अग्रवाल

अहमदाबाद क्रिकेट टेस्ट मैच दो दिन में खत्म हो जाने के पीछे क्रिकेट के तमाम जानकार व पूर्व क्रिकेट खिलाडी पिच के खराब होने को दोषी ठहरा रहे हैं . हालांकि दूसरा टेस्ट मैच भी तीन दिन में खत्म हो गया था . आँकडे बताते हैं कि टेस्ट क्रिकेट इतिहास में 22 बार ऐसा हो चुका है जब पांच दिन का टेस्ट मैच दो दिन में समाप्त हो गया . जबकि 80 और 90 के दशक में अकसर मैंने देखा है कि निर्धारित पांच दिन के समय में दोनों टीमें महज एक एक पारी खेल पाती थीं तब लगता था कि यदि मैच का परिणाम चाहिए हो तो मैच सात या आठ दिन तक चलना चाहिए .
टेस्ट क्रिकेट इतिहास में अकसर देखा जाता है कि खेलों में किसी भी टीम या देश की अप्रत्याशित हार के बाद हार को स्वीकार करने के बजाए पराजित टीम का मैनेजमेंट हार का ठीकरा खराब खेल के बजाए अन्य कारणों को जिम्मेदार करार देता है . बात अगर क्रिकेट की हो तो हार के लिए कभी अंपायरिंग को तो कभी गेंद को तो कभी पिच को हार के लिए जिम्मेदार करार दे दिया जाता है .
जबसे खेलों में उत्कृष्टता का पैमाना जीत या हार और आँकडे तय करने लगे हैं तबसे हर टीम केवल जीतना चाहती है . केवल टीम ही नहीं . खेलप्रबंधन , कोच , कप्तान से लेकर उस देश के दर्शक भी अपनी टीम को केवल जीतते देखना चाहते हैं . जीत की यह दीवानगी इतनी होती है कि अपनी टीम की हार पर दर्शक गुस्से में अपनी नाराजगी जाहिर करने के लिए अपने टीवी सैट तोडने से लेकर खिलाडियों के पुतले फूंकने से भी गुरेज नहीं करते . लेकिन सवाल यह उठता है कि कोई टीम अपराजेय है ? क्या यह कहा जा सकता है फलानी टीम या फलाना देश कभी हारेगा नहीं ? हम सभी जानते हैं कि खेलों में दम खम , कौशल , प्रदर्शन व
तकनीकी के साथ रणनीति पर भी जीत हार तय होती है . जिस दिन जो टीम बेहतरीन प्रदर्शन करती है वो जीत की हकदार बनती है . लेकिन कई बार खेलों में कमजोर टीम भी नामी टीम का मानमर्दन कर देती है . तो कई बार टीम के आशानुरूप प्रदर्शन न कर पाने पर हार के लिए खिलाडियों के गैर जिम्मेदार व लापरवाह प्रदर्शन के बजाए हार के अन्यान्य कारण खोजने लगते हैं .
तीस चालीस पहले क्रिकेट की दुनिया में बल्लेबाज की खूबी यह होती थी कि कोई बल्लेबाज कितनी देर तक तूफानी गेंदों का सामना करते हुए विकेट पर लंगर डाले रहता है . उस समय रन बनाना जितना महत्वपूर्ण होता था विकेट गिरने से बचाना भी उतना बडा खिलाडी बनाता था . सुनील गावस्कर , दिलीप वेंगसरकर जैसे खिलाडी इसलिए खेल में लीजेंड बन गए . राहुल द्रविड को द वाल का खिताब इसलिए मिला क्योंकि वे विकेट के आगे दीवार बनकर डट जाते थे . उन्हें आउट करना गेंदबाज के लिए सहज नहीं होता था . वीवीएस लक्ष्मण भी इसलिए दमदार खिलाडी माने गए क्योंकि वे भी लम्बे समय तक विकेट पर टिके रह सकते थे . लेकिन जब से फटाफट क्रिकेट आया . पचास पचास ओवर के खेल में शाम तक परिणाम निकलना शुरु हुआ . सब कुछ बदल गया . इसी लोकप्रियता को भुनाने और क्रिकेट को और आकर्षक बनाने के लिए ट्वेंटी ट्वेंटी क्रिकेट के अवतार ने क्रिकेट को बदल डाला . टेस्ट क्रिकेट बढते ड्रा और अनिर्णीत मैचों के कारण बोझिल और उबाऊ हो गया था अब भरपूर मनोरंजन के साथ सौ फीसदी परिणाम मूलक हो गया . लेकिन इस ट्वेंटी ट्वेंटी कल्चर की क्रिकेट के चलते विकेट पर टिक कर खेलने वाले बल्लेबाजों की जगह फटाफट रन बनाकर विकेट फेंककर पवेलियन लौटने वाले खिलाडियों ने ले ली . क्लासिक खेल की जगह क्लास ने ले ली . देखते ही देखते तमाम देशों ने टेस्ट , वन डे व ट्वेंटी ट्वेंटी मुकाबलों के लिए अलग अलग तीन टीमों का चयन करना शुरु कर दिया . और उन्हें ये टैग दे दिया गया कि फलाना खिलाडी फलाने फार्मेट का एक्सपर्ट प्लेयर है . समझने की जरूरत है कि अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों का एक दबाब होता है . एक दो विकेट गिरते ही बल्लेबाजों पर दबाब और भी बढ जाता है . दबाब से परे जाकर टिकना और रनों को आगे बढाना आसान नहीं होता है . कुछ विकेट और गिरने पर यह दवाब चरम पर पहुंच जाता है और टीम भरभराकर ढह जाती है . जब पचास ओवर के मैच में 350-400 रन एक टीम स्कोर कर लेती है . टी 20 में 180-200 तक स्कोर पहुंच जाता है तो फिर टेस्ट मैच में ऐसा क्या हो जाता है कि हम पिच का रोना लेकर बैठ जाते हैं . याद करिए जब अहमदाबाद में टीम इंडिया को जीत के लिए महज 49 रन की लक्ष्य मिला था तो उसी टीम ने वन डे स्टायल में खेलते हुए बिना किसी विकेट खोए सहजता से लक्ष्य पा लिया था . खिलाडी यदि अपना नैसर्गिक खेल खेले तो रन बनाना इतना कठिन नहीं होता है . जितना उसके ऊपर कप्तान और कोच की लादी हुई अपेक्षायें होती हैं . यदि एक टीम के खिलाडी उसी पिच पर अच्छा स्कोर करते हैं और दूसरी टीम स्कोर नहीं कर पाती है तो कृपया खिसियाने बिल्ली बन कर खंभा नोचने का काम मत करिए . आप अंतर्राष्ट्रीय मुकाबले खेल रहे हैं और इस स्तर पर आकर आँगन को टेढा बताने के बजाए अपने डांस को और पाॅलिश करिए . और बेहतर और भी बेहतर परफार्म करिए . वैसे भी एक बेहतर बल्लेबाज के लिए इस तरह के बहाने किसी भी लिहाज से उचित नहीं हैं .

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