श्रीचित्रकूट धाम के श्रीकामदगिरि पर्वत में है माता का शक्ति पीठ

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– श्री चित्रकूटधाम आकर श्रीराम ने की मां मोक्षदा की आराधना 
– मत्स्यपुराण, तारासारोपनिषद, तांत्रिक लक्ष्मी कवच, देवी भागवत व देवी गीता जैसे तमाम ग्रंथ करते हैं पुष्टि।

श्री चित्रकूटधाम , कठोपनिषद की सुप्रसिद्व उक्ति है ‘‘नायमात्मा बलहीनेन् लभ्यः‘‘ शक्तिहीन को न आत्मा की और न परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है। इसलिए भजे सशक्तिः सानुजः ‘‘ शक्ति की उपासना करो।
बिना शक्तिं न मोक्षो न ज्ञानं न सत्यं न धर्मो न तपो न हरि नं हरो न विरंचितं सर्व शक्ति युक्तं भवेत्।तत्संयोगात् सिद्वीश्वरो भवेत्।(श्री चक्रोपनिषद)  चित्तशक्ति पूर्ण प्रेम स्वरूप है।चित्त शक्ति सत्य स्वरूप है। आनंदमयी प्रेममयी चित्त शक्ति उपास्य की शक्ति है। उपासक को बिना शक्ति के परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती है। चित्तशक्ति ही माता जगदम्बा है। यह चित्त शक्ति तुच्छ से तुच्छ प्राणी व ब्रहमा तक में समाहित है। सर्व प्रिय है, क्योंकि सभी प्राणियों में इसका निास सभी प्राणियों में है। सब उसकी संतति हैं। सबकी रक्षा पालन का कष्ट अपने उपर ले रही है। उसका स्वरूप प्रेम का है। हरि का हृदय ही उसका मंदिर है।
भारतवर्ष के हृदय भाग चित्रकूट में उसका प्राकट्य हुआ।  इस प्रेमरूपा अनुग्रह के बिना प्रभु की कृपा नही बरसती।
श्रीचित्रकूटधाम के श्रीकामदगिरि पर सती का स्तन गिरा था जैसा कि तंत्र चूड़ामणि, देवी भागवत या मत्स्य पुराण से प्रमाणित है-
‘‘रामगिरौ स्तनान्यं च‘‘ (तंत्र चूड़ामणि) 
‘‘ चित्रकूटे तथा सीता विन्ध्ये विध्याधिवासिनी‘‘
देवी भागवत एवं मत्स्यपुराण (7/30/55-84)  (13/26-56)
तांत्रिक लक्ष्मी कवच तो साफ तौर पर स्वष्ट करता है
सुखदा मोक्षदा देवी चित्रकूट निवासिनी।
भयं हरेत् सदा पायाद भव बंन्धनात् विमुच्यते।।
इनके अलावा और भी तमाम उदाहरणों के जरिए यह स्पष्ट होता है कि श्रीचित्रकूटधाम में माता शक्ति का दायां स्तन गिरा था और भगवान श्री राम को यहीं पर ऋषियों ने निवास कर उनकी आराधना करने के लिए कहा था। अब सवाल उठता है कि माता का यह छिपा हुआ मंदिर और विग्रह कहां पर स्थित है, जिसके बारे में कहा जाता है कि माता का यह विग्रह अन्य देवी स्थानों से ज्यादा पावर फुल है।                                                                                                                                                 
 कामदगिरि में यहां पर है माता का विग्रह
श्रीकामदगिरि पर्वत की परिक्रमा पथ पर श्रीकामतानाथ जी के प्राचीन मंदिर के आगे गोस्वामी तुलसीदास जी महराज के गुरू जी यानि की स्वामी नरहरिदास जी महराज का स्थान है। इस स्थान को महलों वाला मंदिर कहते हैं, इसके ठीक पहले चक्र तीर्थ नामक स्थान पड़ता है, यहां पर माता का विग्रह एक छोटे से मंदिर में विराजमान है। पत्थर पर उभरे देवी के छोटे से विग्रह व एक छोटी मूर्ति के साथ यहां पर चक्र भी विराजित है। इसकी आराधना आदि काल से ऋषि व भगवान राम ने की थी। यहां पर पिछले कई दशकों से घी का दिया जल रहा है और यहां पर प्रसाद के रूप में घी का ही प्रसाद दिया जाता है।

श्रीचित्रकूटधाम में श्रीराम की शक्ति पूजा
प्रकृति सर्वस्व समर्थवान है। आप जिस प्रकार की आराधना करते हैं, वैसा ही प्रकृति आपको वापस करती है। जीवन का आधार सद्गुण, रजोगुण और तमोगुण हैं। इनमें से किसी एक गुण की भी आराधना करते हैं तो आपको वापस वही गुण कई गुना होकर मिलते है। अगर आप सद्गुणं की आराधना करते हैं तो आप सदैव प्रसन्न रहते हैं। वैदिक धर्म के तीन आधार स्तम्भ शैव, शाक्त और वैष्णव भी इसी बात के द्योतक हैं। इनमें सबसे प्रमुख है शाक्त आराधना यानि शक्ति या देवी आराधना। देवी आराधना से मनुष्य सभी शक्तियों को प्राप्त कर सकता है। वैसे तो प्रभु श्री राम ने महर्षि वशिष्ठ व महर्षि विश्वामित्र जी से ज्ञान प्राप्त कर विभिन्न शक्तियां अर्जित कीं, पर श्री चित्रकूट धाम में उन्हें जो शक्तियां मिलीं, उन्हें प्राप्त कर उन्होंने राक्षसराज रावण का बध किया।
सृष्टि के आरंभिक काल से विद्यमान भारद्वाज मुनि और महर्षि वशिष्ठ जी का श्रीराम को चित्रकूट भेजने व यहां के ऋषि मुनियों से भेंट कराने के पीछे की मंशा भी शायद यही रही होगी। वैसे तो चित्रकूट आकर भगवान श्री राम ने विभिन्न देवी स्वरूपों की आराधना की, श्रीराम विभिन्न ऋषि मुनियों के आश्रमों में गए और उन्होंने वहां पर तपकर विभिन्न अग्नेयास्त्र व प्रक्षेपास्त्र प्राप्त किये।         
             लेकिन सवाल यह उठता है कि जब श्रीराम जी को विभिन्न ऋषियों से जंगलों में निवास कर रहे ऋषियों से मिलना था और वहीं पर निवास कर तप कर विभिन्न प्रकार के आयुध व शक्तियों को प्राप्त करना था तो उन्होंने श्रीकामदगिरि को ही अपने निवास के लिए क्यों चुना़़! यह पर्वत आज भी इतना पवित्र क्यों है कि कोई भी इस पर्वत पर उपर चढ़ने की हिम्मत क्यों नही करता!
आइये आज हम ऐसे ही प्रश्नों का उत्तर तलाशने का काम करते हैं, जो हमारे आपके मस्तिष्क में सदा से उमड़ते घुमडते रहते हैं।
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          चित्रकूट महिमा अमित,,,,,,,
श्रीचित्रकूटधाम को श्रीराम के आराधना स्थल के रूप में जानते हों, पर सच्चाई इससे इतर है। भारद्वाज मुनि ने के कहे गए वाक्य चित्रकूट महिमा अमित, कहिय महामुनि गाए,,, को ध्यान दीजिए,,, चित्रकूट में आकर श्रीराम ने गौरव को तो बढ़ाया, पर यहां की महिमा पहले से अमित थी। श्री चित्रकूटधाम की महिमा दिग्दिग्ंतर में होने का कारण यहां के ऋषि मुनि हैं, जो आज भी शसरीर व सूक्ष्म रूप में यहां पर विद्यमान है। उनके द्वारा किए गए तप की उर्जा से आज भी चित्रकूट धाम में आकर लोग आनंदित व अपने कष्टों से निजात पा जाते हैं।
आज हम श्री चित्रकूटधाम में विराजी मां आदिशक्ति के उन विग्रहों व उनकी शक्तियों के बारे में परिचित कराने का काम करेंगे जिनको प्राप्त कर श्रीराम ने न केवल राक्षसराज रावण का बध किया। बल्कि उन्होंने 11 हजार साल तक निष्कंटक राज किया। 
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          कितने, कहां, कैसे शक्ति पीठ
.. तंत्र चूड़ामणि, ज्ञानर्णव दक्षिणायनी तंत्र, योगिनी हृदय तंत्र और शिवचरित में 51 शक्तिपीठों का विस्तृत वर्णन है। देवी भागवत, मत्स्य पुराण में उप पीठों सहित 108 सिद्ध पीठों का उल्लेख है, देवी गीता में 72 पीठों का उल्लेख है और कालिका पुराण में 26 पीठों का उल्लेख है।
51 शक्तिपीठों में 9 पीठ पूर्व से ही पड़ोसी राष्ट्रों में है। श्रीलंका, तिब्बत एवं पाकिस्तान में एक-एक, दो नेपाल में, चार बांगलादेश में आज के भारतवर्ष में मात्र 42 शक्तिपीठ ही रह गये है। देश की विशालता, स्थानों की अधिकता एवं विदेशी आक्रान्ताओं के कारण कितने ही स्थान लुप्त प्राय है…… कितना अच्छा हो कि धर्म परायण हिन्दुओं का ध्यान इन प्राचीन सिद्धपीठों की ओर भी आकर्षित हो तो जीर्णोद्धार हो सके अन्यथा शनैः शनैः नष्ट होने की ही सम्भावना अधिक है।

रिपोर्ट- संदीप रिछारिया

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