फ्री राशन नहीं, बढ़ती महंगाई पर अंकुश लगाए सरकार – परशुराम उपाध्याय सुमन

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रिपोर्ट- अवनीश कुमार मिश्रा

(कहीं विस्फोटक स्वरूप न धारण कर ले जनमानस में बढ़ता जा रहा असंतोष व आक्रोश)

प्रतापगढ़। अधिवक्ताओं की चर्चित संस्था वकील परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष, वरिष्ठ अधिवक्ता एवं साहित्यकार परशुराम उपाध्याय ‘सुमन’ ने देश में उत्तरोत्तर बढ़ रही महंगाई को चिंताजनक बताते हुए कहा है यदि सरकारें, इस विषय पर गहन मंथन करते हुए नियंत्रण लगाने की योजना नहीं बनाएंगी तो जनता में बढ़ रहा भयंकर असंतोष और आक्रोश कहीं विस्फोटक स्थिति में न पहुंच जाए। उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चलाई जा रही “फ्री राशन वितरण” की व्यवस्था को घातक बताते हुए कहा कि फ्री राशन नहीं, सरकार प्राथमिकता के तौर पर बढ़ती महंगाई पर अंकुश लगाए।
सामाजिक चिंतक साहित्यकार सुमन ने अपने समसामयिक विचार प्रस्तुत करते हुए कहा है कि सरकारें अपनी राजनीति की रोटी सेंकने के उद्देश्य से ऐसी ऐसी ललचाऊ योजनाओं की शुरुआत कर देती हैं, जिनका लाभ पाने को बड़ी संख्या में जनमानस उमड़ पड़ता है ।
कोरोना संक्रमण काल का आधार लेकर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने “फ्री राशन” बंटवाने की योजना लागू करके गरीबों की भूख मिटाने का अभियान चलाया है। इस समय भी राशन की दुकानों से 3 माह के लिए फ्री राशन वितरण की योजना उत्तर प्रदेश में शुरू हो गई है। राशन की दुकानों पर फ्री राशन लेने के लिए अधिकाधिक संख्या में महिलाएं व बच्चे कतारबद्ध दिखाई पड़ रहे हैं।
गांव में अधिक संख्या में बने अपात्रों के राशन कार्ड भी कुछ संपन्न लोगों को नियमित राशन लेने के साथ ही फ्री राशन लेने की लाइन में खड़े कर दिए हैं। वे राशन की दुकान पर भले न जाएं, उनका कोई न कोई प्रतिनिधि राशन लेने पहुंच ही जाता है। कोटेदार की भी मजबूरी है कि संपन्न लोगों के कार्ड देखकर प्राथमिकता के तौर से उन्हें राशन देकर किसी अनहोनी अथवा बवाल से बचें। गांव के ऐसे ऐसे संपन्न लोगों को राशन लेते देखा गया है जिनको देखने के बाद स्वयं शर्म महसूस होती है। सरकार की योजना का उद्देश्य भले ही कुछ और हो, लेकिन “फ्री राशन वितरण” का उद्देश्य तो वास्तव में गरीबों की भूख मिटाना ही है।
दिनोंदिन रोजमर्रा की वस्तुओं में तेल, साबुन, बिस्कुट, तिलहन, दलहन, मसाला, डालडा, गुड, चीनी आदि की कीमतों में बढ़ोत्तरी के साथ ही “पेट्रोल डीजल एवं गैस की आसमान छूती कीमतों से परेशान जनमानस का आक्रोश, कहीं विस्फोटक स्थिति को न जन्म दे दे? यदि सरकार की ओर से इस पर नियंत्रण नहीं किया गया तो महंगा साबित हो सकता है आगामी 2022 का विधानसभा चुनाव”।
यद्यपि नौकरी करने वालों को मिल रहे सम्मानजनक वेतन और ऊपरी कमाई को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि महंगाई का उन पर कोई विशेष असर नहीं पड़ रहा होगा, लेकिन खेती बारी अथवा मेहनत मजदूरी छोटी-छोटी फुटपाथ की दुकानों द्वारा कम आमदनी करके किसी तरह से परिवार का पालन पोषण करने वालों के सामने तो आसमान को छूने वाली इस महंगाई का बहुत बड़ा असर है, बल्कि यूं कहिए कि इस भयंकर महंगाई ने उनकी कमर तोड़ कर रख दी है।

पिछले कांग्रेस पार्टी की सरकारों को महंगाई के मामले में पानी पी पीकर दोषारोपण करने वाली भारतीय जनता पार्टी के मंत्री, सांसद व विधायक, महंगाई के इस विस्फोटक बिंदु पर सदन में अध्यादेश लाने अथवा कानून बनाने की बात तो दूर, चर्चा भी करना मुनासिब नहीं समझते।
आज पेट्रोल एवं डीजल का भाव ₹100 प्रति लीटर के इर्द-गिर्द घूम रहा है। गैस का दाम प्रति सिलेंडर लगभग ₹900 के पहुंच चुका है। इतनी बढ़ी कीमतों का असर निश्चित रूप से आम जनमानस पर पड़ रहा है। महिलाएं जिनको बड़ी संख्या में फ्री गैस कनेक्शन दिए गए हैं, वे सिलेंडर भराते भराते अपनी जेबें खाली कर देने में परेशान नजर आ रही हैं। उनमें प्राय: चर्चा सुनी जाती है कि यदि हमें फ्री गैस सिलेक्शन न दिया गया होता तो कम पैसे में किसी तरह से लकड़ी आदि का इंतजाम करके अपनी गृहस्थी चला लेते। अब तो कहीं से भी पैसा लाकर हमें गैस भराने की मजबूरी है। उन बेचारी गरीब महिलाओं के दिल पर इस महंगाई का कितना बोझ है? यह बताने नहीं, बल्कि एहसास करने का प्रश्न है।

आश्चर्य तो यही है कि किसी भी राजनीतिक दल द्वारा इस बढ़ती महंगाई पर चिंता करने अथवा बयानबाजी करने अथवा नियंत्रण हेतु कोई अभियान चलाने की आवश्यकता ही नहीं महसूस हो रही है। न जाने क्यों,लगभग सभी राजनीतिक पार्टियां,महंगाई के प्रश्न पर कान में तेल डालकर चुप्पी साधे हैं।
जनमानस और गरीबी का जीवन बिताने वालों पर बीत रही महंगाई के बोझ का एहसास करते हुए माननीय विधायकों, सांसदों एवं मंत्रियों को सदन में चर्चा करके इस सुरसा की तरह अपने मुंह को बढ़ाती जाती बेवफा महंगाई को त्वरित गति से नियंत्रण करने पर गंभीरता से चर्चा कराकर कोई प्रभावकारी ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, अन्यथा आगामी दिनों में उसका परिणाम तो उन्हें ही भोगना पड़ेगा।

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