सूरत-ए-हाल आरटीई : निजी स्कूलों ने शुल्क प्रतिपूर्ति नहीं मिलने से छात्रों को दिखाया बाहर का रास्ता

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-जून तक फीस नहीं लेने को कान्वेंट स्कूलों को जारी हुआ था आदेश,

-अभिभावकों ने आठवीं तक मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा कानून का हवाला दिया,

-अभिभावकों ने बीएसए से इस संबंध में ठोस कदम उठाने की मांग,

वाराणसी (29/05/2021) रोहनियां क्षेत्र के निजी स्कूलों ने आरटीई के लगभग दर्जनो छात्रों को स्कूल से बाहर कर दिया है।

अभिभावकों ने बीएसए को दिए गए पत्र में मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा कानून का हवाला दिया है। दरअसल मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा कानून के तहत आठवीं तक की शिक्षा निःशुल्क है।

स्कूलों के इस फैसले के विरोध में कुछ पैरेंट्स ने रेड ब्रिगेड ट्रस्ट के प्रमुख अजय पटेल के नेतृत्व में अभिभावकों ने बीएसए को शिकायत दी।

अजय के अनुसार स्कूलों ने अचानक अभिभावकों को कह दिया कि बच्चे के शुल्क प्रतिपूर्ति नहीं होने से आनलाइन पढ़ाई नहीं पढ़ सकते। इसलिए या तो पूरी फीस खुद भरो। अन्यथा बच्चों की टीसी लेकर दूसरे स्कूल में दाखिला लो।

सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार ने कहा कि निजी स्कूलों से आरटीई के बच्चों को निकालने के और मामले भी सामने आ रहे हैं। उन्होंने प्रदेश सरकार व राज्यपाल से अनुरोध किया कि कोरोना काल में शुल्क प्रतिपूर्ति नहीं होने का हवाला देकर बच्चों को सड़क पर धकेला ना जाए। शुल्क प्रतिपूर्ति मिलने तक बच्चों के नाम नहीं काटे जाएं और सामान्य रुप से आनलाइन पढ़ाया जाए।

आपको बता दें कि कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़ने वाले अभिभावकों को प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन की तरफ से बड़ी राहत दी थी। जून तक कोई भी स्कूल किसी बच्चे की फीस जमा करने के लिए दबाव नहीं बनाएगा। इस अवधि की फीस जुलाई के बाद जमा कराई जा सकती है। इसका चार्ट बनाकर अभिभावकों को पहले ही दिया जाएगा। अभी तक स्कूल प्रबंधन अप्रैल में ही तीन माह की फीस एक साथ जमा करा लेता था। इस पर पूरी तरह रोक लगा दी गई थी।

एक साथ फीस देने में आ रही दिक्कतों पर अभिभावकों और अभिभावक संगठनों की मांग को मीडिया ने भी प्रमुखता से उठाया था। इसको प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन ने संज्ञान में लिया।उत्तर प्रदेश अभिभावक संघ के अध्यक्ष अधिवक्ता हरीओम दुबे ने बताया कि सीबीएसई और आईसीएससी बोर्ड के सभी निजी स्कूलों के प्रबंधकों को जारी आदेश में कहा गया था कि लॉकडाउन होने के कारण अभिभावकों को आर्थिक समस्या आ रही है। इसलिए उनसे तीन महीने तक फीस न ली जाए। इस दौरान किसी बच्चे का नाम भी नहीं काटा जाए के बावजूद उक्त आदेश को ठेंगा दिखा मनमानी पर उतर आए है प्राइवेट स्कूल।इसके साथ ही शहर के कई बड़े निजी विद्यालयों ने सरकारी आदेश के विरुद्ध बेतहाशा शुल्क वृद्धि की है जिसके कारण अभिभावकों के ऊपर आर्थिक बोझ बढ़ा है।

धन्यवाद
द्वारा
राजकुमार गुप्ता
वाराणसी

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