राष्ट्रीय रामायण मेला चतुर्थ दिवस

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चित्रकूट: सृष्टि की आदिम रचनाः डा0 ललित 
– कामदगिरि ही है रामगिरि, साक्षात परमात्मा का है निवास
– दिल्ली की टीम ने लाइट एडं साउंड सम्पूर्ण रामायण प्रस्तुत की
– भजन गायकों और कथा व्यासों नेे वातावरण को बनाया मनोहारी
– कामदगिरि के अंदर जाने के हैं चार रास्ते

चित्रकूट , चित्रकूट सृष्टि की आदिम रचना है। इसके पर्वत, नदी और भौगोलिक स्थिति प्राचीनता के साक्ष्य प्रस्तुत करते है। पाठा क्षेत्र की बोली और भाषा आर्य भाषाओं में सबसे प्राचीन पाई गई है। चित्रकूट की गुफाएं और सुरंगो से जाने वाले मार्ग भी इसकी प्राचीनता के प्रमाण हैं। इसकी भौगोलिक संरचना में जिस भू परपटी की बनावट पाई जाती है वह हिम संस्कृति अर्थात हिमालय की संस्कृति से भी पुरानी है। यह बातंे चतुर्थ दिवस की विद्वत गोष्ठी एवं सारस्वत सत्र का शुभारंभ करते हुए हिन्दी साहित्य के ख्यातिलब्ध साहित्यकार पुरातत्वविद एवं अनुसंधानकर्ता डा0 चन्द्रिका प्रसाद दीक्षित ललित ने कहीं। डा0 ललित ने चित्रकूट के कामदगिरि पर्वत को गुफाकालीन आदिम बताया। उन्होंने ओज प्राप्त अत्रि ऋषि की वृहद रामायण का उल्लेख करते हुए कहा कि कामदगिरि में अंदर जाने के चार रास्ते यानि द्वार हैं। यह पर्वत अपने भीतर एक विशाल गुफा की भांति रहस्यपूर्ण है। इसके भीतरी भाग में एक सरोवर है। स्वर्ण और मणियो जटित एक मंदिर भी है। अत्रि रामायण के अनुसार इसकी संरचना सृष्टि के पहले शिल्पकार विश्वकर्मा द्वारा की गई थी। उन्होंने प्रमाण स्वरूप अत्रि रामायण की पंक्तियों को रामायण मेला में आए हुए विभिन्न विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत किया।

उन्होंने बताया कि कामदगिरि को रामगिरि भी कहा जाता है, क्योंकि भगवान राम ने वनवास काल में सीता और लक्ष्मण के साथ इसी गिरि में निवास किया था। डा ललित ने यह भी कहा कि कामदगिरि ने कामनाओ तथा काम को परिपूर्णता प्रदान करने वाला पर्वत है। चित्रकूट की अग्नेय धरती भी इसे सृष्टि की आदिम रचना सिद्ध करती है। उन्होंने काव्य की पंक्तियों द्वारा इस धरती को सर्वोपरि बताया। चित्रकूट सा तीर्थ नहीं है कोई भुवन-भुवन में, कामद सा देवता नहीं सृष्टि और त्रिभुवन में। आंध्र प्रदेश हैदराबाद की डा पी. नागपदमिनी ने हिन्दी और तेलगू की रामकथा पर प्रकाश डाला। मुजफ्फरपुर से आए डा0 संजय पंकज ने कहा कि सांस्कृतिक विकास के बिना कोई भी राष्ट्र प्रगति नहीं कर सकता। राम का सांस्कृतिक व्यक्तित्व सम्बन्धों के बड़े संसार में समाहित है। वे रिश्तो को निबाहना जानते थे।
मप्र भिडं से आए डा देवेन्द्र चैहान रामायणी ने कहा कि भरत जी आठ सागरो के खान हैं। मां सरस्वती भरत जी के हृदय में आठ सागरों का बखान करती हैं। इसलिए उनकी बुद्धि हरण करने में हिचकिचाती है। बिहार सीतामढ़ी से आए विमल कुमार परिमल ने कहा कि राम के जीवन में जो संघर्ष है वह एक मनुष्य की नियति है। संघर्षो से जूझते हुए सकारात्मक भाव को जीने वाले राम जीवन पर्यन्त समाज और मूल्य के लिए समर्पित रहे। वे विश्व में अतुलनीय हैं। आज भी अनुपम और श्रेष्ठ हैं राम। बांदा से आए मानस किंकर राम प्रताप शुक्ल ने सत्संग की महिमा पर कहा कि राष्ट्रीय रामायण मेला सत्संग के लिए महत्वपूर्ण मंच है।

मुम्बई से पधारे पं वीरेन्द्र प्रसाद शास्त्री ने कहा कि मानव को शांति क्यों नहीं मिल पाती इस संदर्भ में उन्होंने बताया कि मानस के अंतर्गत गोस्वामी जी के शब्दो में सुखी मीन जहां नीर अगाधा, जिमि हरि शरण न एकौ बाधा, जल सकोच विकल भइ मीना, अबुध कुटुम्बी जिमि धन हीना। जयपुर की साहित्य पदमश्री से सम्मानित डा सरोज गुप्ता ने कहा कि तुलसीदास जी ने राजतंत्र में लोकतंत्र का संकेत कर उसके सुपरिणाम को घोषित कर दिया था। राजा राम कथन प्रजा से जो अनीत कुछ भाखो भाई तो मोहि बर्जहु भए बिसराई।
सुल्तानपुर से आए मनीषी साहित्यभूषण डा सुशील कुमार पांडेय ने रामचरित मानस पर संस्कृत भाषा में रामकथा पर लिखित ग्रंथों के प्रभाव की विस्तृत समीक्षा की। चेन्नई से आए डीजी वैष्णव कालेज के हिन्दी प्राध्यापक डा. अशोक कुमार द्विवेदी ‘शान बनारस’ ने अपने वक्तव्य में कहा कि भरत जी का चरित्र रामकथा में अविस्मरणीय है। डा. प्रमिला मिश्रा, डा. किरण त्रिपाठी, डा. सुमन सिंह, डा. एन. अनंत लक्ष्मी, पी.एस. बंगारैया हैदराबाद आदि प्रमुख रहे। रामकथा में व्याख्यान देने वालों में डा हरि प्रसाद दुबे फैजाबाद, के. विजयालक्ष्मी, डा. आशा कुमारी आदि विद्वान रहे। सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में दिल्ली से आई कला केंद्र की टीम ने लाइट एंड साउंड के जरिए भावात्मक सम्पूर्ण रामायण प्रस्तुत की। इसके पूर्व रामलीला में प्रभु श्रीराम के जनकपुर में आगमन और नगर भ्रमण का मंचन देखने को भारी भीड़ उमड़ी। सांस्कृतिक दलों की प्रस्तुतियां, भजन, लोकगीत, लोकनृत्य का दर्शकों ने लुत्फ उठाया।

सोमवार को कार्यक्रम की शुरुआत मेले के कार्यकारी अध्यक्ष प्रशांत करवरिया ने पूजा अर्चना से किया। इसके बाद ब्रज श्रीकृष्ण रामलीला संस्था के कलाकारों ने फुलवारी लीला का मंचन किया। लीला देख मौजूद भारी तादाद में दर्शक रोमांचित रहे। अपरान्ह बाद भजन गायकों ने सुंदर प्रस्तुतियां दी। जिसे सुन श्रोता भावविभोर हो गए। मंच की शोभा देखते ही बनती थी। शाम होते ही रंगबिरंगी आकर्षक लाइटो से मंच स्थल जगमगा जाता है। कार्यकारी अध्यक्ष प्रशांत करवरिया, महामंत्री करुणा शंकर द्विवेदी, कोषाध्यक्ष शिवमंगल शास्त्री, प्रद्युम्न दुबे लालू, मनोज मोहन गर्ग, विनोद मिश्र, राजेन्द्र मोहन त्रिपाठी, घनश्याम अवस्थी, मो यूसुफ, राम प्रकाश श्रीवास्तव, हेमंत मिश्रा, ज्ञानचन्द्र गुप्ता, सूरज तिवारी, कलीमुद्दीन बेग, सत्येन्द्र पांडेय, इम्त्यिाज अली लाला, राजेन्द्र बाबू, रवि कौशल, विनोद पांडेय, मंसूर अली, विकास, नत्थी सोनकर आदि मौजूद रहे।

रिपोर्ट- संदीप रिछारिया

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