तीसरा मोर्चा – 2024 की बिछने लगी बिसात

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राकेश कुमार अग्रवाल

लोकसभा चुनाव के लिए अभी दो साल का वक्त बाकी है लेकिन फिर भी चुनावी तैयारियों को लेकर रस्साकशी का दौर शुरु हो गया है . लगातार दूसरी बार सत्तानशीं नरेन्द्र मोदी को हैट्रिक से रोकने के लिए गैर भाजपाई और गैर कांग्रेसी तीसरे मोर्चे की कवायद भी जोर शोर से चल रही है . हालांकि तीसरे मोर्चे के नए बैनर तले अभी भी कई राज्यों के बडे दल एकत्रित नहीं हुए हैं ऐसे में नए मोर्चे को लेकर अन्य दलों की हिचक भी सामने आ रही है .

ज्यों ज्यों लोकसभा चुनावों का वक्त नजदीक आता है त्यों त्यों हर चुनावों के पहले तीसरे मोर्चा को खडा करने की कवायद शुरु हो जाती है . इस बार इस मोर्चा को खडा करने के सूत्रधार बन रहे हैं मराठा छत्रप शरद पवार . उनकी इन कोशिशों को धार देने में जुटे हैं जाने माने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर . पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा के बैनर राष्ट्रमंच के तले आधा दर्जन से अधिक दल तीसरे मोर्चे को पुनर्जीवित करने के लिए इकट्ठे भी हो चुके हैं . राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता शरद पवार के दिल्ली स्थित आवास पर आम आदमी पार्टी , समाजवादी पार्टी , नेशनल कांफ्रेंस , तृणमूल कांग्रेस , राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी , मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी , भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के नेता शामिल हुए थे . बैठक में यशवंत सिन्हा , रालोद से जयंत चौधरी , नेशनल कांफ्रेंस से फारुख अब्दुल्ला , सपा से घनश्याम तिवारी , माकपा से नीलोत्पल बसु , आम आदमी पार्टी से सुशील गुप्ता , भाकपा से डी. राजा व बिनाॅय विश्वास , पूर्व कांग्रेस नेता संजय झा , गीतकार जावेद अख्तर , जदयू के पवन वर्मा , माजिद मेमन , वंदना चव्हाण , सुधीन्द्र कुलकर्णी , रवीन्द्र मनचंदा , पूर्व राजदूत केसी सिंह व पूर्व जस्टिस ए पी शाह शामिल थे . तीसरा मोर्चा खडा करने का मकसद ही है कि मतदाताओं को भाजपा का विकल्प मुहैया कराना .

शरद पवार के आवास पर आयोजित इस बैठक से बसपा , कांग्रेस , शिवसेना , तेलगूदेशम जैसी पार्टियों ने हिस्सा नहीं लिया . देखा जाए तो बीते दो तीन दशकों से लोकसभा चुनाव कांग्रेस और भाजपा के इर्द गिर्द आकर सिमट जाता है . यही पार्टियां केन्द्र में सरकार बनाती आ रही हैं . लेकिन इसके बावजूद विभिन्न दल भी बडी संख्या में अपने प्रत्याशी जिता ले जाते हैं . इन छोटे दलों को एक मंच पर लाकर तीसरा मोर्चा गठित करने का सिलसिला हर चुनावों में चलता आया है . हाल ही में बंगाल चुनावों में तृणमूल कांग्रेस को मिली जीत के बाद फिर से तीसरे मोर्चे के स्वर तेज हो गए हैं . इन स्वरों को अंजाम तक पहुंचाने की कवायद कर रहे हैं चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर . तमाम राज्यों मेॆ हुए चुनावों में कांग्रेस पार्टी बेहतर प्रदर्शन करने में नाकामयाब रही है लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं लगाया जाना चाहिए कि कांग्रेस का खेल या कांग्रेस की राजनीतिक पारी खत्म हो गई है . यह सच है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस 10 फीसदी सीटें भी नहीं जीत सकी थी . पार्टी महज 52 सीटें जीत सकी थी . लेकिन पार्टी 197 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी . जो यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि कांग्रेस अभी भी लोकसभा चुनावों के लिहाज से एक बडी ताकत है .
नरेन्द्र मोदी का दूसरा कार्यकाल कोई बडा काम करने के बजाए कोरोना काल से जूझते हुए बीता है . लंबे लाॅकडाउन , दूसरी लहर में हुई बडी संख्या में मौतों , ऑक्सीजन संकट , तबाह अर्थव्यवस्था , भीषण बेरोजगारी , पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स और खाद्य तेलों की आसमान छूती कीमतों जैसे तमाम मोर्चों से निपटना मोदी के लिए आसान नहीं है . लेकिन चुनावों में अभी भी दो साल का वक्त बाकी है . जो कांग्रेस , भाजपा व तीसरा मोर्चा के लिए बेहतरीन प्रदर्शन की तैयारी करने के लिए पर्याप्त वक्त है . 2022 और 2023 में तमाम राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है . जो 2024 के संभावित रुझान का लिटमस टेस्ट हो सकते हैं . लेकिन इन सबके बीच में जो सबसे बडा सवाल है वह यह है कि तीसरा मोर्चा किसके नेतृत्व में फलीभूत होगा . क्या ममता बनर्जी बंगाल का मोह त्याग पाएंगी ? क्या शरद पवार शारीरिक रूप से इस स्थिति में हैं कि दो साल बाद मोर्चा को नेतृत्व दे सकें . शिवसेना 2024 में भाजपा की सहबाला बनेगी या फिर शरद पवार के साथ खडी होगी ? जिस मोर्चे में सपा होगी क्या वहां बसपा जाना पसंद करेगी ? तमाम सवाल ऐसे हैं जिनके जवाबों के बिना तीसरे मोर्चा के प्रभावी रूप में साकार होने में संशय जरूर रहेगा .

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