टीका मतलब टिके रहो

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राकेश कुमार अग्रवाल
बीते डेढ साल से देश और दुनिया में जहां देखो वहां केवल दो ही चर्चार्यें फिजा में रहीं हैं . एक तो कोरोना के कहर की और दूसरी कोरोना से बचाव के लिए वैक्सीन मतलब टीका की .
मौतों के लगातार बढते आँकडों व भयावह होते हालातों केे चलते हर जगह से एक ही स्वर गूंज रहा था कि टीका ही अब दुनिया में टिकाएगा . टीके को ही सबसे सार्थक उपाय माना जा रहा था . ऐसे में दुनिया की एक सैकडा बडी शोध कंपनियां टीका को विकसित करने के लिए दौड पडीं . क्योंकि टीका विकसित होने का मतलब साफ था कि लोगों को सुनिश्चित मौत से बचने की मोहलत मिल जाएगी . लोग मौत से बचने के लिए मुंह मांगे दामों पर टीका खरीदेंगे . जिससे कंपनियां मालामाल होंगीं . टीका यदि सरकारें सीधे कंपनियों से खरीद कर लगवाती हैं तो सरकारों को चुनावों में वोटों की बंपर फसल काटने का मौका मिलेगा . जिससे पार्टी और सरकार की भी इम्युनिटी स्वत: बढ जाएगी .
हम तो ठहरे गांव के देशी आदमी . हम टीका का मतलब माथे पर लगने वाले तिलक को टीका समझते रहे हैं . क्योंकि बचपन से ही सत्यनारायन की कथा हो या कोई पूजा , शुरुआत में ही पंडित जी माथे पर टीका लगाते रहे हैं . हम भी सिर नवा कर एक हाथ सिर पर रखकर टीका लगवाते रहे हैं . रक्षाबंधन हो या होली – दिवाली पर मनाए जाने वाली भाई दोज बहनें सबसे पहले माथे पर टीका टेकती रही हैं . बचपन में ही जब परीक्षा देने जाते थे तो अम्मा टीका लगाकर दही चीनी खिला कर ही स्कूल भेजती थीं . किसी रिश्तेदारी में गए तो वहां से विदा के पहले माथे पर टीका , हाथों में नारियल , कपडे या नकदी मिलती रही है . टीका लगता था तो ये तो समझ में आ जाता था कि जिसको टीका लगाया जाता है वो खास होता है . उसको सम्मान स्वरूप टीका लगाते हैं . मस्तक भी सूना नहीं लगता . अनजान व्यक्ति भी देखता है तो समझ जाता है कि बंदा वजनदार है . हालांकि जब बिल्कुल बाल गोपाल था तब पिता जी को पूजा करते देखता था . वे चंदन घिसकर मेरे माथे पर चंदन का टीका लगा देते थे . टीका लगते ही माथे पर ठंडा ठंडा महसूस होता था साथ में चंदन की महक भी मन मस्तिष्क को सुगंध से भर देती थी . कोई शादी विवाह या मांगलिक कार्यक्रम हो तो टीका की रस्म तो एकाधिक बार होती है . शादी के कार्ड में उस तिथि का विशेष जिक्र होता है कि दूल्हे राजा का टीका कब होना है . बिना टीका के न दूल्हा निकासी होती है न ही दूल्हे को टीका लगे बिना जयमाला कार्यक्रम संपादित होता होता है . देखा जाए तो टीका की महिमा अपरम्पार है . हल्दी – कुमकुम का टीका जहां संबंधों को जिलाए रखता है वहीं वैक्सीन रूपी टीका न लगे तो लेने के देने पड जाते हैं .
टीके की महत्ता भला मुझसे ज्यादा कौन जान और समझ सकता है . अगर मुझे भी बचपन में टीका लग गया होता तो शायद मुझे पोलियो न होता .
आज समझ में आ रहा है कि टीके का केवल विज्ञान नहीं होता है बल्कि टीके का अर्थशास्त्र भी होता है जिसका सीधा संबंध कंपनियों से होता है . जिसके चलते देखते ही देखते पूरी दुनिया में 9 उद्योगपति अरबपति बन गए . जबकि कोरोना और लाॅकडाउन के कारण सभी प्रभावित देशों की अर्थ व्यवस्थायें चौपट हो गईं . मध्यम वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाला व्यक्ति गरीब हो गया है . और गरीब व्यक्ति को कोरोना ने फटेहाल बना दिया . टीके का समाजशास्त्र भी होता है जिसके कारण समाज में कोरोना के टीके को लेकर ढेर सारी भ्रांतियां फैलने के कारण लोग टीका लगाने आ रही टीम से टीका लगवाने के बजाए तालाब में कूदना ज्यादा मुनासिब समझते हैं . टीके का राजनीति विज्ञान भी होता है जिसके चलते सरकार लोगों को टीका लगवाने के लिए सुबह से शाम तक न केवल प्रेरित कर रही है बल्कि इसके लिए स्वास्थ्य विभाग , नगर निकाय व प्रशासनिक अधिकारियों का लश्कर भी सरकार ने उतार दिया है . ताकि जितना ज्यादा टीकाकरण होगा सरकार का इकबाल उतना ही बढेगा . टीके का धार्मिक और आध्यात्मिक पक्ष की चर्चा पहले ही हो चुकी है . टीके का मीडियाशास्त्र भी होता है जिसके तहत अखबार और चैनल वाले किस तारीख में कितने लोगों को वैक्सीन लगी इसका अपडेट परोसते हैं . सरकार की सफलता का जितना भोंपू बजाया जाता है मोलभाव करने में भी उतनी ही आसानी रहती है .
टीके को लेकर देश में टिप्पणियां भी जमकर हुई हैं . तब पहली बार मुझे टीका टिप्पणी का असली अर्थ समझ में आया . टीका वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं का नहीं पार्टियों का भी हो सकता है इसका ज्ञान हम सभी को अखिलेश भैया ने यह कहकर कराया था कि वे भाजपाई टीका नहीं लगवायेंगे . मुझे पहले लगा कि टीका या तो भाजपा कार्यालय या फिर संघ मुख्यालय में तैयार हुआ है .
टीके की होड का आलम यह है कि वह दिन दूर नहीं जब बाजार में नाना प्रकार के टीके उपलब्ध होंगे . बच्चों , बूढों , जवानों , गर्भवती महिलाओं के लिए अलग अलग टीके मिलेंगे . लाॅकडाउन खुलने के बाद वह वक्त भी आने वाला है जब आप के पास भले आधार कार्ड हो या न हो लेकिन अगर आपके पास टीका का सर्टिफिकेट न हुआ तो आपको न होटल में प्रवेश मिलेगा . न रेस्टोरेंट में खाना न हवाई यात्रा का सुख , न विदेश यात्रा के लिए वीजा , न बच्चे का स्कूल में एडमीशन न सिनेमा हाल में टिकट और तो और पत्नी को विदा कराने ससुराल जाओगे तो सास ससुर तभी दामाद के साथ बेटी को विदा करेंगे जब वे आपका टीका का सर्टिफिकेट देख लेंगे . मेरी मानो यदि टिकना चाहते हो टीका से नाता जोड लो .

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